25 Apr 2024, 05:54:44 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-सतीश सिंह
लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं


बिना ग्राहक की गलती के एटीएम-डेबिट कार्ड के डाटा चुराकर बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का पहला मामला भारत में सामने आया है। अब तक 19 बैंकों के एटीएम-डेबिट कार्ड के डाटा चुराने बात कही गई है। एटीएम-डेबिट कार्ड के डाटा चोरी का मामला तब सुर्खियों में आया, जब भारतीय स्टेट बैंक ने अपने छह लाख एटीएम-डेबिट कार्ड्स को ब्लॉक कर दिया। जिन बैंकों के एटीएम-डेबिट कार्ड के डाटा चोरी किए गए हैं, उनमें स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक, एक्सिस बैंक, बैंक आॅफ बड़ौदा, आईडीबीआई बैंक, सेंट्रल बैंक, आंध्रा बैंक आदि शामिल हैं। प्रभावित एटीएम-डेबिट कार्ड्स की संख्या बढ़कर लगभग 65 लाख पहुंच चुकी है। एहतियात के तौर पर सभी प्रभावित बैंकों ने संदेहास्पद एटीएम-डेबिट कार्डों पर रोक लगा दी है और ग्राहकों को सलाह दी है कि इनके इस्तेमाल से पहले अपना पासवर्ड बदल लें। इस फ्रॉड में एटीएम-डेबिट कार्ड का क्लोन बनाकर देश एवं विदेशों से पैसों की निकासी या आॅनलाइन खरीदारी की गई। विदेशों में क्लोन कार्ड्स का सबसे ज्यादा इस्तेमाल चीन में किया गया। 
नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया (एनपीसीआई) के अनुसार चोरी किए गए एटीएम-डेबिट कार्ड के डाटा की मदद से 19 बैकों के 641 ग्राहकों को साइबर अपराधियों ने 1.3 करोड़ रुपए का चूना लगाया। हालांकि, वीजा और मास्टरकार्ड के अनुसार उनके नेटवर्क के साथ सेंधमारी नहीं की गई है। मामला एटीएम नेटवर्क प्रोसेसिंग का प्रबंधन करने वाली हिताची की अनुषंगी हिताची पेमेंट सर्विसेज से जुड़ा हुआ है। फिलहाल एक मालवेयर वायरस को सेंधमारी का कारण माना जा रहा है। आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव शक्तिकांत दास के अनुसार रिजर्व बैंक और प्रभावित बैंकों की रिपोर्ट आने के बाद ही मामले में किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। दास के मुताबिक ग्राहकों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय बैंकों की सूचना एवं प्रोद्योगिकी प्रणाली पुख्ता है। सरकार के नुमाइंदे के बयान के बाद भी मीडिया द्वारा कहा जा रहा है कि डेबिट कार्ड से जुड़े दूसरे खातों के हैक होने का खतरा अभी भी बरकरार है, जबकि सरकार इससे इन्कार कर रही है। घटना की नजाकत को देखते हुए मीडिया को ऐसे दुष्प्रचार से परहेज करना चाहिए। इधर, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ग्राहकों को उनके पैसे वापस लौटाने का भरोसा दिलाया है। इधर, रिजर्व बैंक द्वारा भी ऐसे मामलों में पीड़ित ग्राहकों को हर्जाना देने का प्रावधान किया गया है। 

वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक मनी से जुड़ी धोखाधड़ी की वारदातों की निरंतरता को देखते हुए भारत में हुई इस घटना को सामान्य माना जा सकता है। अमेरिका से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘द निल्सन रिपोर्ट’ (जो प्लास्टिक मनी से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों को ही सिर्फ कवर करती है) के अक्टूबर 2016 के अंक के मुताबिक एटीएम-डेबिट, क्रेडिट एवं प्री-पेड भुगतान कार्ड (जिसमें मास्टर एवं वीजा दोनों शामिल हैं) से जुड़ी धोखाधड़ी की वारदातों में फंसी राशि 21.84 बिलियन यूएस डॉलर के स्तर तक पहुंच चुकी है। एफआईसीओ (फिको), जो एक क्रेडिट स्कोरिंग एवं एनालिटिक फर्म है, उसके मुताबिक अमेरिका में डेबिट कार्ड का डाटा चुराकर फ्रॉड करने की घटनाओं में दिन-प्रति-दिन इजाफा हो रहा है। बावजूद इसके अमेरिका समेत विश्व के दूसरे देशों में धोखाधड़ी का शिकार होने पर ग्राहकों को हर्जाना देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। आमतौर पर विश्व के अधिकांश वित्तीय संस्थानों के प्लास्टिक मनी से जुड़ी शर्तों में धोखाधड़ी का शिकार होने पर मुआवजा देने की व्यवस्था नहीं होती है। ऐसी सुविधा लेने के समय कोई भी ग्राहक बैंक द्वारा प्रभारित शर्तों को ठीक से पढ़ता तक नहीं है। आमतौर पर शर्तें ऐसी होती हैं, जिनका अनुपालन ग्राहक नहीं कर पाते हैं, हालांकि, भारत में स्थिति इतनी बुरी नहीं है। यहां के केंद्रीय बैंक ने 11 अगस्त 2016 को जारी अपने एक सर्कुलर में साफ तौर पर कहा है कि यदि किसी बैंक की सूचना एवं प्रोद्योगिकी की कमजोर सुरक्षा प्रणाली की वजह से यदि कोई आॅनलाइन फ्रॉड होता है, तो उसकी जबावदेही ग्राहक की न होकर संबंधित बैंक की होगी और फ्रॉड की राशि का हर्जाना बैंक को पीड़ित ग्राहक को देना होगा। हां, इस तरह के आॅनलाइन फ्रॉड की सूचना ग्राहक को तीन दिनों के अंदर बैंक को देनी होगी।   

