-वीना नागपाल
बहुत दिन बीत चुके हैं, परंतु वह मां इन सारे दिनों में निरंतर संघर्ष करती रही। एक-एक पल न्याय पाने के लिए जूझती रही। उसे एक क्षण भी आराम नहीं था, वह चाहती थी कि उसके बेटे के हत्यारों को सजा मिले। वह जेल के सींखचों के पीछे लंबे वर्षों तक रहें। उसके युवा बेटे को इन कातिलों ने बेहरमी से न केवल मार दिया था बल्कि सबूत मिटाने के लिए उसके शव को जलाने का प्रयास भी किया था। न्याय मांगने के लिए निरंतर संघर्ष करती हुई मां दिल्ली की नीलम कटारा हैं। वह नीतीश कटारा की मां है। नीतीश का विशाल यादव की बहन भारती यादव से प्रेम था, विकास उनका संबंधी था। वह दोनों विवाह करना चाहते थे। यादव परिवार बाहुबली परिवार था। अपनी राजनीति के प्रभुत्व व संपन्नता में पूरी तरह से आकंठ डूबा हुआ। बहुत गुमान था उन्हें अपने परिवार की सत्ता व स्वामित्व का। हालांकि यह सब आपस में मित्र थे, परंतु उनसे यह बात स्वीकार नहीं हो रही थी कि उनके परिवार की बेटी अपनी मर्जी से एक अन्य जाति के युवक से प्रेम करे। इसी को लेकर उन बाहुबलियों ने मिलकर नीतीश की हत्या कर दी और उसके शव के साथ भी निर्ममता की। नीतीश की मां अपने बेटे की हत्या पर चुप नहीं बैठीं और वह इन सुविधा संपन्न तथाकथित धनाढ्यों और झूठे सम्मान को लेकर जीने वाले बाहुबलियों के विरुद्ध उठ खड़ी होकर न्यायालय में न्याय पाने के लिए पहुंच गर्इं।
हालांकि यह संघर्ष लंबा चला और नीलम अकेली भी थीं, पर उन्होंने स्वयं को टूटने और बिखरने नहीं दिया और वह तमाम धमकियों के बावजूद पीछे नहीं हटीं। मां जब अपनी संतान के लिए न्याय पाने पर आ जाए तो वह किसी भी हद तक जाकर संघर्ष कर सकती है। न्यायालय की लंबी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट तक चली और अब पिछले दिनों उन दोनों हत्यारों को 25-25 वर्ष की जेल की सजा हुई है। नीलम कटारा का विजयी चेहरा लगभग हर राष्ट्रीय समाचार पत्र ने प्रकाशित किया है। हम भी उनके इस भावनात्मक संघर्ष में उनके साथ हैं और उनकी विजय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। मां की एक लंबी लड़ाई में हमारा इतना तो फर्ज बनता है।
नीलम कटारा ने कहा है कि यह सामान्य हत्या का मामला नहीं है। यह तो जाति अहंकर व उस पर छद्म गर्व करने के कारण की गई हत्या है। जाति विभेद और ऊंच-नीच के भाव का हमारे संविधान में कोई स्थान नहीं है पर, समाज से यह बुराई जा नहीं रही है और इसके कारण ‘आॅनर किलिंग’ की आड़ लेकर ‘हॉरर किलिंग’ की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे ऐसा ही माना है, नीलम कटारा ने एक मां के रूप में कहा कि - मेरे बेटे का शव कोई चप्पल, जूता नहीं था, जिसे ऐसे नष्ट कर दिया गया अगर यह फैसला और सख्त होता तो आने वाली पीढ़ियों के लिए नजीर बनता। वास्तव में नीलम कटारा की यह लड़ाई केवल अपने बेटे को इंसाफ दिलाने की ही नहीं रही।
उन्होंने कहा यह लड़ाई युवा पीढ़ी द्वारा अपने लिए पसंद का जीवनसाथी तलाशने और मर्जी की शादी के अधिकार को मान्यता दिलाने की है। यह एक संघर्ष की बात हो जाती है जब दो युवा अपनी पसंद का साथी चुनकर उससे विवाह करने का निश्चय कर लेते हैं। परिवारों को यह कतई गवारा नहीं होता कि उनके बेटा या बेटी जाति के बाहर जाकर या अपने बाहुबली राजनीति व अन्य किसी रसूख के कारण बने माहौल से परे जाकर विवाह कर लें।
युवाओं को अपना चुनाव करने का अधिकार माता-पिता देना ही नहीं चाहते। इसे अपने तथाकथित पारिवारिक सम्मान से जोड़कर अपने बेटे-बेटियों और उनके द्वारा चुने गए साथी को भी मार डालते हैं। इस भ्रांति को जितनी जल्दी दूर कर सकें उतना ही सामाजिक स्वास्थ्य और आज के युवाओं के लिए हितकारी होगा। एक मां का संघर्ष विजयी हुआ। उस मां की भावनाओं के साथ जुड़कर अपनी संतान के जीवनसाथी को लेकर चुनाव को मान्य करें।
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