24 Apr 2024, 05:33:28 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

सुप्रीम कोर्ट की वकील ऐश्वर्या भट्टी ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक मासूम नाबालिग किशोरी को इस तरह की पीड़ा और यातना से गुजरना पड़ा। वह पिछले कुछ महीनों से तो अपने साथ हुए हादसे से अपमान झेल ही रही थी पर, उसकी पीड़ा की पराकाष्ठा तब हो गई जब उसे चिकत्सकीय सुविधा भी नहीं मिली।

14 वर्ष की वह किशोरी एक बच्ची ही तो कही जाएगी। उसके साथ उसके पड़ोस में रहने वाले ने दुष्कर्म किया और जब वह गर्भवती हुई तो वह उस स्थान से ही भाग गया। उस किशोरी के माता-पिता अपनी बच्ची के लिए न्याय पाने के लिए भटकते रहे। वह चाहते थे कि उनकी बच्ची का गर्भपात करवाने की अनुमति मिल जाए, परंतु न्यायालय ने इसकी अनुमति नहीं दी, क्योंकि गर्भ की अवधि बढ़ चुकी थी। इसके बाद तो और भी अमानवीयता हुई। उस किशोरी को जब प्रसव पीड़ा हुई तो उसके माता-पिता उसे निकट के स्वास्थ्य केन्द्र में ले गए, वहां की स्वास्थ्य परिचारिका को जब यह पता चला कि बच्चा तो लड़की के साथ की गई जोर-जबरदस्ती का परिणाम है तो उसने किशोरी को हाथ लगाने से भी मना कर दिया और कहा कि उसे जिला अस्पताल ले जाएं। माता-पिता ने जैसे-तैसे एम्बुलेंस की व्यवस्था की पर उस किशोरी का अस्पताल पहुंचने से पहले एम्बुलेंस में ही प्रसव हो गया, बाद में जब मीडिया वालों को सारी बात पता चली तब उन्होंने इस घटना को बहुत संवेदना के साथ प्रकाश में लाया। यहां तक कि अब यह राष्ट्रीय समाचार भी बन चुका है।

जिस तरह से समाचार को लेकर कई प्रश्न उठाए जा रहे हैं उनमें से सामाजिक चिंतकों का यह प्रश्न प्रमुखता से उभरा है कि जब बच्ची के साथ जोर-जबरदस्ती हुई थी और यह अनचाहा गर्भ था तो न्यायालय द्वारा गर्भपात की अनुमति क्यों नहीं दी गई? उसके परिवार ने न्यायालय के दरवाजे बार-बार खटखटाए पर, सारी प्रक्रिया में अकारण समय लग गया और तब यह तर्क दिया गया कि चूंकि गर्भ की अवधि बढ़ चुकी है इसलिए गर्भपात नहीं कराया जा सकता, यह कानून अपराध होगा। किशोरी के माता-पिता गरीब थे और वह निजी अस्पताल में जाकर छिपा कर गर्भपात नहीं करवा सकते थे। शासकीय अस्पताल उन्हें यह सुविधा नहीं दे सकते थे।

उस किशोरी के बारे में बात करना इसलिए जरूरी है कि आज जिस तरह की दुर्घटनाएं समाज में हो रही हैं उनमें सबसे अधिक पीड़ित किशोरियां हैं, जिन्हें पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण यह ही नहीं पता होता कि जो उनके साथ हुआ है उसके दुष्परिणाम स्वरूप वही सबसे अधिक मानसिक व शारीरिक पीड़ा भोगेंगी। वह इससे बचना ही नहीं जानतीं। उन्हें यह भी नहीं पता होता कि वह गर्भ धारण भी कर चुकी हैं। इसमें वह अवधि बीत चुकी होती है, जिसमें वह सुरक्षित गर्भपात करवा सकती हैं, परंतु हालात को देखते हुए अब बहुत जरूरी हो गया है कि जोर जबरदस्ती की शिकार किशोरियों व युवतियों को कानून द्वारा यह अनुमति प्रदान की जाए कि वह गर्भपात करवा सकें। उन्हें इस पीड़ा व यातना तथा अपमान से गुजरने की स्थिति तक क्यों पहुंचाया जाए? अब चिकित्सकीय सुविधाएं इतनी विकसित हो गई हंै कि गर्भपात करने में असुरक्षा बहुत हद तक समाप्त हो चुकी है। 14 वर्षीय किशोरी जिस यातना से गुजरी है उस यातना को मिटाने व दूर करने में समाज व शासन की अहम भूमिका होना चाहिए।

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