मौजूदा समय में भारत में ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बैंकिंग लोकपाल, उपभोक्ता फोरम, अदालत आदि फोरम हैं, क्योंकि भारत में हुई यह कोई पहली घटना नहीं है। भारत में इस तरह की वारदातें एक लंबे अरसे से बड़े पैमाने पर होती आ रही हैं। ग्राहकों की हितों की सुरक्षा के लिए ऐसे फोरम में ग्राहकों की शिकायतों की सुनवाई की जाती है। बानगी के तौर पर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और हरियाणा के तीन जिलों के पंचकूला, अंबाला और यमुना नगर में बैंकिंग लोकायुक्त के पास सबसे ज्यादा शिकायतें एटीएम-डेबिट कार्ड से संबंधित ही आती हैं। एटीएम मशीन से पैसे नहीं निकलने, लेकिन कार्ड की क्लोनिंग होने, एटीएम-डेबिट कार्ड के पास में ही होने, लेकिन पैसे की निकासी हो जाने जैसी शिकायतें सबसे अधिक हैं। चंडीगढ़ लोकायुक्त के पास वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इस तरह की 3955 शिकायतें दर्ज कराई गई, जो वित्त वर्ष 2011-12 में 3521 थी।  उल्लेखनीय है कि लोगों के खाते से बिना उनकी जानकारी के पैसे निकल गए और पीड़ित  ग्राहकों को इसकी भनक तक नहीं लगी, जो ग्राहक की वित्तीय साक्षरता के स्तर को दर्शाता है। झारखंड के रांची में रहने वाले एक जागरूक ग्राहक की शिकायत के बाद इस फ्रॉड का खुलासा हुआ। आज भी अधिकांश ग्राहक अपने खातों की विवरणी नियमित रूप से नहीं देखते हैं, जबकि लगभग सभी बैंकों ने अनेक तरह के ऐप ग्राहकों को मुहैया करा रखे हैं।  गौरतलब है कि बैंकिंग ऐप की मदद से खातों से जुड़ी अनेक तरह की सूचनाएं हासिल की जा सकती है। भारतीय स्टेट बैंक ने हाल ही में एसबीआई क्विक के नाम से एक ऐसा एप विकसित किया है, जिसकी मदद से एटीएम कार्ड को बिजली के स्विच की तरह आॅन एवं आॅफ किया जा सकता है अर्थात एटीएम से पैसे निकालने के समय आप एटीएम कार्ड का स्विच आॅन कर पैसे निकाल सकते हैं। उसके तुरंत बाद उसके स्वीच को आॅफ भी कर सकते हैं, जिससे फ्रॉड से आसानी से बचा जा सकता है।   

एटीएम-डेबिट कार्ड की डाटा चोरी बैंकों की तकनीकी सुरक्षा प्रणाली में कमी को जरूर दर्शाता है, लेकिन इससे ग्राहकों को घबराने की जरूरत है, क्योंकि भारतीय बैंकों की सूचना एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली मजबूत है। साथ ही, हमारे देश के केंद्रीय बैंक ने बैंक की सूचना एवं प्रौद्योगिकी प्रणाली की कमजोरी की वजह से हुए आॅनलाइन ठगी के मामलों में मुआवजे का प्रावधान किया है। इस संबंध में इसी साल अगस्त महीने में सर्कुलर भी जारी किया गया है, लेकिन अपवाद को छोड़कर ठगी के शिकार ग्राहकों को भी पाक-साफ नहीं माना जा सकता है। ग्राहकों का भी दायित्व है कि वे बैंकिंग क्षेत्र में आए दिन आ रहे तकनीकी बदलावों से अपने को अद्यतन रखें तथा बैंक द्वारा बताई जा रही सावधानियों का भी अनुपालन करें।

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