24 Apr 2024, 21:13:17 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-शशांक द्विवेदी
लेखक पर्यावरण व विज्ञान विषयों पर लिखते हैं।


कई जातियां, बोलियां, भाषाएं, अनेक धर्म-संप्रदाय, खान-पान, लाखों वनस्पतियां, सैकड़ों जीव जंतु और कई तरह की पेड़-पौधों की प्रजातियां भारत की भौगालिक संपदा की खासियत है और यही इसे विश्व का अनूठा देश बनाती है। इस अनेकता और विविधता में भारतीय जनसंख्या में बहुलता की एकता इसे और भी खूबसूरत बनाती है। भारत की यह अनूठी विरासत जहां सांस्कृतिक रूप से दिखाई देती है, वहीं भौगोलिक रूप से इसकी यह विविधता पूरी दुनिया को आश्चर्य में डालती है। जैव विविधता को लेकर भी भारत पूरे विश्व का सबसे आश्चर्यजनक देश है। समूचे विश्व में दो लाख 40 हजार किस्म के पौधे और 10 लाख 50 हजार प्रजातियों के प्राणी हैं, जिसमें से सभी ज्ञात प्रजातियों का सात से आठ प्रतिशत हिस्सा हमारे ही देश में मौजूद है, इसमें भी पौधों की 45,000 प्रजातियां और जीवों की 91,000 प्रजातियां मौजूद हैं।

कुल मिलाकर भारत विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता वाले देशों में से एक है और दुनिया के भू-रकबे का यहां मात्र 2.4 प्रतिशत भाग है। चिंता की बात यह है कि पूरी दुनिया में आज जीव-जंतुओं और पौधों की लगभग 50 प्रजातियां रोजाना विलुप्त हो रही हैं, इसलिए जैव विविधता के संरक्षण के सवाल उठ रहे हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में विशिष्ट पौधों और जीवों की विविधता होने के कारण यह महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक है। विश्व के 34 वैश्विक जैव विविधता हॉटस्पॉट में से चार भारत में स्थित है- हिमालय, पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी और निकोबार द्वीप समूह। इसके अलावा भारत, फसलीय पौधों की उत्पत्ति का विश्व के आठ केंद्रों में एक प्रमुख केंद्र है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की इसी अनूठी जैव विविधता को बचाने के लिए चिंता जताई है।

हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित पहले अंतरराष्ट्रीय कृषि जैवविविधता सम्मलेन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए और उन्होंने जैव विविधता पर आ रहे संकट को लेकर चिंता जाहिर की। इस सम्मेलन को इंडियन सोसायटी आॅफ प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज एंड बायोडायवर्सिटी इंटरनेशनल द्वारा आयोजित किया गया। बता दें कि सीजीआईएआर (कंसल्टिंग ग्रुप फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च) का शोध केंद्र है, जिसका मुख्यालय इटली के रोम में है। भारत के लिए यह एक गौरवशाली और ऐतिहासिक उपलब्धि रही कि पहले अंतरराष्ट्रीय कृषि जैव विविधता सम्मेलन के लिए भारत का चयन किया गया।

मोदी कहते हैं कि कृषि जैव विविधता के मामले में भारत बहुत ही समृद्ध देश है और समय आ गया है कि इसका संरक्षण किया जाए। उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर में कल्चर का अहम योगदान होता है। कृषि के सतत् विकास के लिए संस्कृति और परंपरा का योगदान जरूरी है। दुनिया को मिलकर विलुप्त हो रही प्रजातियों को बचाना होगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि हर एक देश दूसरे देश से कुछ न कुछ सीखता रहता है और ये सिलसिला लगातार गति से जारी रहना चाहिए। आज हमें उन तरीकों को खोजने की जरूरत है, जिससे लोगों की आवश्यकता पर्यावरण को क्षति पहुंचाए बिना हो सके। प्रधानमंत्री ने वैज्ञानिकों से जैव विविधता को बचाने और तकनीक की मदद से गरीबी हटाने की अपील की। इस क्षेत्र में शोध को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। इस सम्मलेन में 60 देशों से लगभग 900 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। सम्मलेन का मुख्य उद्देश्य कृषि जैव विविधता प्रबंधन और आनुवांशिक संसाधनों के संरक्षण में प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका के बारे में बेहतर समझ विकसित करना था।

