-सुशील कुमार सिंह
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
जब ब्रिक्स का पहली बार प्रयोग वर्ष 2001 में गोल्डमैन साक्स ने अपने वैश्विक आर्थिक पत्र द वर्ल्ड नीड्स बेटर इकोनोमिक ब्रिक्स में किया था, जिसमें इकोनोमीट्रिक के आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि आने वाले समय में ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन की अर्थव्यवस्थाओं का व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों रूपों में विश्व के तमाम आर्थिक क्षेत्रों पर नियंत्रण होगा। उस वक्त यह अनुमान नहीं रहा होगा कि आतंकवाद से पीड़ित भारत से मंचीय हिस्सेदारी रखने वाला चीन पाकिस्तान के आतंकियों का बड़ा समर्थक सिद्ध होगा। जैश-ए-मोहम्मद के अजहर मसूद के मामले में यह बात पूरी तरह पुख्ता होती है, हालांकि चीन और भारत के बीच रस्साकशी वर्षों पुरानी है, जबकि ब्रिक्स का एक अन्य सदस्य रूस, भारत का दुर्लभ मित्र है। साफ है कि पांच देशों के इस संगठन में भी नरम-गरम का परिप्रेक्ष्य हमेशा से निहित रहा है।
ब्रिक्स के सम्मेलन में सदस्य देशों ने जिस तर्ज पर आतंक के खिलाफ एक होने का निर्णय लिया है उससे भी यह साफ है कि मंच चाहे जिस उद्देश्य के लिए बनाए गए हों पर प्राथमिकताओं की नई विवेचना समय के साथ होती रहेगी। उरी घटना के बाद भारत ने जिस विचारधारा के तहत पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकियों को सर्जिकल स्ट्राइक के तहत निशाना बनाया वह भी देश के लिए किसी नई अवधारणा से कम नहीं है, साथ ही पड़ोसी बांग्लादेश समेत विश्व के तमाम देशों ने भारत के इस कदम का समर्थन करके यह भी जता दिया कि आतंक से पीड़ित देश को जो बन पड़े उसे करना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ब्रिक्स के माध्यम से गोवा में सभी सदस्यों समेत भारत और चीन का एक मंच पर होना और प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि आतंक के समर्थकों को दंडित किया जाना चाहिए, में भी बड़ा संदेश छुपा हुआ है जाहिर है यह संदेश चीन के कानों तक भी पहुंचे होंगे।
देखा जाए तो ब्रिक्स पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जहां विश्वभर की 43 फीसदी आबादी रहती है और पूरे विश्व के जीडीपी का 30 फीसदी स्थान यही घेरता है। इतना ही नहीं वैश्विक पटल पर व्यापार के मामले में भी यह 17 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। अब तक गोवा सहित आठ ब्रिक्स सम्मेलन हो चुके हैं। इसका पहला सम्मेलन जून 2009 में रूस में आयोजित हुआ था। पिछला अर्थात सातवां सम्मेलन भी रूस में ही हुआ था। गौरतलब है कि इस दौरान आतंक के मामले में नवाज शरीफ ने मोदी से यह वादा किया था कि वे पाकिस्तान के आतंकियों पर नकेल कसेंगे पर इस्लामाबाद पहुंचकर उन्होंने पलटी मार दी थी। देखा जाए तो 2014 के सार्क सम्मेलन से आतंक के मसले पर भारत और पाक के बीच दूरियां बढ़ने लगी थी, हालांकि इस मामले में मोदी ने अपनी तरफ से भरसक कोशिश की पर कश्मीर का राग अलाप कर पाकिस्तान आतंकवाद पर उसके द्वारा की जाने वाली कार्रवाई को नजरअंदाज करता रहा। दिसंबर, 2015 में जब मोदी ने एकाएक लाहौर की यात्रा की तब पूरी दुनिया भी सन्न रह गई थी और यह बात चीन भी अच्छी तरह समझ रहा था कि मोदी किस स्तर तक पाकिस्तान से संबंध सुधारना चाहते हैं। बावजूद इसके पाकिस्तान ने कुछ भी सकारात्मक नहीं सोचा। दौरे के एक हफ्ते बाद ही 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट पर हुए आतंकियों के हमले ने मोदी के भरोसे को चकनाचूर कर दिया। विदेश मंत्रालय स्तर की वार्ता को विराम लगा दिया गया। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब मार्च 2016 में पाकिस्तान की जांच एजेंसी ने पठानकोट का दौरा करने के बाद इस बात से पलटी मार दी कि जब तक कश्मीर समस्या नहीं हल होगी, ऐसी कोई बात आगे नहीं बढ़ सकती। गौरतलब है कि भारत की जांच एजेंसी को भी इस्लामाबाद का दौरा करना था।
