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हिलेरी आए या ट्रंप, भारत में निराशा नहीं

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 9 2016 10:23AM | Updated Date: Nov 9 2016 10:23AM
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-डॉ. ब्रह्मदीप अलूने
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के राजतिलक की तैयारियों के बीच दुनिया के बाजार में तेजी और मंदी का स्वाभाविक असंतुलन देखने को मिल रहा है। यह ठीक वैसे ही है जैसी अमेरिका की वैदेशिक नीति। वे आर्थिक नीतियों को लेकर चीन के साथ मुस्कुराते हैं तो सामरिक हितों को लेकर वे दुनिया को चीनी खतरे से आगाह भी करते हैं। अमेरिका एक ऐसा राष्ट्र है जहां की नीतियां वहां की राजनीतिक पार्टियां या राष्ट्रपति तय नहीं करते, बल्कि तय वही होता है जो अमेरिकी हित में हो चाहे सत्ता में कोई भी रहे। पाकिस्तान के सैनिक शासक परवेज मुशर्रफ के काल में जब भारत में सीमापार आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने लगी और उस समय अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत की यात्रा पर आए तो उन्होंने पाकिस्तान की आलोचना की और पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद को कम करने के लिए दबाव डाला, वहीं दूसरी ओर उसने भारत पाक वार्ता के लिए भी दबाव डाला।

इस प्रकार अमेरिका संतुलन की कूटनीति का वह खिलाड़ी है जो अपने व्यक्तिगत हितों के लिए इराक को तबाह भी कर सकता है। उसे तबाह करने वाले अपने प्यादे आईएस को मिटाने के लिए भी कमर कस सकता है। बहरहाल, हमारे देश पर इस राजतिलक के नुमाइंदे को लेकर ज्यादा उत्साह की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हिलेरी क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप में से चाहे जो अमेरिका का सिपहसालार बने उससे भारत को कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। अमेरिका के लिए उसके हित सर्वोपरि होते हैं और जब भारत में बीमा क्षेत्र समेत कई क्षेत्रों के द्वार विदेशियों के लिए खोल दिए गए हैं जिससे अमेरिकन पूंजीपतियों की लार टपक रही है, अत: ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भी पूंजीपति भारत की ओर देखेंगे और हिलेरी के बनने से भी वे मजबूत ही होंगे। 

