29 Mar 2024, 17:37:23 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

जब से महिलाओं ने व्यापार करने में रुचि दिखाई है, उनकी आर्थिक प्रगति और स्थिति में बेहतर परिवर्तन केवल उनकी बेहतरी के लिए नहीं है बल्कि इसने समाज की भी आर्थिक व्यवस्था में लाभकारी परिवर्तन किया है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि महिलाएँ पुरुषों की तुलना में बेहतर व्यवसायी साबित हो रही हैं। उनमें गजब की प्रबंधन क्षमता पाई गई है और वह अपने व्यवसाय को चलाने में बहुत जिम्मेदारी से कार्य करती हैं। उनकी ईमानदारी और लगन देखते ही बनती है। पिछले दिनों प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक प्रहलाद कक्कड़ ने महिलाओं की इसी व्यापारिक क्षमता को लेकर कहा कि वह व्यापारिक बुद्धि का इतना सूक्ष्म प्रयोग करती हैं कि यह तय होता है कि वह जिस भी व्यवसाय को करेंगी उसे शत-प्रतिशत सफल बनाने का अकथ प्रयास करेगीं। वह चाहे छोटे अथवा मध्यम वर्ग के उद्यम में लगी हों पर, उसको सफल बनाने का उनका समपर्ण देखते ही बनता है। लगभग 35 वर्ष की महिला व्यवसायियों की अपने व्यापार को चलने की उर्जा बहुत प्रशंसनीय है। उस सर्वेक्षण में पाया गया कि महिलाएं अपना व्यवसाय स्थापित करने में आनंद व प्रसन्नता का अनुभव करती हैं इसलिए ही उनका उत्साह उस व्यवसाय के प्रति बना रहता है। महिलाओं में किसी भी व्यवस्था से गहरे से जुड़ने और भावनात्मक लगाव का प्राकृतिक गुण होता है। इसलिए वह अपने व्यापार को भी इसी नजरिए से चलाती हैं। यदि यह भाव होगा तो इतना तो कम से कम सुनिश्चित हो जाता है कि व्यापार काफी हद तक सफल हो जाएगा। इसकी संभावना स्वभाविक रूप से बढ़ जाती है। उनकी रुचि की सीमा तो इस क्षेत्र में इतनी अधिक बढ़ गई है कि वह स्वयं ऐसे स्त्रोतों तथा बैंकों से मिलने वाले कर्ज की तलाश करती हैं, जिसमें वह छोटे या मध्यम स्तर पर ही सही अपना व्यापार प्रारंभ कर सकें और यदि यह स्थापित हो गया है तो इसे विस्तृत करने तथा बढ़ाने के लिए भी आर्थिक सहायता प्राप्त कर सकें।

इसी सर्वेक्षण में बैंकों से भी महिला व्यवसायियों को लेकर बातचीत की गई। बैंक अधिकारियों ने बताया कि महिलाएं बैंकों से ऋण लेकर उसे नियम पूर्वक किस्तों में लौटाने में बहुत ईमानदारी होती हैं। बिना किसी दबाव या नोटिस के वह तय तारीख पर आकर राशि जमा करवा देती हैं। उनकी नीयत में कोई खोट नहीं होता। कई बैंकों के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि हम महिलाओं की जिम्मेदारी की भावना से कई बार चकित हो जाते हैं। वह कितनी गंभीरता से अपने व्यवसाय को लेती हैं यह देखना बहुत अच्छा लगता है। उन्हें ऋण देते समय उनकी सच्चाई, समपर्ण और ईमानदारी पर बहुत विश्वास होता है। महिलाएं अमानत में खयानत नहीं करतीं। यहां तक कि आदिवासी और पिछÞडी जाति की महिलाएँ आज इतनी सजग हो गई हैं कि उन्हें पता है कि अपने हुनर के लिए उन्हें बैंकों से ऋण मिल सकता है और वह तब इसे लेकर अपना छोटा सा व्यवसाय प्रारंभ कर लेती हैं परंतु ऋण देने की किस्त नहीं भूलतीं। इनमें से अधिकांश फूड प्रोसेसिंग जैसे अचार, बड़ी, पापड़ बनाना अथवा इसी तरह की अन्य खाद्य सामग्री का व्यवसाय करना, वस्त्रों की सिलाई-कढ़ाई और अन्य हस्तकला व हस्तशिल्प की कारीगरी को छोटे स्तर पर व्यवसाय करती हैं, परंतु यह छोटा सा व्यापार ही उनका आत्मविश्वास बढ़ा देता है और उनकी आर्थिक स्थिति बदल देता है। कुछ समय पहले तक महिलाओं के व्यवसायी और उनके अपना व्यापार स्थापित करने की बात न तो परिवार वाले और न ही समाज कभी इसे स्वीकारता था। उनकी व्यापारिक और उस व्यापार चलाने की प्रबंधन बुद्धि के उन्हें योग्य नहीं समझा जाता था। उनके ऊपर तो यह ठप्पा लगा हुआ था कि वह तो न हिसाब-किताब कर सकती हैं और न ही लाभ-हानि की बात उनके दिमाग में कभी आ सकती हैं। यानी वह पूर्णता व्यवसायिक बुद्धि में शून्य हैं। हम इस बात को उन्हीं फिल्म निर्देशक प्रहलाद कक्कड़ की बात से पूरी करते हैं- हम इतिहास की उस दहलीज पर खड़े हैं, जहां महिलाएं सफल व्यवसायी के रूप में उभर रही हैं और पुरुष के अधिकार क्षेत्र के कामकाज में भागीदारी कर रही हैं। महिलाएं और वह भी व्यापारी-सुनने में ही दिलचस्प लग रहा है।

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