-वीना नागपाल
इस बात की तुलना करना शायद सही नहीं होगा कि महिला व पुरुष की समानता की बात हिलेरी और अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के बीच होने वाले चुनाव के संदर्भ में की जाए। अमेरिकावासी अपने प्रजातंत्र को लेकर बहुत भावुक हैं। वहां राजनीतिक प्रतिबद्धता किसी न किसी दल के साथ अवश्य होती है। मुख्य रूप से डेमोक्रेटिक और रिब्लिकन दो पार्टियां हैं। दोनों में से किसी भी एक पार्टी का उम्मीदवार ही अमेरिका के सर्वोच्च पद अर्थात राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित होता है। अमेरिका के बनने वाले राष्ट्रपति विश्व के राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि कई स्थानों पर होने वाले ग्रह युद्धों अथवा अन्य सैनिक शक्ति को भी प्रभावित करते हैं, फिर भी कुछ बातें जेहन में आ रही हैं।
यदि हिलेरी क्लिटंन जीततीं तो वहां पहली बार महिला राष्ट्रपति बनने का इतिहास रचा जाता। यह बात बहुत सुखद लगती कि एक महिला राष्ट्राध्यक्ष बनी, जो अमेरिका की सारी नीतियों को राजनीतिक नजरिए के साथ एक महिला के नजरिए से भी देखतीं। जब ओबामा राष्ट्रपति बने तब उन्होंने पुरुषों के राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाते हुए और अमेरिका के हितों के दृष्टिकोण से कामकाज किए पर, हमें यह भी पता चला कि अमेरिका की प्रथम महिला होने के नाते मिशेल ओबामा ने महिलाओं व बच्चों और उनमें से भी किशोरों की समस्याओं के कल्याण के लिए कितना कुछ सोचा और समाज को प्रभावित किया। उनकी इस सोच ने अमेरिका की महिलाओं के सार्वजनिक व सामाजिक कल्याण के विषय को एक प्रमुख विषय बनाया। यदि अमेरिका में राष्ट्रपति एक महिला होती तो कई महिला कल्याणकारी योजनाओं को एक विशेष बल मिलता। आखिर एक महिला के इस क्षेत्र में बरती जाने वाली मानसिकता तो विशिष्ट होती है। इस क्षेत्र में एशिया के देश महिलाओं की राजनीतिक योग्यता के साथ-साथ उनकी सामाजिक संवेदना के महत्व को विशेष रूप से समझते और सराहते हैं। एशिया के लगभग सभी देशों ने अपने यहां महिला राष्ट्राध्यक्षों को चुना और उनकी क्षमता व कुशलता को पूरा श्रेय दिया। आज बांग्लादेश में एक महिला राष्ट्राध्यक्ष हैं। म्यांमार की सूची को कौन नहीं जानता और पहचानता। भारत ने तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सशक्ता की आज तक प्रशंसा की है। पाकिस्तान जैसे महिलाओं के प्रति दकियानूसी नजरिया रखने वाले तथा महिलाओं के प्रति असहिष्णुता के लिए बदनाम देश में भी बेनजीर भुट्टो को बहुत सम्मान दिया। श्रीलंका में तो दो-दो महिलाएं राष्ट्र अध्यक्ष रहीं। नेपाल की राजनीति में आज विद्यादेवी छाई हुई हैं। यहां यही सवाल उठता है कि एशिया के देशों को बहुत परंपरावादी माना जाता है जहां महिला व पुरुष की समानता को बताकर पश्चिम उसे बहुत लताड़ता है और यहां पर आकर विशेष रिसर्च की जाती हैं कि एशिया महिला सशक्तिकरण व मुक्ति के रास्ते कैसे खुलेंगे? पर यह खरगोश और कछुए की कहानी साबित हो रहा है कि खरगोश तो वहीं का वहीं रुक गया पर, कछुआ अपनी धीमी चाल चलकर विजयी हुआ, महिलाओं की स्थिति को लेकर सर्वश्रेष्ठ साबित हो जाए। हम नहीं जानते कि हिलेरी की हार और ट्रम्प की जीत में महिला-पुरुष समानता की बात के इतर कोई और बात है। हो सकता है कि अमेरिका की जनता ने प्योरली उम्मीदवार की योग्यता को परखा हो। पर, अमेरिका को एक महिला राष्ट्राध्यक्ष बनाने का इंतजार बाकी रह गया है।