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जेलों की सुरक्षा को लेकर कोहराम

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Nov 5 2016 12:35PM | Updated Date: Nov 5 2016 12:35PM
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-ओमप्रकाश मेहता
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


भोपाल की एक घटना को लेकर आजकल देश में कृष्ण जन्मस्थलों (जेलों) की सुरक्षा को लेकर न सिर्फ कोहराम मचा है, बल्कि रामभक्तों (भाजपा) की सरकारों से पूछा जा रहा है कि वे राम जन्मस्थली (अयोध्या) को तो सजाने-संवारने और वहां भव्य राममंदिर निर्माण की चिंता कर रहे है, किंतु कृष्ण जन्मस्थलों (जेलों) की सुरक्षा की उन्हें कोई चिंता नहीं है।

वैसे देश की आजादी के बाद से अब तक अन्य स्थलों की तरह सरकारों ने जेलों की भी कागजी चिंता की, कभी इनका नाम बदलकर कृष्ण जन्मस्थली किया गया तो कभी इन्हें सुधार गृह के नाम से पुकारा गया। यही नहीं आज से 41 साल पहले कांग्रेसी सरकार के कथित तानाशाहीपूर्ण आपातकाल के 19 महीनों में जो राजनेता या उनके पथगामी जेलों में रहे, उन्हें उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समकक्ष दर्जा भी दे दिया गया, जिन्होंने अंग्रेजी पुलिस के डंडे और जुल्म सहे थे, किंतु दुख की बात यह कि जेल में कुछ समय रहने वालों की जिंदगी आर्थिक सहायता से सुगम बना दी गई, किंतु जेलों की स्थिति व सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इसीलिए पिछले 15 सालों में देश की 154 जेलें तोड़ी गई और खूंखार कैदी भाग गए।

इनमें मध्यप्रदेश का दूसरा स्थान है, जहां 15 सालों में 28 जेलें तोड़ी गर्इं। पहले क्रम पर राजस्थान है जहां जेल तोड़ने के 43 मामले दर्ज किए गए। उत्तराखंड और दिल्ली राज्य ही ऐसे हैं, जिसमें अब तक जेल तोड़कर कैदियों के भागने का एक भी प्रकरण दर्ज नहीं हुआ। जहां तक जेलों को तोड़कर भागने वाले कैदियों से पुलिस की मुठभेड़ों का सवाल है पिछले दस सालों में 1654 पुलिस कैदी मुठभेड़ें हो चुकी हैं और पुलिस हिरासत में पिछले तीन सालों में 470 की मौत हो चुकी है। यहां यह भी आश्चर्यजनक है कि पिछले दस सालों में जो 1654 मुठभेड़ें हुईं, उनमें से 1562 मुठभेड़ों को फर्जी बताकर सर्वोच्च न्यायालय ने समीक्षा के आदेश दिए, जबकि 800 शिकायतें मानवाधिकार आयोग को मिली है।
यह है भारतीय जेलों और उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व वहन करने वालों का कच्चा चिट्ठा। अब यदि हम जेलों की स्थिति और उनमें ठूंसे जा रहे कैदियों का जिक्र करें। हमारे देश की 1401 जेलों की कुल कैदी रखने की क्षमता तीन लाख 66 हजार 781 है, जबकि आज की स्थिति में इन जेलों में इनकी क्षमता से करीब एक लाख अधिक अर्थात चार लाख 19 हजार 623 कैदी ठूंसे गए हैं और इन जेलों के लिए केंद्र व राज्य सरकारों का कुल बजट 5,157 करोड़ रुपए है। छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड वे राज्य है, जिनकी जेलों में क्षमता से काफी अधिक कैदी ठूंसे हुए हंै। वहीं तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर, बिहार, तमिलनाडु और त्रिपुरा राज्यों की जेलों में बंद कैदियों की संख्या इतनी अधिक है कि उन्हें ठीक से सांस लेने में भी दिक्कत होती है। आज के शासक जिन्हें कृष्ण जन्मस्थली कह कर संबोधित करते हैं, उनकी इतनी दुर्गति आखिर क्यों है? ऐसे में इनमें बंद कैदी येन-केन-प्रकारेण भागने या जेलों से पिंड छुड़ाने का तो प्रयास करेंगे ही?

यह तो हुई राष्ट्रीय स्तर पर जेलों की बदहाली की बात! अब यदि हम मध्यप्रदेश की बात करें तो जिस प्रदेश की राजधानी स्थित केंद्रीय जेल के आधे से अधिक प्रहरी मुख्यमंत्री, मंत्री, पूर्व मंत्री, आई.ए.एस. व जेल अधिकारियों के बंगलों पर तैनात हों, उस जेल में यदि जेल फांद कर खूंखार आतंकी भागते हैं तो कौन-सी अचरज वाली बात है? फिर जहां तक खूंखार युवा आतंकी संगठन सिमी का सवाल है, उसका तो मध्यप्रदेश ही पोषण केंद्र है, राज्य का मालवा क्षेत्र इसकी जन्मस्थली रही, खासकर उज्जैन जिले का महिदपुर नगर, जहां का एक पढ़ा-लिखा व पत्रकारिता की डिग्री हासिल करने वाला मुस्लिम युवक सफदर नागौरी इस संगठन के जन्मदाताओं में रहा है, आज जो कथित प्रतिबंधित सिमी है, जो देश के लिए सरदर्द बना हुआ है यह मध्यप्रदेश की ही देन है, इसलिए इस संगठन के पाकपरस्त युवा जेल तोड़कर भागने का यत्न करते हंै, तो कौन-सी नई बात है? अब यह बात अलग है कि इस युवा आतंकवादी संगठन को देश व विदेशों की सरकारों का कितना संरक्षण व आरक्षण रहा है और अब कितना मिल रहा है।

इस तरह कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि हमारी समस्याओं की जड़ में हम स्वयं कहीं न कहीं है तो कतई गलत नहीं होगा, क्योंकि हम यदि थोड़ा अग्रसोची होकर और अपने भविष्य और भावी पीढ़ी की चिंता कर इन कृष्ण जन्मस्थलियों व इनकी शोभा बढ़ाने वाली युवा पीढ़ी की चिंता करते तो आज न तो हमने जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाना पड़ता और न हम पर अंगुलियां उठाने का किसी को भी मौका मिलता।

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