28 Mar 2024, 18:19:28 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

उस महिला ने कोर्ट में याचिका लगाई कि उसे पति ने गलत ढंग से तलाक दिया है। उसका तो कोई कसूर ही नहीं था इसलिए तलाक की बात को खारिज कर दिया जाए और वह वापिस अपने पति के साथ रहना चाहती है। न्यायालय ने कहा - अब ऐसा नहीं हो सकता। उसके पक्ष में निर्णय नहीं दिया जा सकता। न्यायालय ने इसका स्पष्ट कारण भी विस्तार से बताया। दरअसल वह महिला पिछले आठ सालों से पति से अलग रह रही थी। जब से उसका विवाह हुआ था उन दोनों में निरंतर विवाद ही होता था। विवाद कौन शुरू करता था और कैसे होता था इसके कारण बताना कठिन हैं। इस बीच दोनों के एक बेटा व बेटी भी हो गए पर बात फिर भी नहीं बनी। तब पत्नी ने अपने मायके वालों और संबंधियों को बुलाया और उनके साथ अपने मायके लौट गई। कुछ वर्ष बीते। वह पति पर दहेज प्रताड़ना के आरोप लगाती रही पर तलाक की याचिका नहीं लगाई। पति ने कुछ समय बाद तलाक की याचिका लगाई और उसे तलाक मिल भी गया। यह बताना भी जरूरी है कि वह महिला बच्चों को पति के पास अकेला छोड़ कर चली गई थी और बीच में उसने कभी उनकी खोज-खबर नहीं ली। अब इतने वर्षों बाद उसे पति और बच्चों की याद आई वह तलाक की स्थिति को खारिज करना चाहती थी। पर न्यायालय ने उसकी बात अस्वीकार कर दी। आजकल वैवाहिक संबंधों में कुछ विवाह होने पर महिलाएं तुरत-फुरत अपने मायके वालों के यहां लौटा जाने की तैयारी कर लेती हैं। ऐसा लगता है कि उनके वैवाहिक विवाद भी इसलिए बढ़ते हैं कि उन्हें अपने मायके वालों का असीम आसरा महसूस होता है। वह उनका बहुत भरोसा करती हैं। यह बात सही है कि यदि महिलाएं वास्तव में ससुराल में प्रताड़ित होती हैं और बेवजह सताई जाती हैं तो उन्हें मायके वालों का सहारा मिलना ही चाहिए। जब बहुओं के आत्महत्या करने के समाचार मिलते हैं तो प्राय: मायके वालों से भी पूछा जाता है कि जब वह अपनी त्रासदयी स्थिति बार-बार बता रही थी, तो उससे मिल कर या उसके साथ बैठ कर उसकी वास्तविक स्थिति को क्यों नहीं जाना और समझा गया? उसे मरने के लिए क्यों छोड़ दिया। हम  यह भी भली-भांति जानते हैं कि आजकल कोई माता-पिता तथा भाई-बंधु बेटी को विदा करते समय उसे गले लगाकर जार-जार रोते हुए यह नहीं कहते कि बेटी तुझे डोली में बैठा कर विदा कर रहे हैं और अब उस घर से तेरी अर्थी ही उठे। मतलब यह कि बीच के वर्षों में तुझ पर जो भी दुख का तथा समस्याओं के पहाड़ टूटें पर, हमारी ओर किसी सहायता के लिए मत आस लगाना। यह बात अब पुरानी लगती है। पर, यह भी सत्य है कि आजकल माता-पिता तथा मायके वाले बेटी के घर-परिवार में बेटी की छोटी व मामूली बात पर भी अन्यथा हस्तक्षेप कर बैठते हैं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि विवाद की स्थिति समझाइश देने के स्थान पर वह धमकी देने लगते हैं कि हम तो आज ही अपनी बेटी को वापिस ले जाएंगे हमारे यहां खाने की कोई कमी नहीं है। यह भी तो हो सकता है कि बेटी का स्वभाव व प्रकृति पहले से ही क्रोधी व जिद्दी हो। पर, हो यह रहा है कि बेटी के विवाह के बाद उसके सारे स्वभावगत दोष भुला कर ससुराल वालों और पति को ही कठघरे में खड़ा किया जाता है। महिलाओं के हित में बहुत कानून बने हैं और देखा जाए तो इनकी आवश्यकता भी थी। इस समाज ने सदियों तक महिलाओं की पीड़ा और दुखद स्थिति का भरपूर लाभ उठा कर उनको पीसा व रौंदा है। पर, यदि महिला हितैषी वातावरण तैयार हो रहा है तो महिलाएं अनावश्यक रूप से इसका दुरुपयोग न करें तो अच्छा होगा। एक स्वस्थ समाज की रचना में यह बहुत आवश्यक है कि महिला व पुरुष दोनों का नजरिया भी स्वस्थ हो। भूले-भटके संबंध बनाने याद आ गए तो इससे क्या लाभ होगा?

[email protected]
 

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »