-वीना नागपाल
मेरे नाती का पिछले वर्ष ही विवाह हुआ है। हमारी बहू बहुत अपनत्वभरी व सामंजस्य स्थापित करने वाली युवती है, पर, उसकी प्रशंसा यहीं नहीं रुकती। वह अपनी बहन के साथ मम्मी की दो बेटियां हैं। दोनों का विवाह सुसंस्कृत व संपन्न परिवार में हुआ है। आजकल के आधुनिक (प्रगति शील मायने में) सास-बहू व बहू के ससुराल से संबंध न केवल सुमधुर व स्नेहशील होते हैं बल्कि ससुराल व मायके वालों के परस्पर संबंध भी बहुत दोस्ताना और लगभग एक ही समान भाव के होते हैं।
इन्हीं मधुर संबंधों के कारण बेटियों और बहुओं के साथ व्यवहार में कोई विशेष अंतर नहीं होता। इसी के आधार पर हमारी बहू ने अपनी सास (जो अब मम्मी थीं) से कहा कि उसकी बहुत इच्छा है कि वह कुछ दिनों के लिए ‘मम्मी’ (उसकी मां) को कहीं बाहर अर्थात विदेश यात्रा पर लेकर जाए। उसकी सास ने उसे खुशी-खुशी इस काम को अंजाम देने के लिए कहा। लगभग इसी समय दूसरी बेटी ने भी अपने ससुराल में इस तरह अनुमति मांगी। उन्होंने भी सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया।
दरअसल बेटियों का भी इसके पीछे बहुत सशक्त कारण था। उनके पापा का बेटियों की छोटी उम्र में ही स्वर्गवास हो गया। उन्होंने लंबी बीमारी भी पाई। हालांकि वह संपन्न परिवार था पर, उनकी मम्मी ने न केवल इस संघर्ष की स्थिति का बहुत हिम्मत से सामना किया पर, वह समय उनके लिए बहुत कठिन था। पति की बीमारी और छोटी बच्चियों की देखभाल में उनके लिए बाहर का जीवन बिल्कुल समाप्त प्राय: था। उन्होंने बेटियों को उच्च शिक्षा के लिए निरंतर प्रोत्साहित किया और सुसंस्कार भी दिए। आज दोनों अपने घरों में सुखी थीं। यह अवधि लगभग दो वर्ष की थी। जब छोटी बेटी का पिछले वर्ष विवाह हुआ तब दोनों ने यह महसूस किया कि मम्मी कितनी अकेली हो गई हैं। वह कभी बाहर जा ही नहीं पार्इं। उन्होंने अपना एक-एक पल परिवार को दे दिया पर, कभी जताया नहीं कि वह कहीं नहीं जा पा रही हैं। उनके लिए तो जीवन जैसे ठहरा ही रहा। तब बेटियों ने यह निर्णय लिया कि मम्मी को विदेश यात्रा पर ले जाएंगी और उन्हें जीवन के कुछ पल आनंद व प्रफुल्लता में बिताने का अवसर दिलवाएंगी। मां व दोनों बेटियां 20 दिन की विदेश यात्रा पर गईं। बेटियों ने अपने-अपने पतियों को भी साथ नहीं लिया, जिससे कि वह केवल पूरा समय मां के निकट रहें और उन्हें अनुभव कराएं कि वह उनकी कितनी शुक्रगुजार हैं कि मां ने जीवन के भरपूर काल में जिस तरह उनके लिए एक-एक पल दिया। वह केवल बेटियों के इस निश्छल स्नेह को महसूस करें।
बेटियों ने वास्तव में बहुत साहस और निर्भीकता से वह कदम उठाया जिसे बेटे भी उठाने में संकोच करते हैं या झिझक जाते हैं। कितने बेटे ऐसे हैं जो मां के पल-पल उनके लिए किए गए त्याग का मन ही मन अहसान तो मानते हैं पर उसे जताते समय पता नहीं क्यों कंजूस हो जाते हैं। एक और परिवर्तन की सराहना करना होगी। वह उनके ससुराल पक्ष और उनके पतियों को लेकर है। उन्होंने बेटियों के मां के प्रति स्नेहभरे कर्तव्य को समझा। बहुत से परिवार आजकल कहते हैं कि वह बहू व बेटी में अंतर नहीं करते पर जब बहू के मायके वालों की बात आती है तब उनका अंतर खुल कर सामने आ ही जाता है। बेटियां अपने दोनों पक्ष के कर्तव्य निभाएं आज के समय में यही उचित है। जितनी असमानता मिटेगी उतना ही बेटियों के जन्म का भी स्वागत होगा।
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