25 Apr 2024, 17:29:10 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

नवरात्र के इन दिनों यदि कन्याओं की बात नहीं की गई तो लगेगा जैसे देवी की आराधना पूर्ण नहीं हुई। उसमें कुछ कमी व अधूरापन रह गया है। आवश्यक तो नहीं कि अष्टमी वाले दिन ही कन्याओं की बात की जाए, बल्कि यह नौ दिन तो इसलिए ही हैं कि इन सभी दिनों बेटियों तथा कन्याओं की बात की जाए।

भारतीय समाज में कन्या का जन्म लेना और उसका निरंतर बड़े होना बहुत चुनौतिपूर्ण होता है उसे पग-पग पर तथा पल-पल अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना होता है। उसके लिए निरंतर बड़े होना कोई सरल राह नहीं होती। सबसे पहले तो बार-बार यह जताया जाता है कि उसका बेटी के रूप में जन्म लेना ही उसका सबसे बड़ा अपराध है। इसके लिए वही जिम्मेदारी की उसने बेटी के रूप में जन्म लिया है। इसलिए यदि उसे असुविधा तथा किसी प्रकार की कमी होती है केवल मात्र वही उसके लिए दोषी है और यहां तक कि अपराधी भी है। यदि उसके साथ किसी प्रकार का अप्रिय व्यवहार होता है तो इसके लिए वही कसूरवार है कि उसने बेटी के रूप में जन्म लिया है। इस प्रकृति प्रदत्त जन्म के लिए मानो वही अपराधिन है। यदि  उससे ईश्वर उसका भाग्य पूछता तो वह शायद ही इस भारतीय समाज में जन्म लेने की इच्छा जताती। उससे भी बढ़कर अन्याय तो उसे तब महसूस होता है कि उसे वह सब हक और अवसर नहीं मिल रहे जो कि उसी घर में उसके भाई को मिल रहे हैं। यदि वह इसके लिए कभी मुंह खोलती भी है तो उसे डपटकर चुप करवाया जाता है- यह वाक्य कहकर चुप कर। वह लड़का है, बात यहीं खत्म हो जाती है।

समाज में जब वह बाहर निकलती है तो इसके लिए भी उसे बीस तरह के निर्देश दिए जाते हैं और सावधनियां बरतने को कहा जाता है। सुरक्षा के लिए उसे कोई प्रकार की चेतावनियां दी जाती हैं और दुनियाभर की तमाम नसीहतें दी जाती हैं। पुरुष अपनी दुष्ट मानसिकता के कारण उसके साथ दुर्व्यवहार करें पर बंदिशें उस लड़की पर थोपी जाती हैं। क्या कभी ऐसा भी समय आएगा कि पुरुषों की इस मानसिकता को सुधारने के लिए सुधार गृह बनें। बेटियां (कन्याओं) की स्वतंत्रता, उनको दिए जाने वाले अधिकार तथा उनकी निर्भयता सब सीमित ही हैं। उन्हें पूरे नियमों व पारिवारिक व्यवस्थाओं के बंधनों के साथ ही रोज जीना पड़ता है। यदि जरा भी कुछ इधर-उधर किया तो उनके चरित्र को लेकर ही प्रश्न उठाए जाने लगते हैं।

बात यहीं तक नहीं रुकती। वही कन्या बड़ी हो  जाती है- बड़ी का अर्थ कि विवाह योग्य! उसके लिए माता-पिता वर की तलाश करते हैं। उसे अपना जीवनसाथी चुनने की छूट नहीं है। यदि उसने ऐसा कर लिया तो उसके समेत उस तथाकथित जीवनसाथी को मार डाला जाएगा। माता-पिता-भाई व चाचा, ताऊ का बस चले तो वह उसके टुकड़े-टुकड़े कर चील-कौओ को खिला दें। चलिए, माता-पिता की पसंद से शादी हो गई अब उसे अच्छी पत्नी व सर्वोत्तम मां बनकर निरंतर दिखाते रहना है। इससे पहले वह स्कूल में प्रथम आती रही व कॉलेज में बेस्ट छात्रा का अवॉर्ड जीतती आदि कुछ भी मायने नहीं रखता। कन्या पूजन के इन नौ दिनों में देवी दुर्गा का ध्यान करते हुए परिवार निरंतर प्रण लें कि वह अपनी बेटियों का स्वागत करेंगे। उन्हें निर्भय व साहसी होने का पाठ पढ़ाएंगे। वह उन्हें बेटों के समान अवसर देंगे। उन्हें आत्मविश्वासी व सुदृढ़ व्यक्तित्व वाला बनाएंगे। इन नवरात्र में नंगे पैर चलने तथा दाढ़ी न बनाने से मां प्रसन्न नहीं हो जाएंगी। उनकी प्रसन्नता तो इसमें निहित होगी जब उसकी अंश रूप कन्याओं का सम्मान होगा।

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