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Gagar Men Sagar

आर्थिक नाकेबंदी में उलझा मणिपुर

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 31 2016 10:51AM | Updated Date: Dec 31 2016 10:51AM
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-डॉ. राजेंद्र सिंह चंदेल
मेम्बर आॅफ नार्थ-ईस्ट मिनिस्ट्री


मणिपुर सरकार ने 28 अक्टूबर 2016 को दो जिलों सदर हिल्स और जिरिबाम का प्रस्ताव रखा, जिसमें नागा यूथ फेडरेशन ने 30 अक्टूबर, को 24 घंटे बंद का आह्वान रखा और 1 नवंबर से इंफाल, दिमापुर एन.एच.-2 व इंफाल जिरिबाम एन.एच. 37 आर्थिक नाकेबंदी शुरू कर दी। नागा यूथ फेडरेशन की मांग थी कि इन जिलों में नागाआें का क्षेत्राधिकार है और उनसे सलाह लिए बिना जिला क्यों बनाया, आर्थिक नाकेबंदी के दौरान चंदेल जिले के लोकचाद गांव में नागा विद्रोही समूह ने फायरिंग के दौरान मणिपुर पुलिस के तीन जवान मार दिए और 9 बंदूकें उठाकर ले गए। दूसरी घटना तामेंललांग जिले के नागकोउ पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया जिसमें 14 लोग घायल हो गए। इस दौरान पुलिस ने नागा विद्रोही समूह के अध्यक्ष व सचिव को गिरफ्तार कर लिया। इसी बीच मणिपुर सरकार ने सात नए जिलों की घोषणा कर दी।

नागा नेताओं को साथ शामिल करके सदर हिल्स का नाम बदल कर काईपोउ हिल्स रख दिया। अब नागा नेताओं की मांग सरकार के साथ यह थी कि नागा विद्रोही समूह के अध्यक्ष व सचिव को गिरफ्तार किया है, उनको बिना कोई चार्ज लगाए छोड़ दिया जाए। कुछ जिलों को लेकर नागा नेताओं में असंतोष का भाव यह भी था कि सात नए जिले बनाते समय या नागाओं के विषय में निर्णय लेते समय हमें शामिल क्यों नहीं किया जाता है। नागा विद्रोही समूह का मानना है कि मणिपुर सरकार ने सात नए जिले बनाते समय हमसे कोई सलाह नहीं ली। आज 60 दिन की आर्थिक नाकेबंदी के बाद मणिपुर राज्य को देश के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया। रोजमर्रा व खाने पीने की वस्तुओं की राज्य में भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। गैस 3000 रुपए, पेट्रोल 200 रुपए लीटर, चावल 60 से 65 रुपए किलो, दाल 175 रुपए किलो में भी नहीं मिल पा रही है। बस व आॅटो वाले लोगों से कई गुना ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं। आने-जाने के लिए पैदल व साइकिल का सहारा है।

अस्पतालों में आक्सीजन की कमी है तो वहीं जीवन रक्षक दवाएं भी खत्म होने के कगार पर है। 16 अपै्रल 2010 में भी मणिपुर के नागा बहुल क्षेत्रों में दो राष्ट्रीय राजमार्गां की आर्थिक नाकेबंदी कर नागा संगठनों ने मणिपुर को देश के बाकी हिस्सों से काट दिया था। उस दौरान भी मणिपुर के हालात काफी खराब हो गए थे। 24 लाख भारतीय की जान खतरे में थी और मणिपुर सरकार जनता को राहत पहुंचाने के लिए कुछ खास नहीं कर पा रही थी और आज फिर हलात वैसे ही हो गए हैं।

