17 Apr 2024, 04:30:46 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-पुण्य प्रसून बाजपेयी
वरिष्ठ पत्रकार


वेल्लूर 24 करोड़ तो दिल्ली 15 करोड़ 65 लाख। चेन्नई 10 करोड़ तो चित्रदुर्ग पांच करोड़ 70 लाख। गोवा में डेढ़ करोड़ और उसके बाद मुंबई से लेकर कोलकाता और जयपुर से लेकर पुणे तक और गाजियाबाद से लेकर गपडगांव यानी गुरुग्राम तक लाखों के नए नोट जब्त किए गए हैं। देश के सिर्फ 16 ही नहीं बल्कि 32 जगहों से जो अवैध नए नोटों को पकड़ने का सिलसिला जारी है या कहे 500 और 2000 के नए नोट निकल कर सामने आए हैं, उसमें सवाल यही बड़ा है कि पकड़ने वालों की पीठ थपथपायी जाए या फिर नोट पहुंचाने वालों को सजा दी जाए।

संयोग से जिन्होंने नोट पहुंचाए और जिन्होंने नोट पकड़े दोनों ही सरकारी मुलाजिम हैं। या कहें उसी सिस्टम का हिस्सा है जिस सिस्टम पर भरोसा कर देश को कैशलेस बनाकर बैकिंग सर्विस से जोड़कर करप्शन मुक्त या कालाधन मुक्त होने का सपना देखा दिखाया जा रहा है। तो क्या ये वाकई सपना है, क्योंकि नोटबंदी से पहले जो सिस्टम था वही करप्ट था और नोटबंदी केबाद जिस साफ सिस्टम की वकालत की जा रही है, उसी में करप्शन है और बैंकिंग  सर्विस में भ्रष्टाचार है, इसे पीएमओ भी अगर मान रहा है और उसे स्टिंग कराने की जरूरत पड़ रही है तो देश के तीन सच से आंखें किसी को नहीं मूंदनी चाहिए।

पहला, सिस्टम ठीक तभी होगा जब देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा। दूसरा, इन्फ्रास्ट्रक्चर तभी होगा जब जनता सिस्टम का हिस्सा होगी। तीसरा, जनता सिस्टम में शामिल तभी होगी जब सत्ता जनता के बीच होगी। ध्यान दें तो अभी तक सत्ता का मिजाज जनता को सरकार के रहमोकरम पर रखने वाला है। यानी देश का किसान मालामाल नहीं हो सकता। देश का मजदूर दो जून के लिए भटकना छोड़ नहीं सकता। 70 करोड़ की आबादी के लिए सरकार के पास सिर्फ मदद या राहत पैकेज है, जिसे वही सरकारी कर्मचारी या संस्थान पहुंचाते हैं, जो करप्ट हैं। तो फिर नोटबंदी के बाद सिस्टम का दायरा जब बैंकिंग सर्विस और तकनीक पर आ टिका है और नोटों के उत्पादन से ज्यादा नोटों की मांग है तो फिर सिस्टम को और ज्यादा करप्ट होने से कौन सा सिस्टम रोक पाएगा, क्योंकि नोटबंदी से पहले सिस्टम करप्ट था। नोटबंदी के बाद करप्शन ही सिस्टम हो रहा है, क्योंकि देश के एक लाख तीस हजार बैंक शाखाओं में से पांच सौ बैंकों में स्टिंग और किसी ने नहीं पीएमओ ने कराया। खबर आ गई कि जहां जहां स्टिंग हुआ वहां वहां गड़बड़ी हुई है, तो अब उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। यानी जो भ्रष्टाचार होना नहीं चाहिए था, वह भ्रष्टाचार देश की सफाई के लिए उठाए गए सबसे बड़े कदम के दौर में वही बैंक कर रहा है, जिस बैंकिंग सर्विस पर सरकार को भरोसा है कि आने वाले वक्त में यही तरीका देश को बचा सकता है। यानी भ्रष्टाचार खत्म कैसे हो इसका उपाय किसी के पास नहीं। तो क्या देश स्टिंग आॅपरेशन के आसरे चल सकता है। ये सवाल कल भी था और आज भी है। कल केजरीवाल के लिए ये हथकंडा था और प्रधानमंत्री मोदी के लिए। तो ये मान भी लिया जाए कि हर जगह कैमरा लगा होगा। हर जगह पर सीधे सत्ता नजर रखेगी। यानी कोई भ्रष्ट ना हो या बैक इस तरह कैश ना बांटे जैसा स्टिंग आॅपरेशन में नजर आया होगा। अगला सवाल यह है कि कैशलेस करप्शन पर रोक के लिए कौन सा स्टिंग होगा, क्योंकि जनता का ही बैंकों में जमा रुपया कॉरपोरेट को बांटा गया। जो कैश नहीं चैक या खातों में ट्रांसफर कर दिखाया जाता है और उसी कड़ी में नॉन परफॉर्मिंग एसेट यानी एनपीए की राशि बीते 10 बरस में 10 लाख करोड़ से ज्यादा की हो चुकी है। तो क्या जिन बैंक मैनेजरों ने जिन राजनेताओं के कहने पर जिन कॉरपोरेट को करोड़ों रुपए का कर्ज दिया और जो कॉरपोरेट जिन राजनेताओं के कंघे पर सवार होकर बैंकों को कर्ज की रकम नहीं लौटा रहे हैं, क्या वह करप्शन नहीं है। यदि है तो उसके लिए कौन-सा कानून किस तरह देश में काम कर रहा है।

