29 Mar 2024, 00:23:33 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की संख्या अब इतना परेशान करने लगी है कि हर स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है। बहुत सारे कानून तो अब भी मौजूद हैं तथा पुलिस को भी कहा जाता है कि वह महिला हितैषी बने, यहां तक की उन्हें यह भी निर्देश दिए जा रहे हैं कि वह महिलाओं के प्रति अपराध करने वालों को ऐसा सबक सिखाएं की दोबारा किसी की भी ऐसा अपराध करने की जुर्रत न हो। परंतु अपराध हो रहे हैं और दूसरी और हर संभव प्रयास भी जारी हैं कि अपराध न हों। हो सकता है आने वाले कुछ वर्षों में परिदृश्य सकारात्मक हो जाए। अभी तो उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, प्रताड़ना तथा और जबरदस्ती करने की संख्या के आंकड़े बहुत विचलित करने वाले स्तर पर पहुंच चुके हैं। शासन-प्रशासन और ईमानदार स्वयं सेवी संस्थाएं इन्हें कम करने में जुटी हुई हैं। इस संदर्भ में एक उदाहरण की बात करते हैं।  

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में महिलाओं के समूह बनाए गए हैं, जो आसपास के गांवों व कस्बों में बहुत सक्रियता से काम कर रहे हैं। इन समूहों को पुलिस मित्र का नाम दिया गया है। पुलिस मित्र इन महिलाओं को जब भी किसी महिला के प्रति अपराध की सूचना मिलती है यह मित्र तुरंत वहां जाती हैं तथा उस महिला व उसके परिवार की शिकायत थाने पर दर्ज करवाती हैं और अपराधी को पकड़वाने में सहायता करती हैं। यहां तक कि वह अपराधी के परिवार को भी समझाइश देती हैं कि वह उसका पुलिस में सरेंडर करवाएं इसका एक उदाहरण बताते हैं।

एक 13 वर्षीय लड़की के साथ जोर जबरदस्ती की गई। लड़की बहुत आहत व घायल थी, रो-रोकर उसका बुरा हाल था। परिवार श्रमिक था, वह पिछड़ी जाति के थे। अचानक परिवार की महिला को पुलिस मित्र सावित्री देवी की याद आई। वह उनके पास गई और अपनी पीड़ा बताई। सावित्री देवी ने तुरंत अपनी अन्य महिला पुलिस मित्रों से संपर्क किया। समूह बनाकर यह थाने गईं और एफआईआर लिखवाई। थानेदार सहित पुलिसकर्मी इन पुलिस मित्रों की सामूहिक शक्ति को जानते थे। अपराधी को सलाखों के पीछे उस समय तो पहुंचा ही दिया गया। दरअसल यह पुलिस मित्र पहले से ही जागरूक और सजग महिलाएं हैं। इनके स्वयं सहायता समूह हैं। इन्होंने ही मिलकर यह तय किया कि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की भी सुनवाई करवाई जाए। इन्होंने गांवों और आसपास के क्षेत्रों की शराब की भट्टियां बंद करवाईं। इससे महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में बहुत कमी आई। वह सब पति जो अपनी पत्नियों की शराब पीकर धुनाई-पिटाई करते थे वह पुलिस में की जाने वाली शिकायत से डर व सहम गए। कई पतियों की तो शराब पीने की आदत ही छूट गई। कई अधेड़ महिलाएं जो पचास-पचपन की आयु की हो चली थीं पर फिर भी शराबी पति के हाथों पिटाई खाती थीं और बहुत शर्मिंदगी महसूस करती थीं। अब इस अपमान से मुक्त हो चुकी हैं।

ऐसा ही पुलिस महिला मित्र और पुलिस का परस्पर सहयोग कि महिलाएं-युवतियां व बच्चियां स्वयं को सुरक्षित महसूस करने लगी हैं। इन समूहों में जाति भेद बिल्कुल नहीं है। पांडेय व मिश्रा तो दलित वर्ग की भी हैं। दरअसल इसमें एक बात और बहुत सकारात्मक नजर आई। युवा पुलिस अफसर और प्रशासकीय अधिकारी अब अपने सभी कर्तव्यों के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा व अस्मिता के प्रति बहुत जागरूक और सचेत हुए हैं। इन्हीं सजग अधिकारियों के कारण ऊपर से नीचे तक लगभग हर स्तर पर यह कोशिश की जा रही है कि अन्य अपराधों को रोकने के साथ-साथ महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों को गंभीरता से लिया जाए और इन्हें कम किया जाए। महिलाओं को जोड़ने से और महिलाओं की सामूहिक शक्ति से महिला अपराध बहुत कम किए जा सकते हैं, इसलिए अधिकारियों ने इन्हें अपना मित्र बनाया। यह पुलिस मित्र महिलाएं एक आइडेंटिटी कार्ड गले में लटकाए इस सामाजिक कार्य से जुड़ गई हैं। वह कोई पारिश्रमिक नहीं लेतीं पर इस गर्व का तमगा लटकाए वह अवश्य घूमती हैं कि वह अपनी साथी महिलाओं की सहायता कर रही हैं। प्रत्येक माह के पहले बुधवार वह जब इकट्टी होती होंगी तो उनकी शक्ति तभी प्रस्फुटित हो जाती होगी और कुछ शुभ करने की सामूहिक ज्योति जल उठती होगी।

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