24 Apr 2024, 11:34:34 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

दिल्ली के उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए इस बात पर विशेष जोर देकर कहा कि- वैवाहिक संबंधों के निर्वाह में बौद्धिक कुशलता अर्थात् बुद्धि की प्रवीणता कुछ काम नहीं आती है। यह निर्णय माननीय न्यायाधीश ने तब दिया जब उनके समक्ष एक तलाक का केस प्रस्तुत हुआ।

विवाह को अभी पांच महीने ही बीते थे। दोनों में जमकर विवाद हो रहे थे। वह कब और कैसे प्रारंभ हुए इसके विस्तार में जाए बिना इतना समझना काफी है कि दोनों में परस्पर बनी नहीं। दोनों बहुत उच्च शिक्षित थे। शायद उनकी कुशाग्र बुद्धि वैवाहिक संबंधों को निभाने में कोई काम नहीं आ रही थी। इस बात को लेकर न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि वैवाहिक संबंधों में दोनों अपने-अपने स्तर से एक-दूसरे का आकलन करते हैं और इसमें उनकी बुद्धि के आकलन के अंकों का कोई स्थान नहीं होता। न्यायालय ने यह पाया कि अपनी उच्चशिक्षा और व्यावसायिक कार्य कुशलता व उसमें प्रवीण होने के बावजूद दोनों एक-दूसरे से जम कर विवाद करते और वाक्युद्ध करते थे। इसमें उनकी पढ़ाई का कुछ लेना-देना नहीं था। उनकी उच्च शिक्षा संबंधों के निर्वाह में कोई काम नहीं आई। बात तो यह भी महत्व की थी कि जब दोनों का विवाह तय होने लगा तो दोनों की जन्मपत्रियों का बहुत गहराई से मिलान भी किया गया था। परंतु तब भी यह वैवाहिक संबंध इतनी जल्दी टूटने की कगार पर आ गया। माननीय न्यायाधीशों ने पाया कि कुल जमा पांच महीने और 20 दिन ही वैवाहिक संबंध रहे और उसमें भी केवल 60 दिन दोनों एक साथ रहे और इस छोटी सी अवधि में एक-दूसरे से इतने विवाद हुए कि दोनों ने तलाक लेने का फैसला ले लिया। न्यायालय ने इस पर कटाक्ष करते हुए यहां तक कह दिया कि हम आशा करते हैं कि जिस ज्योतिष ने दोनों की जन्मपत्री मिलान किया होगा वह नया-नया अनुभव हीन ज्योतिष नहीं होगा।

वैवाहिक संबंधों की सफलता के लिए न्यायालय ने कहा कि इन्हें सफल बनाने  के लिए थोड़ी सी समझदारी और परस्पर कुछ भावनाओं के सम्मिश्रण की ही जरूरत होती है। इसमें उच्च शिक्षा कोई काम नहीं आती है। इसकी सफलता के लिए भारी-भरकम बौद्धिक कुशलता की आवश्यकता नहीं होती। पति-पत्नी दोनों ही अपनी सामान्य बुद्धि व कुशलता से एक-दूसरे से व्यवहार करके विवाह संबंधों को सफल बना सकते हैं। केवल थोड़ी-सी व्यावहारिकता संबंधों को सफल बना सकती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय की एक-एक बात में बहुत गहरा सत्य और व्यावहारिक नसीहत मौजूद है। उच्च शिक्षा कुशल व योग्य बुद्धि के प्रयोग से ही प्राप्त होती है। यह योग्यता अर्जित की जाती है। पर, जीवन में भावनाएं और संवेगों का भी अपना एक विशिष्ट स्थान है। भावनाएं मानव के व्यवहार के समझने और उससे परिचित होकर एक-दूसरे को जानने और समझने की कुशलता  देता है। यह सही है कि शिक्षा अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर जाती है। यदि यह अर्जित शिक्षा अहंकारी बना दे और दूसरों को समझने में बाधा बन जाए तो इस पर गहराई से सोचने की आवश्यकता है।

आजकल वैवाहिक संबंधों को बनाने वाले युवक व युवती उच्च शिक्षित होते हैं। एमबीए, आईआईएम, आईआईटी की डिग्री वाले युवक व युवतियां निरंतर उन विषयों के अध्ययन में जुटे रहते हैं। प्रेम, स्नेह व संवेगों तथा भावनाओं के ज्वार को महसूस करने का उनके पास समय नहीं होता। यह स्थिति जारी नहीं रखी जा सकती। पत्थर दिल उच्च डिग्री धारी व्यक्तियों का एक बड़ा समूह समाज में स्थापित नहीं किया जा सकता। इसलिए कोई भी उच्च शिक्षा हो उसमें साहित्य अवश्य पढ़ाया जाए। कविता, कहानी और साहित्यिक प्रेम व स्नेह के शब्द मन में कोमल भावनाएं बनाएंगे। केवल डिग्रीधारी नहीं, बल्कि श्रेष्ठ मानवीय गुणों से लबालब भरे हुए मानव भी आस्तित्व में हों जिससे वैवाहिक संबंध और परिवार बनाने में कोई बाधा न आए।

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