गोवा के ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि 2008 के आर्थिक संकट और इससे जूझती ग्लोबल इकोनोमी का असर ब्रिक्स देशों के आर्थिक विकास पर हुआ है, लेकिन सदस्य देशों के आर्थिक विकास की सम्भावनाएं इससे बेअसर हैं। विवेचना और संदर्भ यह भी है कि क्या 2008 के आर्थिक संकट से अभी भी देश बाहर नहीं निकल पाए हैं। अर्थव्यवस्था में सुस्ती और चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। इसके अलावा पाक का आतंकी कारोबार भी भारत के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है। भारत का बहुत बड़ा आर्थिक हिस्सा पाक सीमा सुरक्षा पर खर्च करना पड़ता है, जबकि पाकिस्तान की गलतियों का समर्थन करने वाला चीन भारत में अपने बाजार का विस्तार किये हुए है। 70 अरब के व्यापार में मात्र नौ अरब का व्यापार ही भारत, चीन से कर पाता है बाकी सारे पर चीन का कब्जा है। जिस तर्ज पर पाकिस्तान भारत को आतंक के बूते नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है, यदि इसमें युद्ध जैसी कोई स्थिति बनती है तो वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं भी हाशिए पर जाएंगी। ब्रिक्स देशों के लिए नवीनता इस सुस्ती से निपटने का सबसे कारगर तरीका होगा, जिसके लिए सदस्यों के बीच पारदर्शिता, सारगर्भिता और सच्ची आत्मीयता की तिकड़ी भी होनी चाहिए। दुनिया जानती है कि भारत को नीचा दिखाने के लिए चीन पाकिस्तान की हर गलतियों पर साथ देता है। फिर वह चाहे आतंक को ही बढ़ावा देने वाली क्यों न हो परंतु इस बार गोवा में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को भी दो टूक समझाने में सफल रहे हैं। चीन को यह भी समझ लेना चाहिए कि यदि पाकिस्तान को हर सूरत में समर्थन देना चाहेगा तो विश्व से आतंकी गतिविधियां समाप्त नहीं होंगी। पहले भी वह संयुक्त राष्ट्र संघ की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् में पाकिस्तान के आतंकियों को बचाने के लिए वीटो का प्रयोग कर चुका है। अच्छी बात यह भी हुई है कि बीते रविवार को ब्रिक्स सम्मेलन में एक घोषणा-पत्र जारी हुआ जिसमें सभी देश मसलन ब्राजील, रूस, भारत, चीन समेत दक्षिण अफ्रीका ने मनी लॉड्रिंग, नशीली दवाओं की तस्करी और आतंक का समर्थन करने वाले संगठित अपराधों को रोकने की अपील की। ब्रिक्स और बिम्सटेक बैठक के लिए बंग्लादेश, भूटान और म्यांमार के नेता भी पहुंचे हैं। जाहिर है सभी आतंक के खिलाफ एकजुटता दिखा रहे हैं।
गौरतलब है कि बीते 24 सितंबर को केरल के कोझीकोड़ में मोदी ने भारत समेत पाकिस्तान की अवाम को भी अपने संबोधन में समेट लिया था और तेवर के साथ कहा था कि पाकिस्तान को अलग-थलग कर देंगे। इसमें कोई शक नहीं कि वे इस मामले में मीलों आगे निकल चुके हैं। गोवा का ब्रिक्स सम्मेलन एकजुटता के लिए जाना जाएगा। यदि परिणाम भी इसी रूप में आए तो ब्रिक्स के इतिहास में यह सम्मेलन एक बड़ा अध्याय साबित होगा। सबके बावजूद सुविचारित और विवेचित दृष्टिकोण यह भी है कि पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन के बीच पुरानी दोस्ती पटरी पर आ गई है जो चीन को संतुलित करने में कारगर सिद्ध हो सकती है। वैसे चीन पर अंधा विश्वास नहीं किया जा सकता परंतु नीति और कूटनीति को ध्यान में रखते हुए समय के साथ इसकी जांच परख आगे होती रहेगी।