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नार्को-टेररिज्म पर भी लगेगा ब्रेक

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 16 2016 10:08AM | Updated Date: Nov 16 2016 10:08AM
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-एच.एन. मीणा
लेखक भारासे, अफीम एवं अल्कालॉइड कारखाने के महाप्रबंधक और नार्कोटेररिज्म के जानकार हैं


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की शाम जब राष्ट्र को संबोधित किया था, तभी उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि 500 और 1000 के बड़े करेंसी नोट क्यों तत्काल प्रभाव से बंद करने पड़ रहे हैं। जो कारण थे उनमें ड्रग्स के अवैध धंधे से कमाए गए धन का आतंकवादियों द्वारा आतंक फैलाने में भी उपयोग एक बड़ा कारण था, जो उन्होंने  गिनाया था, लेकिन क्या वास्तव में यह इतना बड़ा कारण है? वास्तव में यह इससे भी बड़ी समस्या है।

आतंकवाद आधुनिक विश्व के सामने आज की सबसे बड़ी चुनौती है। इसकी एक नई टर्म दुनिया के सामने है ‘नार्को टेररिज्म’, जो संसार के लिए बेहद खतरनाक है। नार्कोटिक्स पदार्थों की तस्करी से आने वाला धन जब आतंक फैलाने वालों के हाथों में पहुंच जाता है तब यह नार्को टेररिज्म टर्म को जन्म देता है। दुनिया के बहुत सारे देश इस नार्कोटेररिज्म की चपेट में हैं और इसका दंश झेल रहे हैं। हर देश और राज्य इस खतरनाक दु:स्वप्न से निजात चाहता है, लेकिन नेताओं के कुत्सित स्वार्थ के कारण दुनिया की इस सबसे बड़ी चुनौती में निरंतर इजाफा ही हो रहा है, कमी नहीं।

भारत नार्को टेररिज्म का परोक्ष रूप से बहुत बड़ा शिकार रहा है। पंजाब, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर और देश के नॉर्थ ईस्ट के राज्य इस दंश को झेल चुके हैं, हमारे पड़ोसी देशों पाकिस्तान और अफगानिस्तान  की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा अफीम और उसके उत्पाद रहे हैं। यहां की सरकारें नार्कोटिक पदार्थों की खेती को अवैध रूप से बढ़ावा देती रही है और इसी का परिणाम है कि यहां के आतंकी संगठनों को अफीम, गांजा आदि से बहुत धन मिलता रहा है। इसी धन के बलबूते पर ये संगठन भारत का अहित और विभाजन करने के सपने लेकर कई ऐसी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं, जिससे देश के विकास को धक्का लगता रहा है। मादक पदार्थों की तस्करी जो सीमा पार का एक संगठित अपराध था, वो अब देश और राज्यों के लिए खतरा बनकर उभर रहा है। अफगानिस्तान पाकिस्तान एवं ईरान का गोल्डन क्रेसेंट अफीम की सबसे ज्यादा अवैध खेती के लिए जाना जाता है। अकेला अफगानिस्तान विश्व की नॉन-फॉर्मास्युटिकल ग्रेड की 90 फीसदी अफीम की खेती करता है। 1999 के आंकड़ों पर ध्यान दें तो अफगानिस्तान और पाकिस्तान अकेले करीब छह हजार मेट्रिक टन अफीम का उत्पादन कर रहे थे।

