-सतीश सिंह
आर्थिक व समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
कानपुर देहात के नजदीक 28 दिसंबर की सुबह सियालदह अजमेर एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हो गई, जिसमें 50 से अधिक लोग जख्मी हो गए। इस दुर्घटना में ट्रेन के 15 डिब्बे पटरी से उतर गए। दो डिब्बे तो नहर में गिर गए। महज 38 दिनों के अंदर यह दूसरी रेल दुर्घटना है। इसके पहले कानपुर के निकट पुखरायां में 20 नवंबर को हुए हादसे में 145 लोगों की मौत हुई थी।
देश में तकरीबन 19,000 रेलगाड़ियां रोजाना चलती हैं और रेल दुर्घटनाएं अमूमन आए दिन होती हैं, जिनके कारण मानवीय भूल, आतंकी कार्रवाई, आधारभूत संरचना का अभाव आदि होते हैं। इंसान की जब स्वाभाविक मौत होती है, तो किसी को अफसोस नहीं होता है, लेकिन अकाल मृत्यु सभी सगे-संबंधियों के लिए तकलीफदेह होती है, बावजूद इसके रेलवे के लिए सुरक्षा का मुद्दा आज भी हाशिए पर है।
देखा जाए तो ट्रेन दुर्घटनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है। 16 जून, 2004 को मत्स्यगंधा एक्सप्रेस के महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में पटरी से उतर जाने के कारण 20 यात्रियों की मौत हो गई थी और 60 से अधिक लोग घायल हो गए थे। 29 अक्टूबर, 2005 को आंध्र प्रदेश के नलगोंडा जिले में एक यात्री रेलगाड़ी के नदी में गिर जाने से 100 लोगों की मौत हो गई। 21 अक्टूबर, 2009 को उत्तरप्रदेश के मथुरा के नजदीक दो रेलगाड़ियों के आपस में टकरा जाने से 15 लोगों की मौत हो गई और 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए। 2 जनवरी, 2010 को उत्तरप्रदेश में घने कोहरे के कारण हुई दो अलग-अलग दुर्घटनाओं में चार लोग मारे गए और 40 से अधिक लोग घायल हो गए। 7 फरवरी 2014 को महाराष्ट्र के नासिक जिले में निजामुद्दीन एर्नाकुलम मंगला एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने से तीन यात्रियों की मौत हो गई और 37 लोग घायल हो गए। 8 जनवरी 2014 को सूरत के निकट बांद्रा देहरादून एक्सप्रेस के तीन कोच में आग लग जाने से चार यात्रियों की मौत हो गई और पांच लोग घायल हो गए। 4 मई 2014 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में कोंकण रेलवे की दिवा-सावंतवाड़ी पैसेंजर ट्रेन के पटरी से उतरने के कारण 18 यात्रियों की मौत हो गई एवं 124 लोग घायल हो गए। 26 मई 2014 को उत्तरप्रदेश के संत कबीर नगर में दिल्ली-गोरखपुर एक्सप्रेस के खड़ी माल गाड़ी से टकरा जाने के कारण 11 लोगों की मौत हो गई तथा 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए।
1 अक्टूबर, 2014 को उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले में बरौनी एक्सप्रेस के पटरी से उतरे डिब्बों से बगल की पटरी से गुजर रही कृषक एक्सप्रेस के इंजन के टकराने से 15 यात्रियों की मौत हो गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए। 7 नवंबर 2016 को बिहार के दरभंगा में ट्रेन की चपेट में आ जाने से तीन महिलाओं समेत पांच लोगों की मौत हो गई।
देश के ट्रेनों में हर दिन सवा करोड़ से ज्यादा लोग सफर करते हैं। दुर्घटना में जिस तरह से लोग मर रहे हैं, उसकी भरपाई करना मुश्किल है। आए दिन होने वाली ट्रेन दुर्घटनाएं कई सवाल पैदा करती हैं। दुर्घटनाओं के आलोक में गलतियां की पहचान एवं उसके निदान के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। समस्या का निराकरण, हादसे के कारण का पता लगाने वाली गठित जांच समितियों, रेल सुरक्षा या फिर रेलवे के आधुनिकीकरण को लेकर बनाई गई समितियों से नहीं होनेवाला है, क्योंकि आमतौर पर समितियों की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी जाती है।
