-वीना नागपाल
वैवाहिक संबंधों की खटास को लेकर जिस तरह आजकल न्यायालयों में याचिकाएं लग रही हैं और तलाक मांगे जा रहे हैं उनके विभिन्न आधारों को लेकर चौंकना बहुत स्वभाविक है। एक आधार यह बताया गया कि पत्नी नहीं चाहती थी कि वह पति के माता-पिता के साथ रहे और इसलिए वह पति को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती थी। उनके परस्पर विवाद समाप्त ही नहीं होते थे। यह नहीं था कि वह नई-नवेली दुल्हन थी बल्कि उसके विवाह को आठ-दस वर्ष बीत चुके थे और बच्चे भी थे। एक दूसरी घटना में पत्नी ने प्रताड़ना का आरोप लगाया और वह मायके आ गई। जब न्यायालय में बहस चली तो पता चला कि उनके हनीमून से लेकर अब तक अर्थात एक-दो वर्ष भी पत्नी ने पति को वैवाहिक सुख नहीं दिया। न्यायालय ने इसे पत्नी द्वारा किया गया अत्याचार माना। पहली घटना में भी न्यायालय ने पत्नी को ही दोषी माना था, क्योंकि उसका मत था कि असहाय वृद्ध माता-पिता कैसे अलग किए जा सकते हैं यह बहुत अमानवीय है। बेटे-बहू का फर्ज बनता है कि वह मां-बाप को अपने साथ रखें। न्यायालय ने इससे भी आगे बढ़कर अपने निर्णय में कहा कि आजकल विवाह होते ही लड़कियां सास-ससुर से अलग होकर घर बसाना चाहती हैं, यह कॉन्सेप्ट पश्चिम का होगा-भारतीय समाज का नहीं है। एक और घटना में पत्नी ने पति पर आरोप लगाया कि वह बच्चों के प्रति लापरवाह है और इसलिए वह अलग होकर भरण-पोषण प्राप्त कर बच्चों को भली प्रकार से रखना चाहती है।
अदालत ने यह आरोप बेबुनियाद पाया, क्योंकि उसके द्वारा कराई गई जांच में यह पाया गया कि पिता नामी स्कूल में बच्चों को पढ़ा रहा है और यहां तक कि उसने बच्चों का लालन-पालन ठीक प्रकार से हो इसके लिए सुविधा-संपन्न घर भी खरीद दिया है। एक अन्य याचिका में पत्नी-पति को बार-बार शराबी कहती थी। यहां तक कि वह परिचितों के सामने भी पति को ऐसा संबोधन देती थी। वह एक शिक्षक था, उसके साथी शिक्षकों के सामने ऐसी बात पत्नी द्वारा कहे जाने से उसकी छवि धूमिल हो रही थी। अदालत ने अपने निर्णय में इस संदर्भ में कहा कि इस तरह बेबुनियाद आरोप लगाना और शराबी कहना पति का गंभीर मानसिक उत्पीड़न है। इतना ही नहीं एक शिक्षक को शराबी की बार-बार संज्ञा देने से समाज में उसकी प्रतिष्ठा को बहुत ठेस पहुंची है। एक अन्य याचिका में पत्नी ने पति पर बहुत गंभीर आरोप लगाए जिनमें पति द्वारा उसे बार-बार प्रताड़ित करने के साथ-साथ यह भी कहा गया कि उसके साथ मारपीट भी की जाती रही और उसके मायके से पैसा लाने का दबाव बनाया जाता था। अदालत ने जब जांच की तो यह आरोप बेबुनियाद निकले उल्टे यदि कोई मेहमान आ जाता तब पत्नी को अच्छा नहीं लगता था और वह उन्हीं के सामने पति और उन्हें भला-बुरा कहने लगती। चाय बनाना तो बहुत दूर की बात है, वह अपमानित करने वाली भाषा बोलती। जब पति से यह सहन नहीं हुआ तो वह उससे गुस्सा होकर उस पर दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाकर अपने माता-पिता के घर चली गई। तलाक के इन आधारों को लेकर समाज की बदली परिस्थितियों का बिंब दिखाई दे रहा है। यह परिवर्तन सतही है जो समाज की मूलभूत बुनियाद से नहीं सतही हैं। यदि उनमें परिपक्वता और गंभीरता होती तो ऐसे केस चौंकाते नहीं। यहां पतियों के ही पीड़ित होने के जो कारण प्रस्तुत किए गए हैं उनके भीतर वही बात छिपी है कि युवतियां आज सामंजस्य की परिभाषा भुला रही हैं। अब की बार तो पत्नियों के बेबुनियाद आरोप सामने आए हैं देखें अगली बार पति किस तरह के आरोप लगाकर पत्नियों से तलाक चाहते हैं।
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