-वीना नागपाल
एक समय ऐसा था जब ग्रामीणों के भोलेपन और उनकी शुद्ध मानसिकता की बहुत चर्चा होती थी। भोले-भाले ग्रामीणवासियों के लिए यही विशेषण प्रयोग में लाया जाता था। सारी आपराधिक मनोवृति नगरों व महानगरों के हिस्से में ही आती थी। गांव के लोग तो सहज प्रेम और नैसर्गिक भावों से भरे हुए माने जाते थे। गांव की बेटी सारे घरों की बेटी होती थी, उस पर बुरी नजर डालने की कोई सोच भी नहीं सकता था। पर, आज क्या हो रहा है एक सर्वेक्षण में पाया गया कि गांव की महिलाओं, युवतियों और किशोरियों के साथ होने वाले अपराधों की संख्या में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई है। अब गांव की बेटी सारे गांव की बेटी नहीं रही बल्कि वह आपराधिक तत्वों का एक आसान शिकार है। उसके साथ जो बुरा बर्ताव होता है वह तो है ही पर, इसके बाद कू्ररता पूर्वक उसकी हत्या कर देना और भी नृशंस अपराध है।
कभी दुष्कर्म के बाद उसे जला दिया जाता है तो कभी उसका गला घोंट दिया जाता है तो कभी पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती है। पिछले दिनों समाचार पत्रों में ऐसी घटनाओं के पता नहीं कितने समाचार प्रकाशित हुए हैं। पहले तो समाज शास्त्रियों ने यह कयास लगाया कि लड़कों व लड़कियों के बीच संख्या के घटते अनुपात के कारण शायद ऐसा होने लगा हो। पर, यह बात निर्मूल साबित हुई, क्योंकि उत्तर प्रदेश व हरियाणा तथा राजस्थान में लड़कियों की संख्या बढ़ी और लड़कों व लड़कियों के बीच संख्या का अंतर काफी काम हुआ और रहे-सहे अंतर को पाटने की कोशिशें भी हो रही हैं पर, महिलाओं के प्रति अपराध क्यों बढ़ रहे हैं इसका उत्तर नहीं मिल रहा। शिक्षा को भी इसके लिए जिम्मेदार माना गया पर, यह भी समझ में आया कि ग्रामीण स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति अच्छी खासी है और लड़कियों के झुंड के झुंड कम से कम प्राथमिक और माध्यामिक स्कूलोंं में जाते हैं। ग्रामीण परिवार भी इन्हें स्कूल भेज रहे हैं और खेती-किसानी के कामों में नहीं लगाते या गाय-भैंस चराने नहीं भेजते। तब ऐसा क्यों है कि गांवों में लड़कियों का सम्मान यूं तार-तार किया जा रहा है। गांव के युवक इतने ढीठ और अनैतिक हो गए हैं कि वह उसी गांव में रहने वाली किशोरी व युवती पर बुरी नजर रखते हैं। अभी तक तो इसका जवाब मिला नहीं है। कब मिलेगा पता नहीं। कुछ समाज शास्त्रियों ने इसका विश्लेषण कर यह पाया है कि शासन व प्रशासन की सुघड़ता-कठोरता गांव तक नहीं पहुंचती। वहां आपराधिक शिकायत दर्ज ही नहीं होती और अपराधी को पकड़ने व उसे सबक सिखाने की गंभीर चेष्ठा नहीं होती। अपराधी छुट्टे घूमते रहते हैं और उन्हें यूं देखकर दूसरों के भी हौंसले बढ़ते हैं और उन्हें अपराध करने की शह मिलती है। यह एक कटु वास्तविकता हो गई है कि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति अपराध बढ़े हैं और वहां वह अधिक असुरक्षित होती जा रही हैं।
क्या हम गांवों में वह भोलापन, निश्छलता और मासूमियत लौटा सकते हैं जिनसे हम गांव वालों को जोड़ते रहे हैं? या हम वहां उस माहौल को लौटा सकते हैं जब सारा गांव एक परिवार होता था शाद समय का पहिया अब पीछे नहीं लौट सकता। पता नहीं किस तरह के और कैसे व कितने दुष्प्रभावों से गांवों का माहौल बदल गया है पर, इसका हल एक ही बात में है कि गांव की लड़कियां अधिक शिक्षित, आत्मनिर्भर व सशक्त हों। उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो। उन्हें त्वरित न्याय मिले। ऐसी सशक्त ग्रामीण महिला, युवती व किशोरी को कोई आंख उठाकर देखने की सोच भी नहीं सकेगा।