नार्को टेररिज्म, नार्कोटिक्स और टेररिज्म के बीच संबंध स्थापित करता है। भारत में आतंक का स्रोत बाहरी है एवं भारत की सीमाओं से बाहर है। इसका सबसे बड़ा स्रोत पाकिस्तान है, जिसमें नार्कोटिक्स के पदार्थों की तस्करी में इजाफा हुआ है, जिसके कारण भारत में दहशतगर्दी फैलाने में पाकिस्तान ने नार्कोटिक्स की तस्करी के इस अवैध धन को लगाकर घिनौनी गतिविधियों को बढ़ावा दिया है। नार्कोटिक्स पदार्थों के अवैध व्यापार से जो धन पैदा होता है, उस धन का उपयोग पाकिस्तान जैसे देश आतंक की गतिविधियों में इस्तेमाल करते हैं। भारत के अर्थतंत्र में पड़ोसी देश की नापाक करतूतों के मंसूबों से भेजी नकली नोटों की एक बड़ी खेप मौजूद है, जो देश में बिन बंदूक एक खामोश आतंक पैदा किए हुए हैं और ये नकली नोट 500 और 1000 के रूप में अधिक है। कोई भी नकली नोट बनाता है तो उसका टारगेट बड़े नोट ही होते हैं, क्योकि उन्हें रखना और उनका परिवहन करना आसान होता है। कोई देश इतना धनी नहीं कि वो आतंकवाद को अफॉर्ड कर सके, लेकिन ड्रग्स के कारोबार में लाभ का प्रतिशत बहुत ज्यादा होने के कारण इसमें तस्कर जोखिम उठाते हैं।  मादक पदार्थों के कारोबार से पैदा पैसा आतंकी गतिविधियां चलाने और हथियार खरीदने के काम आता है। यही कारण है कि पाकिस्तान और वहां बैठे दाऊद जैसे ड्रग स्मगलर ड्रग्स के धन से भारत में आतंकी गतिविधियां संचालित करते रहे हैं। भारत में पंजाब सबसे ज्यादा नार्को टेररिज्म का दंश झेल चुका है। जितने ड्रग्स के तस्कर सीमा पार से भारत में आतंकवाद को फंडिंग करते हंै उनमें अधिकांश लाहौर से अपनी तस्करी की गतिविधियों को संचालित करते हैं। भारत के तरनतारन, फिरोजपुर, पठानकोट जैसे जिलों की सीमाएं लाहौर के ज्यादा पास है तथा अमृतसर एअरपोर्ट बहुत नजदीक है। यहां भारत की सीमाओं के अंदर से बाहरी देशों को ड्रग्स भेजने के लिए दलाल और तस्कर मौजूद हैं, इसलिए इन इलाकों से ड्रग्स की जमकर तस्करी होती है। इसकी काली कमाई से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के तस्कर पाकिस्तान के उन भारत विरोधी गुटों को फंडिंग करते हैं जो भारत को अस्थिर करने के लिए अपनी नाकाम कोशिशों के दौर दशकों से भारत के खिलाफ चलाए हुए हैं।

भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में भी ड्रग्स का कारोबार पिछले दशकों में बढ़ा है। इससे कमाया गया धन आतंकियों के लिए हथियार और अन्य सुविधाओं में खर्च हुआ है। यही कारण है कि इन राज्यों में अस्थिरता फैलाकर भारत को कमजोर करने की कोशिशें सीमा पार से होती रही हैं। उत्तर-पूर्व में मेघालय की खासी, जयंतिया, गारो पहाड़ियों तथा मणिपुर, नगालैंड, त्रिपुरा असम में गांजे की अवैध खेती होती है। यही गांजा तस्कर समूह तस्करी के जरिए भिन्न-भिन्न तरीकों से और साधनों, वाहनों से देश के विभिन्न भागों में पहुंचाता है। सबसे ज्यादा उत्तर-पूर्व के राज्यों से गांजे का अवैध परिवहन ट्रकों के माध्यम से होता है। सिलीगुड़ी सीमा शुल्क, डीआरआई तथा अन्य एजेंसियों द्वारा जब्त किए गए पिछले वर्षों के ड्रग्स विशेष रूप से गांजे के मामलों में यह देखने में आया है कि तस्कर गांजे के परिवहन के लिए ट्रक चालकों को मोटी रकम का लालच देकर इस बाबद मना लेते हैं और उनका बेजा इस्तेमाल करते हैं। इस मोटी रकम को बैंकिंग चैनल से मुक्त रखकर ये तस्कर कैश में ही बड़े और नकली नोटों के कारोबार का इस्तेमाल करते हैं। तस्करों द्वारा विभिन्न तरीकों के  इस्तेमाल के कारण इनको पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता है, इससे उनको आसानी से और जल्दी माला-माल होने के अवसर मिल जाते हैं।

अवैध काले धन को बाहर निकलने से जरूर देश को फायदा होगा। देश की अर्थव्यवस्था  में हवाला, सट्टे, ड्रग्स और ऐसे ही काले कारनामों से कमाए धन ने कब्जा जमा लिया है। प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं। चर्चा है कि ड्रग माफिया का धन आतंकी गतिविधियों में इस्तेमाल के बाद  रियल एस्टेट में सबसे ज्यादा लगा है। यदि यह बात सही है तो देश के आम आदमी को भविष्य में बड़ी राहत मिलेगी, क्योंकि यह अवैध धन बाहर आएगा और इससे जो टैक्स आएगा उससे देश का खजाना भरेगा। यदि बाहर नहीं आया तब भी देश के अर्थतंत्र से यह धन बाहर हो जाएगा, जो सरकार के उद्देश्यों की पूर्ति निश्चित रूप से करेगा। इस स्थिति को हम यदि राजनीति के चश्मे उतारकर देखेंगे तो ज्यादा सुकून मिलेगा। अब समय आ गया है जब मर्ज का इलाज जरूरी है और  जब मर्ज बढ़ जाए तो मरने का इंतजार करने की बजाय दवा का कड़वा घूंट पीकर कल को खुशहाल बनाना ही बुद्धिमानी है।

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