-हर्षवर्धन पांडे
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।
कैरिबियाई देश हैती मैथ्यू के कहर से परेशान है। मैथ्यू बीते 50 बरस का अब तक का सबसे ताकतवर समुद्री तूफान है, जिसने लोगों को यह बता दिया कि प्रकृति की मार के आगे इन्सान कितना बेबस है। इस तूफान से सबसे ज्यादा नुकसान हैती के ग्रामीण इलाकों में हुआ है, जिनका संपर्क लगभग कट चुका है। तूफान की वजह से जान गंवाने वालों की संख्या बढ़कर हजार पार हो गई है। तूफान की भयावहता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है अब तक कई लोग इस तूफान से अकाल मौत को प्राप्त हुए हैं तो बड़ी संख्या में पशु-पक्षी भी मारे गए हैं। हैती का जेरेमे शहर पूरी तरह तबाह हो चुका है तो वहीं सूद में 30,000 घर प्रभावित हुए हैं। पोर्ट-ओ-प्रिंस बहुत अधिक प्रभावित हुआ वहीं दक्षिणी हिस्से में बड़े पैमाने में तबाही हुई है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहा हैती मानो मैथ्यू की मार से ठहर-सा गया है। स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और दुकानें सबका नामोनिशान मिट चुका है। लोगों को खाने के लाले पड़े हैं। छोटे से इस कैरिबियाई देश की विभीषिका इतनी भीषण है कि पहली बार हैती में राष्ट्रपति के चुनाव स्थगित करने को मजबूर होना पड़ रहा है। अंदाजा नहीं लग पा रहा है मलबे में सड़क है या सड़कों में मलबा। इतिहास में पहला मौका है कि कुदरती तूफान ने पूरे कैरिबियाई शहर पर मानो आपातकाल लगा दिया है। े संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव और हैती के प्रमुख प्रतिनिधि मोराड वहबा ने इसे साल 2010 के भूकंप के बाद सबसे बड़ी आपदा बताया है। जनता आज दो जून की रोटी के लिए तरस रही है और लोग आसमान की तरफ ताक रहे हैं कि किसी तरह बरसात रुक जाए ताकि उन्हें खाने की रसद मिल सके। अपने लोगों के बीच फंसे लोगों का रो रोकर बुरा हाल है। जिधर दूर-दूर तक नजरें जाती हैं वहां पानी-पानी ही नजर आता है। बस राहत और बचाव कार्यों में कोई नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि ऐसे माहौल में आॅपरेशन हेलिकॉप्टर से ही चलाए जा सकते हैं, लेकिन यह भी तभी संभव है जब मौसम साफ हो।
हैती से पहले तूफान ने जमैका, क्यूबा, बहामा और डोमिनिक रिपब्लिकन में भी भारी तबाही मचाई थी, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान हैती में हुआ है, जहां हजारों लोग बेघर हो गए और जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। कैरेबियाई देश हैती में भारी तबाही मचाने के बाद चक्रवाती तूफान 'मैथ्यू' अमेरिका पहुंच गया। इसके चलते अमेरिका में 3,800 से ज्यादा उड़ानों को रद्द करने पर मजबूर होना पड़ा है। तूफान के कारण फ्लोरिडा में तेज हवाएं चल रही हैं और भारी बारिश हो रही है। यही हाल जार्जिया और साउथ कैरोलिना प्रांत का भी है जहां हवाओं ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। घरों में बिजली नहीं है तो पानी का भीषण संकट खड़ा हो गया है। ऐसा मौका पहली बार आया है जब फोर्ट लाउडर्डेल हॉलीवुड एयरपोर्ट को 2005 के बाद बंद किया गया है। फ्लोरिडा में आपातस्थिति घोषित कर दी गई है। छह लाख से ज्यादा घरों में लोग बिना बिजली के रह रहे हैं। तूफान के चलते 130 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से हवाएं चल रही हैं और तेज बारिश हो रही है। जार्जिया और साउथ कैरोलिना में भी तेज आंधी चल रही है। फ्लोरिडा में आपातस्थिति की घोषणा की गई है। सरकारें मुआवजे और पुनर्वास की व्यवस्था में लगी है तो वहीं चारों तरफ पानी पानी होने से राहत और बचाव कार्यों में गति नहीं आ पा रही है वही मुश्किल हालात में आपदा प्रबंधन भी सही तरीके से नहीं हो पा रहा। सड़कें पानी से लबालब भरी पड़ी हैं तो शहर का भी पानी से बुरा हाल है। बिजली नहीं है तो लोग खाने के लिए परेशान हैं। मोबाइल टावरों में पानी भर गया है जिससे लोग अपने रिश्तेदारों से सीधे कट गए हैं।
