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Gagar Men Sagar

फिल्मी गीतों के शब्दों में गूंजती असमानता

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Jan 3 2017 10:58AM | Updated Date: Jan 3 2017 10:58AM
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-वीना नागपाल

मुंबई के एक एनजीओ अक्षरा केंद्र ने एक सूत्र वाक्य दिया है-पेन उठाओ, गाना घुमाओ। ‘‘इस स्वयंसेवी संगठन (एनजीओ) ‘अक्षरा’ के मुंबई के अलग-अलग कॉलेज के कई युवक व युवतियां सदस्य हैं। इनका कहना है कि फिल्मों में ऐसे गीत रचे जाते हैं जिनमें महिलाओं के प्रति ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिसमें उनके प्रति असमानता व अनादर के भाव स्पष्ट झलकते हैं। बात तो उनकी शत-प्रतिशत सही है।

यह युवक व युवतियां इन फिल्मी गीतों की पुन: रचना कराते हैं। धुन वही रहती है पर, शब्द बदल जाते हैं। हैरानी की बात यह है कि यह पुन: रचित गीत भी बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं और इनका विक्रय भी खूब हो रहा है। यह एनजीओ महिला व पुरुष समानता के लिए 21 वर्षों से काम कर रहा है और इसमें नए युवक व युवतियां शामिल होते जा रहे हैं। इन युवाओं का कहना है कि प्राय: और सामान्यतया भी हम धुनों को तो गुनगुनाते रहते हैं परंतु इनके शब्दों पर ध्यान नहीं देते और उन्हीं शब्दों में महिलाओं के प्रति बरती जाने वाली असमानता और उसे प्रोत्साहित करने वाले शब्द निहित होते हैं। महिलाओं को केंद्र में रखकर उनके प्रति अनादर के भावों वाले शब्दों से पुरुषों की मानसिकता कैसी होगी या बनेगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे- खाली-पीली टोकने का नहीं, तेरा पीछा करूं तो टोकने का नहीं...। इसका मतलब सीधा-सीधा यह हुआ कि युवती या किशोरी का खुलकर पीछा किया जाए और उसे परेशान किया जाए, उसे इसका विरोध नहीं करना चाहिए। बहुत धमकी भरे शब्द हैं। मुन्नी बदनाम हुई...और शीला की जवानी... जैसे गीतों में खुलकर महिलाओं का अपमान किया गया है। ऐसे भाव वाले शब्दों पर पूरी तरह रोक लगाना चाहिए। फिल्मों में ऐसे गीतों की रचना पूरी तरह बंद होना चाहिए जो महिलाओं के प्रति बरती जाने वाले अश्लीलता के भावों को बढ़ावा देते हैं। प्राय: ऐसे शब्द जैसे - आयटम, चीज, माल, पटाखा/पटाका जैसे शब्दों का प्रयोग फिल्मों में खूब किया जाता है। तन्वी राणे जो इस संगठन से जुड़ी हैं-कहती हैं कि फिल्मों में जब ऐसे शब्दों का इतना अधिक और बिना रोक-टोक प्रयोग किया जाता है तो इन्हें सुनकर तथा इन्हें फिल्मों में देखकर लोग बिना किसी हिचकिचाहट या सोचे-समझे बगैर इन शब्दों को अपनी बोलचाल की भाषा में शामिल कर लेते हैं। जहां कोई युवती और किशोरी दिखी कि वह इन शब्दों का उसके लिए प्रयोग कर देते हैं। इस संगठन ने कॉलेज स्टूडेंट्स के लिए एक प्रतियोगिता रखी है जिसमें भाग लेने वाले उन प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया जाएगा जो इसी तरह के फिल्मी गीतों के शब्दों को बदलकर सुंदर व शालीन शब्दों से उनकी पुनर्रचना करेंगे। अभी इस अभियान में 220 कॉलेज शामिल हो गए हैं और अब इसे अन्य शहरों व कस्बों में पहुंचाकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान का रूप दिया जा रहा है। हैशटैग बॉलीवुड कैन चेंज का प्रयोग कर इसकी बात दूर-दूर तक पहुंचाई जा रही है।

प्रत्येक को इस अभियान के बारे में जानकारी दी जाना चाहिए, जो महिलाओं को सामाजिक स्तर पर एक प्रतिष्ठा व सम्मान दिलाता है तथा उनके साथ बरती जाने वाली असमानता व भेदभाव को दूर करता है। यह कितनी प्रसन्नता व अनादर की बात है कि एक बहुत बड़ा युवा वर्ग इस दिशा में न केवल सोच रहा है बल्कि सकारात्मक कदम भी उठा रहा है। जब युवक व युवतियां मिलकर असमानता का किसी भी बात को न केवल असहन करेंगे बल्कि उसके मूल की प्रत्येक बात निकाल बाहर करने की बात करेंगे। तब यह तय है कि आज नहीं तो कल इसका सकारात्मक परिणाम अवश्य दिखेगा। असमानता मिटाने का यह विचार अगर युवा शक्ति का ही अभियान बन गया तब तो आने वाली पीढ़ी महिला हितैषी ही बनेगी और उसी तरह व्यवहार करेगी। अंतत: का व्यवहार ही निर्णायक साबित होगा कि महिलाओं को कितनी समानता व कितना सम्मान समाज में मिलेगा।

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