आपको बता दें कि जीव-जंतुओं और पौधों की लगभग 50 प्रजातियां रोजाना विलुप्त हो रही हैं, इसलिए आज जैव विविधता का संरक्षण किया जाना जरूरी है। आज तकनीक हम पर किस प्रकार असर डाल रही है, इस पर ध्यान देना जरूरी है। कृषि में तकनीक के इस्तेमाल से क्या बदलाव आ रहा है इसका आॅडिट होना चाहिए। दरअसल, मनुष्य ने प्रकृति में दखल देकर ही जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा की है। उसकी इसी गलती से तापमान बढ़ रहा है, जो जैव विविधिता को नुकसान पहुंचा रहा है। जैव विविधता की सुरक्षा का अर्थ है कि उसके लिए उपयुक्त वातावरण तैयार करना। हमारे पूर्वज सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे। उनके संस्कार जनित प्रयासों से ही हम जैव विविधता बचा पाए हैं और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए सबकी जरूरत पूरा करते रहे।

एक सच्चाई यह है कि जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के जितने भी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन और कार्यक्रम होते हैं, उनमें विकासशील और विकसित देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर विवाद होता है। विकसित देश अधिक जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते और वो चाहते हैं कि विकासशील देश ही जैव विविधिता दुनिया में गर्म होती जलवायु, कम होते जंगल, विलुप्त होते प्राणी, प्रदूषित होती नदियों, सभी को बचाने का काम करें। यहां तक कि इन कामों के लिए वे पर्याप्त आर्थिक मदद देने के लिए भी तैयार नहीं है। जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण दोनों के बीच संतुलित तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है, नहीं तो इसका खामियाजा प्रकृति को भुगतना पड़ेगा। जैवविविधता पर संकट इसका ही नतीजा है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आॅफ नेचर (आईयूसीएन) एक की रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व में जीव-जंतुओं की 47677 विशेष प्रजातियों में से एक तिहाई से अधिक प्रजातियां यानी 15890 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। आईयूसीएन की रेड लिस्ट के अनुसार स्तनधारियों की 21 फीसदी, उभयचरों की 30 फीसदी और पक्षियों की 12 फीसदी प्रजातिया विलुप्ति की कगार पर हैं। वनस्पतियों की 70 फीसदी प्रजातियों के साथ ताजा पानी में रहने वाले सरिसृपों की 37 फीसदी प्रजातियों और 1147 प्रकार की मछलियों पर भी विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। ये सब इंसान के लालच और जगलों के कटाव के कारण हुआ है।  पिछली कुछ शताब्दियों में जैव विविधता का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। देखा जाए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जैव विविधता के सरंक्षण को लेकर चिंता बहुत ही जायज है। दरअसल, भारत में सबसे ज्यादा जैव विविधता है। ऐसे में इनके संरक्षण की दिशा में काम करना जरूरी है। देश की आधी आबादी को कृषि से रोजगार मिल रहा है। यह हमारी सोच में होना चाहिए कि जीव जंतुओं का महत्व हमसे कम नहीं है।

आज आवश्यकता यह है कि विकास के लिए जैव विविधिता के साथ बेहतर तालमेल बनाया जाए। आरंभ में विकास और जैव विविधिता को दो अलग -अलग अवधारणा के रूप में देखा जाता था, लेकिन बाद में यह महसूस किया गया कि विकास और जैव विविधिता को दो अलग-अलग हिस्से नहीं माना जा सकता। जैव विविधिता के संरक्षण के बिना विकास का कोई महत्व नहीं है । देश के प्राकृतिक संसाधनों का ईमानदारी से दोहन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयास के साथ-साथ जनता की  सकारात्मक भागीदारी की जरूरत है। जनता के बीच जागरूकता फैलानी होगी, तभी इसका संरक्षण हो पाएगा।

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »