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पनीरसेल्वम के सामने कड़ी चुनौतियां

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Dec 7 2016 10:11AM | Updated Date: Dec 7 2016 10:11AM
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-हरिगोविंद विश्वकर्मा
वरिष्ठ पत्रकार


मायावती और ममता बनर्जी की तरह जयराम जयललिता के अत्यधिक प्रभाव के चलते पार्टी के भीतर सेकंड इन कमान, यानी दूसरे नंबर की लीडरशिप नहीं पनप सकी। इसके चलते भविष्य में आॅल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषघम (एआईएडीएमके) को नेतृत्व संकट से गुजरना पड़ सकता है। फिलहाल, जयललिता की गैरमौजूदगी में दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके ओ. पनीरसेल्वम को राजभवन में राज्यपाल विद्यासागर राव ने राज्य के अगले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ तो दिला दी। वे पार्टी को एकजुट रख पाएंगे और उसे जीत दिला पाएंगे यह भरोसा राजनीति के जानकार नहीं कर पा रहे हैं।

पनीरसेल्वम के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनकी पार्टी संगठन पर उतनी मजबूत पकड़ नहीं है, जितनी जयललिता की थी। इतना ही नहीं जयललिता की छत्रछाया में वह अपनी खुद की कोई खास छवि या प्रभाव नहीं बना पाए। भविष्य में अगर किसी दूसरे नेता ने उन्हें रिप्लेस किया, तो उनकी यही कमजोरी जिम्मेदार होगी। तमिलनाडु की दो बड़ी पार्टियों में, डीएमके के एम. करुणानिधि तो अपने बेटे और बेटियों को राजनीति में लाकर अपने उत्तराधिकारी के विकल्प दे चुके हैं, लेकिन जयललिता ऐसा नहीं कर पाईं। यही वजह है कि उनकी पार्टी को भविष्य में नेतृत्व संकट का सामना करना पड़ सकता है।  इसमें दो राय नहीं कि तमिलनाडु ही नहीं, देश की राजनीति में जयललिता ने अपना कद इतना विराट कर लिया था कि उनके दल में कोई भी नेता कद में उनकी बराबरी तो दूर, उनके आसपास भी नहीं पहुंच सकता। यही वजह है कि एआईएडीएमके भविष्य में उसी तरह नेतृत्व संकट से गुजर सकती है, जैसे एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद हुई थी। उस समय रामचंद्रन की पत्नी जानकी रामचंद्रन और जयललिता के बीच उत्तराधिकारी बनने के लिए भयानक संघर्ष और विधानसभा में मारपीट तक हो गई थी। बाद में चुनाव में जानकी की पराजय के बाद जयललिता निर्विवाद रूप से पार्टी की नंबर एक नेता बन गईं।

दरअसल, जैसे उत्तरप्रदेश और बिहार की जनता परिवारवाद आदि की तमाम नाकामी के बावजूद वह मुलायम सिंह यादव, मायावती और लालू प्रसाद यादव में ही भरोसा जताती है, वैसे ही दक्षिण भारत की प्रजा अभिनेताओं को भगवान की तरह पूजने वाले स्वभाव की होती है। ये नेता चाहे जितना भ्रष्टाचार करें, जनता उन्हें ही चुनेगी। यही वजह है कि तमिलनाडु में पिछले 60 साल से बारी-बारी से डीएमके या एआईएडीएमके सत्ता में आती रही है।