अगर सरकार ये सोच रही है कि आने वाले वक्त में बैकिंग सर्विस के दायरे में समूचा देश होगा और बैकिंग सर्विस पर निगरानी रखकर करप्शन को खत्म किया जा सकता है, तो ये नजरिया कब कैसे पूरा होगा, कोई नहीं जानता। फिलहाल 97 बैंकों की एक लाख 30 हजार शाखाएं देशभर में हैं और 10 बरस पहले यानी 2005 में बैंकों की 70373 शाखाएं देशभर में थीं। यानी दस बरस में करीब दुगनी शाखाएं देशभर में खुलीं, लेकिन देश का सच यही है कि 93 फीसदी ग्रामीण भारत में बैंक है ही नहीं । शहरों में प्रति बैंक शाखा औसतन 10 हजार लोग हैं, और मौजूदा वक्त में प्रतिदिन नोट बांटने की कैपिसिटी प्रति शाखा सिर्फ 500 लोग है। यानी मौजूदा सिस्टम को ही पटरी पर लाने के लिए जो इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए, उसमें कई गुना सुधार की जरूरत है। ये जरूरत कितने दिनों में कैसे पूरी होगी, कोई नहीं जानता।

अगला सवाल ये हो सकता है कि क्या स्टिंग आॅपरेशन सिर्फ ये बताने के लिए है कि सरकार काम कर रही है, क्योंकि सरकार को बखूबी मालूम है कि उसके पास वक्त सिर्फ 30 दिसंबर तक का है, क्योंकि फिर दांव पर प्रधानमंत्री मोदी का वचन होगा। ऐसे में अगर पीएम मोदी संसद में कहेंगे तो क्या कहेंगे और अगर राहुल गांधी भी संसद में कहेंगे तो क्या कहेंगे। जाहिर है बैकिंग सर्विस, टेक्नोलॉजी और कैशलेस पेमेंट के जरिए कालेधन, भ्रष्टाचार पर नकेल से आगे पीएम क्या कह सकते हैं। राहुल गांधी नए हालात में इन्हीं सबसे पैदा हुए मुश्किल हालात से आगे क्या कहेंगे। जब रैलियों में पीएम के तेवर के अक्स में संसद में मोदी के बोलने का इंतजार करें तो मोदी सीधे देश के बिगडेÞ हालात के लिए नेहरू गांधी परिवार को कटघरे में खड़ा कर सकते हैं। भ्रष्टाचार और कालेधन को आश्रय देने वाली व्यवस्था के लिए गांधी परिवार को सबसे भ्रष्ट बता सकते हैं। दूसरी तरफ राहुल मुश्किल हालात में प्रधानमंत्री मोदी को नीरो करार दे सकते हैं, जो देश के जलने पर ईमानदारी की बांसुरी बजा रहे हैं, क्योंकि देश के राजनेताओं की भाषा तो फिलहाल यही हो चली है। सवाल यह भी है कि संसद में क्या कोई नेता ये कहने की हिम्मत दिखाएगा कि संसद ही जिस जमीन पर खड़ी है और उसमें बैठकर देश के नाम संबोधन का जो जुमला हर राजनीतिक दल गढ़ रहा है, क्या उस जमीन से जनता का वाकई कुछ लेना-देना है। यानी सवाल सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी या राहुल गांधी भर का नहीं है। सवाल है कि बीते 34 दिनो में क्या किसे ने ईमानदारी से संसद में बताया कि उनकी राजनीतिक पार्टी चलती कैसे है। कॉरपोरेट या निजी पूंजी की इकोनॉमी का इन्फ्रास्ट्रक्चर ही देश चला रहा है। सत्ता पूंजी के आसरे व्यवस्था चलाती है न कि मानव-संसाधन के आसरे। भ्रष्टाचार कौन करता है ये बताने के लिए किसी सिस्टम की जरूरत नहीं है और कालाधन किसके पास है ये जानने के लिए बैंकिंग सर्विस की जरूरत भी नहीं है। जरूरत सिर्फ इस सच के साथ खड़े होने की है कि कानून और संवैधानिक संस्थान अपनी जगह अपना काम करे। आखिर करप्शन ही सिस्टम कैसे हो जाता है, ये कहां किसी से छुपा है।

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