भारत का रेल नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्कों में से एक है। इसका रख-रखाव रेलवे के लिए कई कारणों से चुनौतीपूर्ण है। सवाल कुशल मानव संसाधन की कमी, कुशल प्रबंधन का अभाव एवं आधारभूत संरचना को मजबूत करने से भी जुड़े हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या वित्त पोषण की है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में भारतीय रेल गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रही है। वर्तमान में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए की लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए रेलवे के पास पूंजी नहीं है। इसलिए, आज जरूरत है रेलवे को गैर-किराया संसाधनों से 10 से 20 प्रतिशत राजस्व हासिल करने की, लेकिन इस मद में फिलहाल तीन प्रतिशत से भी कम राजस्व अर्जित किया जा रहा है। 10 प्रतिशत गैर-किराया संसाधन हासिल करने का मतलब होता है कि रेलवे 15,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष अतिरिक्त राजस्व प्राप्त कर रहा है। उसमें किसी तरह का कोई पूंजीगत खर्च शामिल नहीं है। विश्वभर में रेलवे आय में गैर किराया राजस्व का बड़ा हिस्सा होता है। कुछ देशों में इसका प्रतिशत 35 से भी अधिक होता है। फिलहाल भारतीय रेल के पास जमीन के रूप में करोड़ों-अरबों की संपत्ति बेकार पड़ी हुई है, जिसके तार्किक इस्तेमाल से अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है। इसके नजरिए से विज्ञापन के जरिए आसानी से पैसा कमाया जा सकता है।
रेलवे के पास लगभग 60,000 कोच, 2.5 लाख वैगन, 10,000 लोकोमोटिव और 7,000 से भी अधिक स्टेशन हैं। इन संसाधनों का इस्तेमाल करके रेलवे प्रत्येक साल करोड़ों-अरबों रुपए कमा सकता है। आज के माहौल में रेलवे के विकास के लिए पीपीपी मॉडल अपनाने की जरूरत है, ताकि रेलवे का विकास सुनिश्चित किया जा सके। इस क्रम में राजस्व बढ़ाने के लिए बजट में रेलवे की क्षमता और उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जा सकता है। एक आकलन के मुताबिक रेलवे में आमूलचूल सुधार लाने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 2.5 से 3.0 प्रतिशत तक इसका योगदान हो सकता है। रेलवे में सुधार इस बात पर भी निर्भर करेगा कि खर्च और बचत के बीच संतुलन बनाकर आगे की दशा और दिशा तय की जाए। साथ ही, खर्च पर लगातार निगरानी रखते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि खर्च उसी मद में किया गया है, जिसके लिए उसका आवंटन किया गया था।
कहा जा सकता है कि भारत को आज विदेशों की तरह 200 किलोमीटर प्रतिघंटे से ज्यादा रफ्तार वाली बुलेट या हाई स्पीड ट्रेन की जरूरत नहीं है। इस तरह की योजनाएं हमारे देश के लिए व्यावहारिक नहीं हैं। मौजूदा समय में रेलवे में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए भारी-भरकम पूंजी, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, कुशल प्रबंधन, मानव संसाधन को सक्षम बनाने जैसे कवायद करने की जरूरत है। निजी पूंजी रेलवे में लाने के मामले में पीपीपी मॉडल अपनाने और विदेश से पूंजी लाने की कोशिश की जा सकती है। इसके साथ ही मौजूदा संसाधन के युक्तिपूर्ण उपयोग, मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल, भ्रष्टाचार पर काबू आदि की मदद से भी स्थिति को बेहतर किया जा सकता है। ऐसा करने से रेलवे की आय में इजाफा हो सकता है, जिसका उपयोग यात्रियों की यात्रा को सुखद एवं सुरक्षित बनाने में किया जा सकता है।