20 Apr 2024, 03:29:17 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-सतीश सिंह
आर्थिक विषयों के जानकार


अपेक्षित सफलता नहीं मिलने के कारण नोटबंदी पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। आठ नवंबर को नोटबंदी की घोषणा करते हुए कहा गया था कि नोटबंदी से काले धन एवं जाली करेंसी के चलन को कम करने में मदद मिलेगी, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ सरकार के दावे खोखले लगने लगे हैं। आम जनता की जान गई और परेशानी हुई सो अलग। लिहाजा, काले धन एवं जाली करेंसी पर लगाम लगाने के लिए जानकार देश में पॉलिमर करेंसी को चलन में लाने की बात कह रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले साल 10 रुपए के पॉलिमर करेंसी के चलन को प्रयोग के तौर पर देश के कुछ शहरों में शुरू किया गया था। शहरों का चुनाव वहां की नमी एवं वायुमंडलीय विविधता को दृष्टिगत करते हुए किया गया था, क्योंकि  भारत का मौसम विविधतापूर्ण है और पॉलिमर करेंसी में मौजूद विविध रसायनों पर जलवायु के उतार-चढ़ाव का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

मालूम हो कि पॉलिमर करेंसी को छापने वाली आॅस्ट्रेलिया की कंपनी सिक्युरेंसी 1999 में भी 10 और 100 रुपए की पॉलिमर करेंसी छापने का प्रस्ताव लेकर रिजर्व बैंक के पास आई थी, जिसे केंद्रीय बैंक ने खारिज कर दिया था। हालांकि, बाद में रिजर्व बैंक ने उनके प्रस्ताव पर सकारात्मक रुख अपनाने की बात कही। बहरहाल, नोटबंदी से देशभर में आमजन को हुई फजीहत को दृष्टिगत करते हुए पॉलिमर करेंसी के चलन को शुरू करने के प्रस्ताव पर व्यापक फलक व प्लेटफॉर्म पर इसके गुण-दोष की विवेचना करने की जरूरत है।  

पॉलिमर करेंसी को गैर-तंतु तथा बिना छिद्र के पॉलिमर से बनाया जाता है, जबकि कागज के करेंसी को कागज कॉटन कॉम्बरर एवं लिंटर से प्राप्त लंबे रेशे वाले तंतुओं से बनाया जाता है। पॉलिमर करेंसी की आयु पांच साल मानी गई है, जबकि कागज के करेंसी की आयु एक साल की होती है। अधिक लागत और कम उम्र होने के कारण इसे महंगी करेंसी माना जाता है। पॉलिमर करेंसी को चलन में लाने वाला दुनिया का सबसे पहला देश आॅस्ट्रेलिया है। आॅस्ट्रेलिया में पॉलिमर करेंसी का इस्तेमाल 1988 से किया लाया जा रहा है। वैसे, 1980 के दशक में सबसे पहले कोस्टारिका में पॉलिमर करेंसी नोटों को चलन में लाया गया था, लेकिन लोकप्रिय नहीं होने के कारण जल्द ही इसे बंद भी कर दिया गया। पॉलिमर करेंसी को छापने वाली आॅस्ट्रेलिया की कंपनी सिक्युरेंसी का कारोबार मौजूदा समय में विश्व के 23 देशों में फैला हुआ है। यह कंपनी बांग्लादेश, नेपाल, मलेशिया, सिंगापुर, मेक्सिको, हांगकांग, श्रीलंका आदि देशों को इसकी आपूर्ति कर रहा है।