वास्तव में इस नौटंकी की सच्चाई यह है कि एन.सी.एन. का नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल और नगालैंड उत्तर-पूर्व राज्यों का एक खतरनाक आतंकवादी संगठन है। उत्तर पूर्व में जितने भी आतंकवादी संगठन चल रहे हैं सभी पर इसी आतंकवादी संगठन का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हाथ है, वहां पर जितनी भी जातीय हिंसा होती है सब इसी के द्वारा षड़यंत्र पूर्वक कराई जाती है, जिससे वहां पर धर्मांतरण व अलगाववाद को बढ़ावा मिल सके। इस संगठन को चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशों से धन व हथियारों के रूप में मदद मिलती है। इसके पास ऐसे हथियारों का जखीरा है, जो हथियार भारतीय सेना के पास भी नहीं मिलेंगे। इस संगठन से जुड़े हुऐ लोग हथियारों की तस्करी ड्रग्स, चरस, गांजा, लड़कियों को खरीदना- बेचना सहित अन्य आतंकवादी संगठनों को सैन्य प्रशिक्षण भूटान व म्यामार के जंगलों में देता है। उसके एवज में उन आतंकवादी संगठनों से रुपए लेता है जो जाली नोटों के कारोबार से जुड़े हुए हैं। जाली नोट भारत के अंदर घुसपैठियों के माध्यम से भारत में भेजे जाते हैं। इस सब व्यापार में लगे हुए लोगों को एक फिक्स कमीशन (अलग-अलग व्यापार के अनुसार) एन.एस.सी.एन (आई.एम.) आतंकवादी संगठन को देना होता है। नगालैंड में इस आतंकवादी संगठन की न केवल समांतर सरकार चलती है बल्कि टैक्स के रूप में नागरिकों से भारी मात्रा में पैसा भी वसूल कर रही है। वहां के नागरिकों को डबल टैक्स देना होता है। आतंकवादी संगठन दो गुटों में बंटा हुआ है। एक का नेतृत्व ईसाक मुइवा करता है जो मणिपुर के उखरूल जिले के सोमड्रोल गांव का रहने वाला है। दूसरा गुट एस.एस. खापलांग के द्वारा चलाया जाता है जो मूलत: म्यांमार का रहने वाला है। इसाक मुईवा गुट भारत से पूरी तरह से अलगववाद चाहता है जबकि खापलांग गुट भारत के साथ रहते हुए कुछ मामलों में स्वतंत्रता चाहता है।

विभाजन के समय अरुणाचल, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम असम के ही भाग थे। 1956 ई. के शुरू में नागा हिल्स में हुए सशस्त्र विद्रोह को सैनिक अभियान चलाकर कानून व्यवस्था कायम की गई। 1961 में नागाहिल्स को नगालैंड नाम दे दिया गया, जो 1 दिसंबर 1963 को असम से पृथक होकर भारत का 16वां राज्य बना। मणिपुर भारत के विलय 15 अक्टूबर 1949 को ही हो गया था। स्वतंत्रता के पूर्व मणिपुर राज्य सत्ता के अधीन थी, जिनके आखिरी राजा महाराजा बोधचंदे्र थे। मणिपुर 1956 तक यूनियन टेरीटरी के रूप में था। 21 जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। तब मणिपुर में नागाओं का कोई नामो निशान नहीं था।  

नगालैंड को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से ही नागाओं का भारत से पूर्ण रूप से अलगाववाद पर भारत सरकार से समय-समय पर हिंसा के रास्ते अपनी मांगों को रखते रहे हैं। विस्तारवादी नीति के तहत नगालैंड से सटे हुए मणिपुर को चार जिले, चंदेल जिला जिसका क्षेत्रफल 3.313 कि.मी. उखरूल -4594 कि.मी., सेनापति 3271 कि.मी., तामेलांग 4391 कि.मी. की है। असम के पांच जिले, जिनका कुल क्षेत्रफल 24343 कि.मी है और अरुणाचल प्रदेश का 83743 कि.मी. मिलाकर  वह अपना क्षेत्रफल बढ़ाकर ग्रेटर नगालैंड की मांग कर रहा है। अपनी मांग में बताया है कि लोकतंत्र के अनुसार सभी नागाओं को एक साथ रहने का जन्म सिद्ध अधिकार है।

वास्तव में मणिपुर राज्य में तीन जातियों का प्रभुत्व है। मैतैई जो मणिपुर के प्लेन एरिया में निवास करती है और 65 फीसदी हिंदू हैं जो मूलत: भगवान कृष्ण के मानने वाले हैं। दूसरा, कूकी जाति है जो पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती है, इनमें कुछ ईसाई धर्म को मानते हैं और कुछ आदिवासी हैं। तीसरी नागा जाति है, जो पूर्ण रूप से ईसाई धर्म को मानने लगी है।  संभावना यह भी जताई जा रही है कि नरेंद्र मोदी की नोटबंदी के सहारे भाजपा असम की तरह मणिपुर में भी सरकार बना सकती है, क्योंकि वहां की आर्थिक नाकेबंदी से मणिपुर की जनता को काफी परेशानियों का सामना झेलना पड़ रहा है। इस पूरी घटना की वास्तविकता चाहे जो हो या राजनीतिक ड्रामा हो परंतु मणिपुर की भोली भाली जनता को यह दंश झेलना पड़ रहा है।

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