24 Apr 2024, 14:49:18 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के  संपादक


श्री राम संग्रहालय के साथ ही अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनाने की राजनीति गरमाने लगी है। गौर से देखा जाए तो श्रीराम के जन्मस्थान अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर राजनीति का कोई अर्थ नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि भगवान राम का जीवन और चरित्र समूचे आर्यावर्त के लिए आदर्श रहा है। दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में रामलीलाओं का मंचन इसका प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति के आदि पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम समस्त मानव जाति के लिए आदर्श स्थापित करने के लिए ही इस धरा पर आए  थे मगर अयोध्या में उनके मंदिर निर्माण को लेकर जिस तरह का संघर्ष राजनीतिक दलों के बीच का अखाड़ा बना हुआ है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि हम भारतीयता को भी सांप्रदायिक चश्मे से देखना चाहते हैं। हिंदी के प्रकांड विद्वान स्व. डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने जब अपनी प्रख्यात पुस्तक ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ लिखी थी तो उस समय राम मंदिर निर्माण आंदोलन शुरू भी नहीं हुआ था।

इस पुस्तक में पंडितजी ने भगवान राम का सामाजिक महत्व रेखांकित किया है और लिखा है कि राम धार्मिक सहिष्णुता के सबसे बड़े प्रतीक भी थे, क्योंकि उन्होंने साधारण जनमानस की जिज्ञासाओं का राजसिंहासन पर बैठने के बावजूद समाधान खोजा था। विभिन्न देवी-देवताओं और मत-मतांतरों से बंधे हिंदू समाज के अलग- अलग ईष्ट देव थे किंतु सामाजिक समरसता बनाए रखने के लिए दशरथ पुत्र राम ने परिवार से लेकर समाज और राष्ट्र तक में प्रेरणा भरने के लिए निर्विकार भाव से संपत्ति रहित सामान्य नर का जीवन बिताया और उसके सामने आने वाले झंझावातों को व्यावहारिक रूप से झेला। अत: राम शब्द के ईश्वर बोध में जनसामान्य का साहस बोध भी गुंथा हुआ है।

राम निराकार उपासकों के लिए भी और साकार उपासकों के लिए भी परमानंद की प्राप्ति का पर्याय इसीलिए है कि इसके स्मरण से व्यक्ति के भीतर के अहंकार का नाश होता है, क्योंकि रावण जैसे प्रतापी और ब्रह्म ज्ञानी समझे जाने वाले प्रकांड विद्वान का सबसे बड़ा अवगुण ही अहंकार था। यदि अहंकार रावण को न खाता तो वह स्वयं राम बन जाता।  अत: भारत में प्रचलित अभिवादन का स्वरूप ‘राम- राम’ सामाजिक बराबरी का अभिप्राय बनकर लोकप्रिय हुआ किंतु आज वास्तव मेंं लग रहा है कि राम का मुकुट भीग रहा है, क्योंकि जब भी राम मंदिर निर्माण की बात आती है तो चुनावों का रोना रोकर इसे पीछे धकेल दिया जाता है। भारत में ऐसा कोई वर्ष खाली नहीं जाता जब किसी न किसी राज्य में चुनाव न होते हों।

राम को मानने वाले हर राज्य में रहते हैं। दूसरा सवाल खड़ा हो सकता है कि जब श्रीराम जन्मभूमि का मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है तो फिर बार-बार विवाद क्यों खड़ा किया जाता है?  इस विवाद का यह न्यायिक पक्ष है किंतु कृपया यह भी बता दिया जाना चाहिए कि आदि रामायण के रूप में महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण के वर्णन की किस वैज्ञानिक पैमाने से जांच  की जाएगी। इसमें लिखा हुआ है कि श्रीराम का जन्म अयोध्या के राजा दशरथ के घर हुआ था किंतु हमें मालूम है कि मुगल शासक बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था जो उज्बेकिस्तान से चल कर यहां आया था। उसने  यहां प्रचलित धर्म के आस्था केंद्रों को भी उजाड़ कर अपनी  सल्तनत का रुतबा कायम किया था। उसी ने अयोध्या में राम मंदिर को बाबरी मस्जिद में तब्दील किया था। इसका तो पुख्ता इतिहास है। 1530 में बाबर इस दुनिया से भी चल बसा था। अत: शंका और विवाद की गुंजाइश कहां है जो भारत के रहने वाले लोग सब्र करते रहें और सोचते रहें कि उनके मंदिर को मस्जिद में तब्दील करने वाले निशानों को मिटा कर वहां प्राचीन मंदिर को पुन: नए तरीके से स्थापित किया जाए।

यही वजह थी कि जब भाजपा नेता  लालकृष्ण अडवाणी ने श्रीराम मंदिर आंदोलन चलाया तो पूरा भारत उठकर खड़ा हो गया था। यह एक राष्ट्रीय आंदोलन में बदल गया था। अत: प्रश्न हिंदू-मुसलमान का है कहां? प्रश्न तो एक आक्रमणकारी द्वारा छोड़े गए निशानों और मूल चिह्नों का है। हमने खुद देखा कि किस तरह 1947 में  भारत का बंटवारा केवल मजहब के नाम पर कराया गया मगर जो लोग उस समय पाकिस्तान कही जाने वाली धरती पर बसे थे उसमें भी तो तक्षशिला विश्वविद्यालय के अवशेषों से लेकर हिंगलाज देवी का मंदिर और ननकाना साहब गुरुद्वारे के तीर्थ हैं।

भारत तो तीर्थस्थलों का देश है। इसका भूगोल इसी से बंधकर नक्शे में खिंचता है। बाद में बीसियों धर्म इसमें आते चले गए और समाहित होते चले गए। अत: मूल तत्व से विमुखता तो किसी भी भारतीय को सहन नहीं होनी चाहिए। बेशक, राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने के लिए इसे विवाद का विषय बनाए रखें किंतु वास्तविकता तो यही है कि अयोध्या में ही श्रीराम का जन्मस्थल है और वहां 16वीं सदी के शुरू तक राम मंदिर ही था। यह तथ्य तो उच्च न्यायालय ने भी स्वीकार कर लिया है।

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