20 Apr 2024, 07:15:20 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

- डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


कश्मीर के  नगरोटा में आर्मी कैंप पर आतंकी हमले से ये साफ हो जाना चाहिए की सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर वाहवाही से देश की सुरक्षा चाक चौबंद नहीं हो गई है, बल्कि उसके बाद हमारे सुरक्षा बलों पर हमलों में तेजी आई हैं। पाकिस्तान के छद्म युद्ध की कीमत में हमारे जवानों का लगातार मारा जाना हमारे सुरक्षा इंतजामात पर सवाल खड़ा करता है, पाकिस्तानी न केवल सरहद पर सीमा सुरक्षा में लगे जवानों को बंदी बना रहे हंै, उनके सिर काट कर ले जा रहे हैं, उनके शवों के साथ वहशियाना बर्ताव  जैसी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं बल्कि भारतीय सीमा के अंदर भी अपने तैयार किए आतंकियों के बूते कोहराम मचा रहे हैं।

इस साल सितंबर में कश्मीर में उरी में सेना के ठिकाने पर चरमपंथियों ने हमला किया था, जिसमें 18 जवानों की मौत हुई थी। वहीं सुरक्षा बलों की कार्रवाई में चार चरमपंथी भी मारे गए थे। इसके बाद भारत के सर्जिकल स्ट्राइक के जवाब को भारतीय राजनीतिक हलकों समेत सामान्य जनमानस ने बहुत सराहा था, लेकिन उरी हमले के बाद कश्मीर के चरमपंथियों ने हमारे जवानों को निशाना बनाया है। उरी से अब तक 72 दिन में हमारे 43 जवान शहीद हो गए हैं। नगरोटा में आतंकी हमला और ज्यादा भयावह हो सकता था यदि सैनिकों के परिवारों ने साहस परिचय नहीं दिया होता।

बहरहाल, रक्षा मंत्री लगातार बेबाक बयानबाजी से देश में लोकप्रिय तो हो रहे हैं, लेकिन देश की सुरक्षा को लेकर उनकी योजनाएं  नाकाफी होती जा रही है और उसके परिणाम में हमारे जवान मारे जा रहे हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद सीमा की चौकसी के लिए आॅपरेशन रुस्तम को शुरू किया गया है, लेकिन इसके बावजूद आतंकी हमलों का लगातार बढ़ना देश की सुरक्षा के लिए गहरे खतरे का संकेत है। उधर पाकिस्तान के नए सैन्य प्रमुख बाजवा कश्मीर के विशेषज्ञ माने जाते हैं और चरमपंथियों से उनकी गहरी नजदीकियां भी हैं, ऐसे में पाकिस्तान से लगती सीमा पर शांति होगी इसके आसार कम ही है। पाकिस्तान के नए  सेना प्रमुख अहमदिया संप्रदाय से आते हैं जिन्हें पाकिस्तान में काफिर समझा जाता है। आम पाकिस्तानी उन्हें इस्लाम का मानने से इंकार भी करता है, ऐसे में बाजवा अपनी वतनपरस्ती को साबित करने के लिए भारत के प्रति वैसी नीतियां अपना सकते हैं, जिस प्रकार मुहाजिर परवेज मुशर्रफ ने भारत के प्रति अपनाई थी। मुशर्रफ के दौर में भारत को करगिल जंग लड़ना पड़ी थी जिसमें हमारे अनेक जांबाज जवान मारे गए थे।

हाल के दिनों में भारत के रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए मीडिया को अपना हथियार बनाया है। यहां तक कि वे परमाणु हथियारों के पहले उपयोग न करने की भारतीय नीति को बदलने की बात भी कह चुके हैं, रक्षा मंत्री बेशक अपने आक्रामक तेवरों से सभी को प्रभावित तो कर रहे हो, लेकिन इसका फायदा सरहद पर मिलता नजर नहीं आ रहा है। यहां महत्वपूर्ण पहलू ये भी है कि बलूचिस्तान में आतंक को लेकर पाकिस्तान भारत पर पूर्व में भी आरोप लगता रहा है, लेकिन भारत ने हमेशा इसे सिरे से खारिज किया।

वास्तव में किसी भी देश की सामरिक नीतियां बेहद गोपनीय होती हैं जिसका इजहार करना जरूरी नहीं होता। खासतौर पर पाकिस्तान को लेकर इस सरकार को बेहद सजग होने की आवश्यकता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने गुजराल सिद्धांत के नाम पर पाकिस्तान में हमारे गुप्तचरों के प्रभाव को बाधित कर दिया था, लेकिन पाक पर भरोसा करना ठीक वैसा ही है जैसे सांप को पलना।

दुनिया में भारत को एक जिम्मेदार देश समझा जाता है और हमारे परमाणु हथियारों को बेहद सुरक्षित। इस बात को हमारे राजनीतिक नेतृत्व को नहीं भूलना चाहिए कि दुनिया में हम अपनी बेहतर छवि के कारण स्वीकार्य हैं, जबकि पाकिस्तान ने बड़बोलेपन के कारण देश की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया है। बेहतर होगा कि हमारे रक्षा मंत्री सैन्य अधिकारियों से मिलकर देश की सीमाओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करे। किसी भी देश के लिए सुरक्षा उसकी पहली प्राथमिकता होना चाहिए, सीमा असुरक्षित होने से देश कभी मजबूत नहीं हो सकता, सुरक्षा बलों के लगातार  मारे जाने से देश का भरोसा टूटेगा, ऐसे में आंतरिक आतंकवाद एक बार फिर सिर उठा सकता है ।

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