हमें यह भी मानना पड़ेगा विकास की चकाचौंध तले हमने पिछले कई बरसों से प्रकृति का जिस गलत तरीके से दोहन किया है आज हम उसी की मार झेलने पर मजबूर हैं। पिछले कुछ वर्षों से मौसम का मिजाज लगातार बदलता ही जा रहा है जिस कारण पूरी दुनिया में अप्रत्याशित परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं। यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है। ठंड का मौसम शुरू होने को है लेकिन कहीं बेमौसम फल और फूल उग आए हैं तो कहीं भीषण बरसात ने कहर बरपाया हुआ है। मौसम चक्र के बदलते रूप से दुनिया के कई देश इस समय प्रभावित हैं। सुनामी, कैटरीना, रीटा, नरगिस, हुदहुद और अब मैथ्यू आदि परिवर्तन की इस बयार को पिछले कुछ वर्षों से न केवल बखूबी बतला रहे हैं बल्कि गौमुख, ग्रीनलैंड, आयरलैंड और अंटार्कटिका में लगातार पिघल रहे ग्लेशियर भी ग्लोबल वॉर्निंग की आहट को करीब से महसूस भी कर रहे हैं। आज पूरे विश्व में वन लगातार सिकुड़ रहे हैं तो वहीं किसानों का भी इस दौर में खेतीबाड़ी से सीधा मोहभंग हो गया है। अधिकांश जगह पर जंगलों को काटकर जैव ईधन जैट्रोफा के उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है तो वहीं जंगलों की कमी से वन्य जीवों के आशियाने भी सिकुड़ रहे हैं। औद्योगीकरण की आंधी में कार्बन के कण वैश्विक स्तर पर तबाही का कारण बन रहे हैं तो इससे प्रकृति में एक बड़ा प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है। इन सबके मद्देनजर यह तो मानना ही पड़ेगा कि जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से हो रहा है और यह सब ग्लोबल वॉर्मिंग के कारक हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन को कम करने के लिए विकसित देशों को किसी भी तरह फौरी राहत दिलाने के लिए कुछ उपाय तो करने ही होंगे, नहीं तो दुनिया के सामने एक बड़ा भीषण संकट पैदा हो सकता है। अगर विकसित देश अपनी पुरानी जिद पर अड़े रहते हैं तो तापमान में भारी वृद्धि दर्ज होनी शुरू हो जाएगी। इस बढ़ते तापमान का शुरुआती असर हमें अभी से ही दिखाई देने लगा है। आज दुनिया में जो जलवायु परिवर्तन हुआ है उसमे बड़े देशों की हिस्सेदारी कुछ ज्यादा है।
जिस तकनीक के आसरे विकसित देशों ने ताकत हासिल की आज उसी के चलते दुनिया में संकट मंडरा रहा है। आज जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को हर देश भुगत रहा है। कई देशों के सामने खाद्यान्न का संकट खड़ा है वहीं सूखा, बाढ़ और अतिवृष्टि ने इस दौर में समूची ग्रामीण कृषि अर्थव्यवस्था वाले देशों का तो बंटाधार कर दिया है।
भीषण आपदाओं की पुनरावृति दुनिया में होनी तय है। अगर अभी भी हम नहीं चेते तो ऐसे हादसे बार बार होते रहेंगे, जिनमें हजारों लोग काल के गाल में समाते रहेगे और सरकारें मुआवजे बांटकर अपने हित साधते रहेंगी। अब समय आ गया है जब सरकारों को समझना होगा कि वह किस तरह का विकास चाहते हैं? ऐसा विकास जहां प्रकृति का जमकर दोहन किया जाए या फिर ऐसा जहां पर्यावरण की भी फिक्र करते हुए विकास की बयार बहाई जाए। इस मसले पर अब कोई नई लकीर हमें खींचनी ही होगी, क्योंकि मानव सभ्यता प्रकृति पर ही टिकी हुई है। अगर प्राकृतिक संसाधनों का यूं ही दोहन होता रहा तो मानव के सामने खुद बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। मैथ्यू इस दिशा में छिपा एक बड़ा संदेश है ।