इस समय भारत और अमेरिका मित्रता की दृष्टि से संबंधों के बेहतरीन दौर में है।  बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जब रूस, अमेरिका समेत सहयोगी राष्ट्रों पर युद्ध थोपने की धमकी दे रहा है, चीन के सहयोग से उत्तर कोरिया और पाकिस्तान दुनिया को परमाणु हमलों की धमकी से ब्लैकमेल कर रहे हैं, जापान, आस्ट्रेलिया जैसे राष्ट्र समुद्र में चीनी दादागीरी से भयभीत हैं, सीरिया और इराक में अमेरिकी सेना आईएस लड़ाकों से जूझ रही है, ऐसे में अमेरिका के लिए इस समय भारत एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक, सामरिक और आर्थिक मददगार है। कुछ लोग हिलेरी के राष्ट्रपति बनने को लेकर चिंतित हैं एवं उन्हें ये लगता है कि हिलेरी के जीतने से पाकिस्तानी मूल की हूमा आबदीन चीफ आॅफ स्टाफ होगी, जिससे अमेरिकी नीतियां पाकिस्तान की ओर झुक सकती हर वे गलत सोचते हैं। अमेरिका के लिहाज से भारत की मित्रता उनके हित में है वहीं दूसरी ओर अमेरिका में इस समय कांग्रेसनल काकस आॅन इंडिया एंड इंडियन अमेरिकन्स नामक संगठन बहुत प्रभावी होकर भारत अमेरिकी संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस संगठन में अमेरिकी कांग्रेस के बहुत प्रभावी सदस्य शामिल हंै जो अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने का माद्दा रखते हैं। पिछले दिनों  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान इस संगठन ने प्रभावी भूमिका निभाकर नरेंद्र मोदी की यात्रा को ऐतिहासिक बनाया। मंदी के कारण आज अमेरिका की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ा गई है और अमेरिकियों के लिए भारतीय बाजार एक बेहतर विकल्प है अत: स्पष्ट है सत्ता किसी की हो भारत अमेरिकी संबंध मजबूत ही होंगे, इसमें कोई संदेह नहीं किया जाना चाहिए। वैसे अमेरिका भारत के साथ उदारीकरण के बाद से ही संतुलन की कूटनीति अपनाए हुए है, वह भारत को महत्व तो देता है लेकिन पाकिस्तान को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का साहस उसने अभी तक नहीं दिखाया है। कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद को मदद न देने की बात की तो उसने भारत को भी कहा कि उसे नियंत्रण रेखा का सम्मान करना चाहिए। 26/11 मुंबई आतंकवादी घटना के कारण भारत-पाक संबंध जब बेहद खराब हुए और भारत ने अमेरिका से कहा कि वह पाकिस्तान को नियंत्रित करने में भारत की मदद करे, तब अमेरिका ने भारत को आतंकवाद उन्मूलन के लिए हर प्रकार से समर्थन की घोषणा की। दूसरी ओर पाकिस्तान के सहयोग प्राप्त करने के लिए उसे गैर सैन्य आर्थिक सहायता देने की घोषणा भी कर दी। इस प्रकार अमेरिका ने भारत के प्रति दोस्ताना रवैया अपनाना शुरू तो कर दिया, लेकिन उसने पाकिस्तान को मदद करना नहीं छोड़ा। डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि उनकी प्राथमिकताओं में भारत से प्रगाढ़ मित्रता है लेकिन हिलेरी या डोनाल्ड ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वे भारत को सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य कब बनाएंगे। 21 मार्च 2000 को भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ‘भारत-अमेरिकी संबंध : 21वीं शताब्दी के लिए एक परिकल्पना’ नामक एक संयुक्त दस्तावेज जारी किया था, जिसमें आने वाले समय में भारत अमेरिकी संबंधों को एक नई दिशा मिलने के संकेत दिए गए थे।
भारत-अमेरिकी संबंधों में टंÑप या हिलेरी से ज्यादा महत्वपूर्ण भूमिका भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो सकती है। वास्तव में लंबे समय तक भारत उदार राष्ट्र के रूप में दुनिया में जाना जाता रहा और उसकी छवि इस प्रकार बन गई थी भारत के साथ जो भी हो वह उसे स्वीकार कर लेता है।  भारत की छवि कानूनी ढर्रे पर चलने वाली एक ऐसे देश की रही जिसे विश्व मंच पर प्रभावी कठोर रुख वाले और यथार्थवादी राष्ट्र गंभीरता से नहीं लेते थे। इस बीच इंदिरा गांधी ने अपनी सशक्त रणनीति के जरिए भारत को साफ्ट राष्ट्र की छवि से निकालकर साफ्ट शक्ति की पहचान दिलाने का प्रयत्न किया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने समस्त पूर्ववर्तियों से आगे निकलकर अंतरराष्ट्रीय राजनीति के मजबूत खिलाड़ी के रूप में उभरे हैं। वे राष्ट्रपति ओबामा को बराक कहने का साहस करते हैं तो उन्हें रूस को यह कहने में भी कोई गुरेज नहीं है कि नए से पुराने मित्र सदैव बेहतर होते हंै, वे चीन की यात्रा से पहले जापान को तरजीह देते हैं और अचानक बीच में विमान रोककर दुश्मन देश पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के घर शादी की मुबारकबाद देने से भी परहेज नहीं करते।

बहरहाल, अमेरिका में डेमोक्रेटिक हिलेरी क्लिंटन सत्तासीन हों या बेबाक बोलने वाले रिपब्लिकन डोनॉल्ड ट्रंप, भारत के लिए निराशा की कोई गुंजाइश नहीं है। अप्रवासन कानून, वित्तीय मामले, सामरिक नीति, आर्थिक नीति और वैदेशिक नीति में अमेरिका के लिए उसके व्यक्तिगत हित सर्वोपरि होते हैं। इस प्रकार अमेरिका में किसी भी पार्टी की सत्ता रहे, वे उसी रास्ते पर चलते हैं, जिससे अमेरिका की सुरक्षा हो एवं उसकी प्रगति हो। अमेरिकी लोकतंत्र का यह पाठ भारतीय राजनीतिक पार्टियों और यहां की जनता को सीखना चाहिए।

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