वस्तुत: जनता की इसी मानसिकता के कारण दक्षिण के राज्यों में एमजी रामचंद्रन, जयललिता और एनटी. रामाराव का बोलबाला रहा। यहां तक कि द्रविड़ मुनेत्र कषगम के नेता और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके एम. करुणानिधि भी तमिल फिल्म और तमिल साहित्य के नामचीन नाम रहे हैं। तमिलनाडु में रजनीकांत की लोकप्रियता का आलम यह है कि उनकी फ्लॉप फिल्म भी इतना ज्यादा बिजनेस कर लेती है कि हिंदी की हिट फिल्म भी उतने पैसे नहीं कमा पाती है। अब सवाल उठ रहा है कि करिश्माई नेता के नेतृत्व की आदी तमिल जनता 65 साल के पनीरसेल्वम को अपने नेता के रूप में स्वीकार कर पाएगी, इस पर बहुत भारी संदेह है, क्योंकि जयललिता का अंधभक्त होने के नाते उन्हें भले ही सरकार का मुखिया बना दिया गया हो, लेकिन वह पूरी पार्टी को संभालकर एकजुट रख पाएंगे और करुणानिधि को चुनौती दे पाएंगे, इस पर भी दुविधा है। पार्टी में जयललिता का कद इतना बड़ा था कि उनकी पार्टी में सब उनके आगे बौने लगते हैं। यकीनन, पनीरसेल्वम की इमेज जयललिता के कट्टर भक्त की रही है। यहां तक कि 2014 में भ्रष्टाचार के आरोप में जयललिता के जेल भेजे जाने के बाद वह सार्वजनिक मंच पर फूट-फूट कर रोए थे। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते समय भी पूरे देश ने उन्हें मंच पर ही अपने आंसू बहाते देखा था। यही नहीं, इस साल सितंबर में जयललिता के बीमार होने पर पनीरसेल्वम ही जयललिता के नाम पर तमिलनाडु का राजकाज संभाल रहे थे। जयललिता के आठ विभागों का प्रभार उन्हें ही दिया गया था। दरअसल, राजनीतिक हलकों में कहा जा रहा है कि जयललिता के उत्तराधिकारी और तमिलनाडु के अगले मुख्यमंत्री के रूप में 45 साल के दक्षिण भारतीय सुपरस्टार थला अजित कुमार, पनीरसेल्वम से बेहतर विकल्प हो सकते थे। वह युवा हैं और सबसे बड़ी बात उस परंपरा के प्रतिनिधि है, जिससे एमजी रामचंद्रन और जे. जयलिलता इस मुकाम तक पहुंचे हैं, यानी वह ग्लैमरस दुनिया के आदमी हैं, तमिल जनता जिनकी दीवानी रही है।

इधर, जयललिता की हालत बहुत ज्यादा बिगड़ने के बाद सोमवार को कहा जा रहा था कि जयललिता ने अपनी वसीयत में लिखा हुआ है कि अजित कुमार ही उनके उत्तराधिकारी होंगे। इस वसीयत से जयललिता के तमाम बेहद भरोसमंद सहयोगी अच्छी तरह अवगत थे, लेकिन कहा जा रहा है कि सियासत का कोई अनुभव नहीं होने के कारण अंतिम समय में पनीरसेल्वम को ही जयललिता का उत्तराधिकारी और मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया। दरअसल, तमिलनाडु की जनता भावुक स्वभाव की होती है। अभिनेताओं के रुपहले परदे की छवि को ही असली मानती आई है। यही वजह है कि इस दक्षिणी राज्य में अभिनेताओं की लोकप्रियता सिर चढ़कर बोलती है। एमजी रामचंद्रन और जयललिता अपने रूपहले परदे की इमेज के चलते लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचने में कामयाब रहे। इसी परिपाटी के चलते जयललिता के उत्तराधिकारी के रूम में अजीत कुमार का नाम आगे किया जा रहा था।

बता दें कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर शशिकला नटराजन की भी नजर थी। शशिकला जयललिता की सबसे करीबी मानी जाती रही हैं। एक जमाने में कहा जाता था कि जयललिता के हर फैसले के पीछे शशिकला का हाथ होता है, लेकिन बाद में दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी। शशिकला भी पनीरसेल्वम की तरह थेवर समुदाय से हैं। उनका प्रभाव जयललिता के करीबी लोगों में तो है, पर वह परदे के पीछे ही काम करती रही हैं, इसलिए कहा जाता है कि उनके पास जनाधार नहीं है। शशिकला पर भी जयललिता के साथ भ्रष्टाचार के मामले चले हैं। उनके भतीजे सुधाकरन को जयललिता ने दत्तक पुत्र माना था और 1995 में उसकी भव्य शादी के चर्चे आज भी होते हैं। शादी में खर्चे के कारण जयललिता की आलोचना भी हुई थी और बाद में उन पर जो आरोप लगे उसकी पृष्ठिभूमि शाही शादी ही थी।

वैसे तो एआईएडीएमके में 78 साल के पानरुति रामचंद्रन, लोकसभा के उप सभापति एम. थंबीदुरई, मंत्री इडापड्डी पलानीस्वामी, अन्नाद्रमुक के उभरते सितारे 57 साल के एम. फोई पांडियाराजन और शीला बालाकृष्णन भी संभावित उत्तराधिकारियों की फेहरिस्त में हैं, लेकिन फिलहाल सामने केवल पनीरसेल्वम हैं। बहरहाल, सवाल यह भी है कि क्या पनीरसेल्वम करुणानिधि और उनके बेटे को चुनौती देते हुए पार्टी का सफल नेतृत्व कर पाएंगे? यकीनन इस समय इस पर दावा करना आत्मघाती हो सकता है। फिलहाल तो राज्य में सात दिन का राजनीतिक शोक है। कोई गतिविधि उसके बाद ही होगी।

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