आॅस्ट्रेलिया सहित कुल 29 देशों में पॉलिमर करेंसी का इस्तेमाल फिलहाल किया जा रहा है। भारत में कागज के करेंसी के चलन में आने का एक लंबा इतिहास रहा है। यहां करेंसी का चलन मुगल साम्राज्य के पतन के कारण देर से शुरू हुआ, लेकिन बाद में यह बहुत  लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश शासनकाल में भी यह सरकार की प्राथमिकता में रहा। आजादी के बाद भी इसी करेंसी को तरजीह दी गई। फिलहाल, चीन के बाद भारत कागज की करेंसी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है। कुछ लोगों का कहना है कि पॉलिमर करेंसी का चलन भारत में व्यावहारिक नहीं है, क्योंकि इसे मोड़ना मुश्किल है। फिसलन की वजह से इसे गिनने में परेशानी होती है। छोटे या जेन्ट्स पर्स में भी इसे नहीं रखा जा सकता है। भले ही अस्सी के दशक से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन अभी तक इसको नष्ट करने का ठोस एवं त्रुटिरहित तरीका नहीं ढूंढा जा सका है। यह बायो-डिग्रेडबल भी नहीं है। आज भी इसे आग में जलाकर नष्ट किया जाता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। सबसे बड़ा सवाल इसकी प्रासंगिकता को लेकर है, क्योंकि विश्व के अनेक देशों में यह सफलता की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका है। आॅस्ट्रेलिया को छोड़कर महज चुनिंदा देशों ने ही इसे औपचारिक तौर पर अपनाया है। कहा जा रहा है कि पॉलिमर करेंसी बनाने वाली कंपनी सिक्युरेंसी की नजर भारत के विशाल बाजार पर है। सिक्युरेंसी पॉलिमर करेंसी को गार्जियन नामक सब्सट्रेट पर छापती है, जिस पर उसका पेटेंट है। इस एकाधिकार की वजह से आगे आने वाले दिनों में सिक्युरेंसी भारत के लिए मुश्किल खड़ा कर सकती है। इन कमियों की वजह से ही विश्व के अनेक देशों ने अभी भी इस करेंसी को नहीं अपनाया है। 

फिर भी यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि पॉलिमर के बड़े मूल्यवर्ग के करेंसी जारी करके काला धन और जाली नोटों के चलन को भारत में समाप्त किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में तकरीबन 170 हजार करोड़ रुपए चलन में हैं, जिसमें से 28 प्रतिशत नकली हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हर चार करेंसी  में से एक करेंसी जाली है। माना यह भी जा रहा है कि पॉलिमर करेंसी के बाजार में आने से जाली करेंसी नोट पर लगाम लगेगी। साथ ही, करेंसी नोट की उम्र में भी वृद्धि होगी, जिससे सरकार को बार-बार करेंसी नहीं छापना पड़ेगा। कागज की करेंसी की उम्र बहुत छोटी होती है। लगातार एक हाथ से दूसरे हाथ जाने की प्रक्रिया में कागज के करेंसी कमजोर और गंदे हो जाते हैं, जिससे उसके फटने की आशंका बढ़ जाती है। भारत में एक अनुमान के अनुसार 40 अरब कागज के करेंसी चलन में हैं, जिसमें सात अरब करेंसी सिर्फ दस रुपए मूल्यवर्ग के हैं।

इसके अतिरिक्त, कागज के करेंसी की छपाई की लागत पॉलिमर करेंसी से दो गुना महंगी होती है, जिसका फायदा भी आगे आने वाले दिनों में भारत को मिल सकता है। कहा जा सकता है कि आज हमारे देश में कालेधन और जाली करेंसी की एक समानांतर अर्थव्यवस्था चल रही है, जिसके कारण देश की अर्थव्यवस्था खोखला हो चुकी है। पूंजी की कमी के कारण बहुत सारी आधारभूत संरचना वाली परियोजनाएं लंबित पड़ी हैं। स्वास्थ एवं शिक्षा में देश का हर प्रदेश पिछड़ा है। आम आदमी भुखमरी या फिर कुपोषण के कारण असमय काल-कवलित हो रहा है। स्पष्ट है, अर्थव्यवस्था के लिए काला धन और जाली मुद्रा एक गंभीर खतरा है, जिसे पॉलिमर करेंसी काफी हद तक रोकने में सक्षम है। पॉलिमर करेंसी समय की मांग है। बदलते परिवेश में भारत को भी देश की मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुरूप बनाना होगा, ताकि भूमंडलीकरण के दौर में भारतीय मुद्रा की प्रासंगिकता बनी रहे। किसी भी नई शुरुआत के बारे में आशंका का उत्पन्न होना स्वाभाविक है। इसलिए, पॉलिमर करेंसी के चलन को इसी नजरिए से देखा जाना चाहिए और रिजर्व बैंक को करेंसी के तौर पर इसकी शुरुआत करने की पहल करनी चाहिए।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »