-वीना नागपाल
पिछलें दिनों अमेरिका से लेकर पूरे यूरोप तक यह बात फैली कि महिलाओं की प्रसाधन सामग्री इतनी हानिकारक है कि यदि गर्भवती महिलाएं उसे प्रयोग करती हैं और वह भी निरंतर प्रयोग करती हैं तो गर्भस्य भू्रण पर हानिकारक प्रभाव तो पड़ता है, साथ ही बढ़ता हुआ भ्रूण एक विकृत शिशु में भी बदल सकता है। यह अभियान अब एक व्यापक रूप ले रहा है कि महिलाओं को इस बारे में जाग्रत व सजग किया जाए कि वह शृंगार करने वाली इस प्रसाधन सामग्री का उपयोग कम से कम गर्भावस्था में तो न करें।
काफी समय से पहले यह अभियान तो पशुप्रेमियों (एनिमल लवर्स) के माध्यम से तो चलाया जा रहा था कि महिलाओं द्वारा प्रयोग की जाने वाली सामग्री में पशुओं की चर्बी का खुलकर प्रयोग किया जाता है। यह भी कहा गया है कि इस सामग्री को बनाकर बाजार में उतारने से पहले कोमल व मासूस जानवरों जैसे खरगोश, बंदरों तथा अन्य प्राणियों पर इनका प्रयोग कर देखा जाता है कि यह मनुष्य के शरीर में कोई हानिकारक प्रभाव तो नहीं छोड़ेंगे। इस प्रयोग में उन प्राणियों को बहुत पीड़ा से गुजरना पड़ता है और कइयों की मृत्यु हो जाती है। प्राणी संरक्षण से जुटे कार्यकर्ता कई बार यह प्रश्न उठा चुके हैं कि प्राणियों को इतना दु:ख देकर यदि प्रसाधन करने और उससे सुंदर दिखने का प्रयास यदि महिलाएं करती हैं तो क्या उन्हें यह अच्छा लगेगा या वह किसी को दु:ख पहुंचाकर सुंदर बनना चाहेंगी? हालांकि अपने स्तर पर आज भी प्राणी पे्रमी इस अभियान को चलाए हुए हैं और अब तो वह सोशल मीडिया पर भी बहुत एक्टिव हैं पर, बाजार की ताकतें बहुत बलशाली हैं। अनेक कॉस्मेटिक कंपनियां जिनका बहुत विक्रय इन कॉस्मेटिक्स को महंगे दामों पर बेचकर अति मुनाफा कमाने का है वह क्यों प्राणी संरक्षण के प्रति संवेदनशील होने लगीं। वह लाखों में तो क्या करोड़ों में राशि लगाकर अपने उत्पाद की बिक्री करतीं और उसे बढ़ाती हैं इसलिए उनसे किसी संवेदना की बात करना व्यर्थ है।
इसके भी आगे बढ़कर अब यह बात भी इन प्रसाधन सामग्रियों में शामिल की जा रही है इनमें बहुत अधिक मात्रा में रसायानों का उपयोग किया जाने लगा है। गौरा बनाने की क्रीम (जिसकी सर्वाधिक बिक्री होती है।) में तो रसायन ही रसायन है। उसमें कोई भी प्राकृतिक तत्व नहीं है। अब यह भी बात सामने आई है कि चेहरे व शरीर पर लगाई जाने वाली वह क्रीम जिसमें त्वचा के मृत कोषों को साफ करने की बात की जाती है उसमें बहुत सूक्ष्म मात्रा में माइक्रोबीड्स प्रयोग में लाए जाते हैं जिसमें बहुत ही महीन प्लास्टिक के तत्व शामिल होते हैं। यह तत्व टूथपेस्ट, साबुन तथा इसी तरह के अन्य उत्पादनों में मौजूद होते हैं। यह माइक्रोबीड्स त्वचा के लिए तो हानिकारक हैं ही, साथ ही यह पानी में पहुंचकर उसे अशुद्ध करते हैं और अपने दुश्चक्र से वृक्षों, पेड़-पौधों यहां तक की मिट्टी में भी पहुंचकर सारे वातावरण को भी अशुद्ध करते हैं।
कौन ऐसी महिला होगी जो प्रसाधन लगाकर सुंदर न दिखना चाहती होगी? अब तो पुरुष भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। उनके लिए भी गौरा बनाने की क्रीम बाजार में उपलब्ध हैं। जिस बात पर विशेष जोर दिया जा रहा है कि जहां तक हो सके इन रसायनों के प्रयोग से बचा जाए। प्रकृति में बहुत से तत्व और उत्पाद मौजूद हैं जो हमारी सहायता कर सकते हैं। कम से कम इन प्रसाधनों के रसायनों से यदि विकृति वाले शिशु जन्म ले रहे हैं तो यह स्थिति भयावह हो सकती है। पश्चिम में अभियान चलाने वालों ने यह भी कहा है कि जरा ठहरिए! और गौर कीजिए कि अजीब-अजीब विकृति वाले शिशुओं का जन्म क्यों हो रहा है। विचार कीजिए और प्रकृति व पर्यावरण के साथ अपने शिशुओं की भी रक्षा करें।
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