-शशांक द्विवेदी
मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च)
अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बार फिर इतिहास रचते हुए इसरो ने पीएसएलवी सी-35 के जरिए दो अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक आठ उपग्रह स्थापित कर दिए। दो घंटे से अधिक के इस अभियान को पीएसएलवी का सबसे लंबा अभियान माना जा रहा है। यह पहली बार है, जब पीएसएलवी ने अपने पेलोड दो अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किए। इसरो के अनुसार पीएसएलवी सी-35 के साथ गए सभी आठ उपग्रहों का कुल वजन लगभग 675 किलोग्राम है, जिसमें अकेले स्कैटसैट-1 का वजन 371 किलोग्राम है। स्कैटसैट-1 को सफलतापूर्वक पोलर सन सिन्क्रोनस आॅर्बिट में प्रवेश कराया गया। अन्य सात उपग्रहों को लगभग दो घंटे बाद एक निचली कक्षा में प्रवेश कराया है। पोलर सन सिन्क्रोनस आॅर्बिट में उपग्रह हमेशा सूर्य की ओर उन्मुख रहता है। पीएसएलवी सी-35 की यह 37वीं और एक्सएल मोड में यह 15वीं उड़ान है, जिसकी लागत 120 करोड़ रुपए आई है।
महासागर और मौसम के अध्ययन के लिए तैयार किए गए स्कैटसैट-1 और सात अन्य उपग्रहों को लेकर पीएसएलवी सी-35 ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी थी। स्कैटसैट-1 से अलावा सात उपग्रहों में अमेरिका और कनाडा के उपग्रह भी शामिल हैं। इसरो का 44.4 मीटर लंबा पीएसएलवी रॉकेट दो भारतीय विश्वविद्यालयों के उपग्रह भी साथ लेकर गया था। इसके अलावा तीन उपग्रह अल्जीरिया के हैं और एक-एक उपग्रह अमेरिका और कनाडा का है। स्कैटसैट-1 एक प्रारंभिक उपग्रह है और इसे मौसम की भविष्यवाणी करने और चक्रवातों का पता लगाने के लिए है।
इसरो ने कहा कि यह स्कैटसैट-1 द्वारा ले जाए गए कू-बैंड स्कैट्रोमीटर पेलोड के लिए एक सतत अभियान है। कू-बैंड स्कैट्रोमीटर ने वर्ष 2009 में ओशनसैट-2 उपग्रह द्वारा ले जाए गए एक ऐसे ही पेलोड की क्षमताएं पहले से बढ़ा दी हैं। स्कैटसैट-1 के साथ जिन दो अकादमिक उपग्रहों को ले गया है, उनमें आईआईटी मुंबई का प्रथम और बैंगलुरु बीईएस विश्वविद्यालय एवं उसके संघ का पीआई सैट शामिल हैं।
प्रथम का उद्देश्य कुल इलेक्ट्रॉन संख्या का आकलन करना है, जबकि पीआई सैट अभियान रिमोट सेंसिंग अनुप्रयोगों के लिए नैनोसेटेलाइट के डिजाइन एवं विकास के लिए है। 'प्रथम' का वजन 10 किग्रा और बैंगलुरु यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स का बनाया पीआई सैट 5.25 किग्रा का है। पीएसएलवी अपने साथ जिन विदेशी उपग्रहों को ले गया है, उनमें अल्जीरिया के- अलसैट-1बी, अलसैट-2बी और अलसैट-1एन, अमेरिका का पाथफाइंडर-1 और कनाडा का एनएलएस-19 शामिल हैं।
जब अंतरिक्ष विज्ञान की शुरुआत हुई तो सोवियत संघ और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष दौड़ की शुरुआत हुई सोवियत संघ ने पहले उपग्रह स्पूतनिक का प्रक्षेपण करने में सफलता हासिल की, तो अमेरिका ने चांद पर आदमी पहले भेजकर उसका जवाब दिया, लेकिन भारत का मामला दूसरा था। लंदन स्थित अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉक्टर एंड्रयू कोएट्स के अनुसार भारत ने आजादी के 15 साल के अंदर ही अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के बाद लगातार प्रगति की और एकमात्र ऐसा प्रगतिशील देश बना जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विकसित देशों के बीच जा खड़ा हुआ। उनके अनुसार भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम परिपक्व लगता है और साथ ही उसका खास ध्यान देश की प्रगति पर है, बात चाहे संचार उपग्रहों की हो, मौसम उपग्रह की हो या रिमोट सेंसिंग की, भारत ने इन संचार उपग्रहों का उपयोग लोगों की भलाई के लिए किया है।
भारत द्वारा प्रक्षेपित उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर हम अब संचार, मौसम संबंधित जानकारी, शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में टेली मेडिसिन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि के क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल के स्रोतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर निगाह रख रहे हैं।
विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की अपेक्षा एक तिहाई लागत की वजह से इसरों में दुनियाभर में लोकप्रियता और सफलता के झंडे गाड़ रहा है। इसरो इनसेट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बना रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं, बल्कि ग्राम संसाधन केंद्र को उन्नत बनाया जा सके, लेकिन अब समय आ गया है, जब इसरो व्यावसायिक सफलता के साथ-साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ज्यादा ध्यान दे। इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी, क्योंकि जैसे-जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्वपूर्ण होता जाएगा। इस काम इसके लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा, जो फिलहाल नासा के मुकाबले काफी कम है। लेकिन एक बात तय है की यदि इसी प्रकार भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद,मंगल या अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे। इसरो के हालिया मिशन की सफलताएं देश की अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए मील का पत्थर है, जिससे भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा।
इसरो उपग्रह केंद्र ,बैंगलुरु के निदेशक प्रोफेसर यशपाल के मुताबिक दुनिया का हमारी स्पेस टेक्नॉलाजी पर भरोसा बढ़ा है, तभी अमेरिका सहित कई विकसित देश अपने सैटेलाइट की लॉचिंग भारत से करा रहे हैं। इसरो सैटेलाइट नैविगेशन कार्यक्रम के पूर्व निदेशक डॉ. एस पाल के अनुसार हम अंतरिक्ष विज्ञान, संचार तकनीक, परमाणु ऊर्जा और चिकित्सा के मामलों में न सिर्फ विकसित देशों को टक्कर दे रहे हैं, बल्कि कई मामलों में उनसे भी आगे निकल गए हैं।
अभी ज्यादा दिन नही हुए जब जून में इसरो ने भारत के अंतरिक्ष इतिहास में पहली बार एक साथ 20 सैटलाइट लॉन्च करके इसरों ने इतिहास रच दिया था। इसमें तीन स्वदेशी और 17 विदेशी सेटेलाइट शामिल थे। इसरो ने इससे पहले वर्ष 2008 में 10 उपग्रहों को पृथ्वी की विभिन्न कक्षाओं में एक साथ प्रक्षेपित किया था। इस बार आठ उपग्रहों को अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक पहुंचा का इसरो ने नया रिकॉर्ड बनाया है। कुल मिलाकर स्कैटसैट उपग्रह के सफल प्रक्षेपण से भारत को कई फायदे होंगे, जिसमें अब यह मौसम और समुद्र के अंदर होने वाली हर हलचल यानी साइक्लोन और तूफान पर नजर रखेगा और अहम जानकारी भेजेगा।