25 Apr 2024, 15:23:53 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-जावेद अनीस
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने हर साल ढाई करोड़ नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन अभी तक ऐसा हो नहीं पाया है और नौकरियां बढ़ने के बजाय घट रही हैं। इसके पीछे का मुख्य कारण निर्यात क्षेत्र में लगातार आ रही कमी को बताया जा रहा है। निर्यात के क्षेत्र में  पिछले अगस्त में ही 0.3 फीसदी की गिरावट आई है।

जिन प्रमुख वस्तुओं के निर्यात में कमी आई है, उसमें पेट्रोलियम 14 फीसदी, चमड़ा 7.82 फीसदी, रसायन 5.0 फीसदी और इंजीनियरिंग 29 फीसदी शामिल हैं। इसी तरह से  सेवाओं का निर्यात भी इस साल जुलाई में 4.6 फीसदी घटकर 12.78 अरब डॉलर रह गया। इन सबका असर रोजगार पर हो रहा है। उद्योग मंडल एसोचैम और थॉट आर्बिट्रिजके एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 की दूसरी तिमाही में निर्यात में हुई गिरावट के कारण करीब 70,000 नौकरियां जा चुकी हैं। सबसे अधिक प्रभाव कपड़ा क्षेत्र पर पड़ा है।

निर्यात में गिरावट के करीब दो साल होने वाले हैं, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस उपाय नहीं निकाला जा सका है। 2015 में भी निर्यात के क्षेत्र में ज्यादातर समय गिरावट देखने को मिली है, 2016 में सरकार इसमें सुधार आने की उम्मीद जता रही थी लेकिन यह साल भी उम्मीद जताने में ही बीता जा रहा है। वित्त वर्ष 2015-16 के आर्थिक समीक्षा के अनुसार इस दौरान के पहले तीन तिमाही में निर्यात में करीब 18 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी जिसमें निर्माण क्षेत्र  की तुलना में सेवा का क्षेत्र अधिक प्रभावित हुआ था। आर्थिक समीक्षा में देश के निर्यात में हो रही गिरावट पर चिंता जताते हुए कहा गया था कि इस गिरावट के कारण कारोबार का वातावरण लगातार चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। 2015 में भी निर्यात क्षेत्र में गिरावट का प्रभाव रोजगार पर देखने को मिला था। भारतीय श्रम मंत्रालय द्वारा 2015 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार रोजगार में 43,000 नौकरियों की गिरावट देखने को मिली थी। इन 43,000 नौकरियों में से 26,000 नौकरियां निर्यात करने वाली कंपनियों से जुड़ी थीं।

भारत अपनी कृषि प्रधान देश की पहचान को पीछे छोड़ते हुए अपनी विकास की यात्रा में काफी आगे निकल चुका है। अब यह संभावना जताई जा रही है कि भारत 2030 तक अमेरिका व चीन के बाद विश्व तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। दुनियाभर में फैली मंदी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी ग्रोथ की लय को काफी हद तक बनाए हुए हैं, जिसे रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अंधों में एक आंख राजा का मिसाल दिया है। आज अगर निर्यात में इस गिरावट पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो लय टूट सकती है। उसके बाद संभालना आसान नहीं होगा।

सरकार में बैठे लोग देश के निर्यात में हो रहे इस गिरावट के पीछे वैश्विक मंदी और दुनियाभर में घटती उत्पाद कीमतों का होना बता रहे हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमन निर्यात में सुधार को वैश्विक मांग के सुधार से जोड़ रही हैं लेकिन निर्यात में हो रही गिरावट को मात्र दुनिया में चल रही मंदी से जोड़ देने का यह तर्क गले नहीं उतरता है। इस समस्या को मात्र वैश्विक मंदी के माथे भी नहीं मढ़ा जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से सरकार निर्यात में गिरावट के लिए इसी तर्क का सहारा ले रही है। अगर हम दूसरे देशों पर नजर डालें तो उन्होंने  इस चुनौती का मुकाबला भारत से बेहतर तरीके से किया है। इस दौरान चीन के निर्यात में महज 2 प्रतिशत की कमी आई है और दक्षिण अफ्रीका के निर्यात में 8 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।

स्पष्ट है निर्यात में हो रही गिरावट के पीछे सिर्फ वैश्विक मंदी और मांग ही नहीं बल्कि  सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार हैं। भारत सरकार निर्यात में हो रही कमी को ठीक तरीके से नियंत्रित करने में विफल रही है। निर्यात और मेक इन इंडिया कैंपेन को आगे बढ़ाने के लिए पिछले साल नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा की थी लेकिन अभी तक इसका भी कोई खास असर देखने को नहीं मिला है।

भारत के निर्यात क्षेत्र में हो रही गिरावट करीब दो साल पुरानी होने को है और आज इसका असर घटती हुई नौकरियों के रूप में साफ तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल यह गिरावट अब ढांचागत रूप लेती जा रही है और इसके पीछे का प्रमुख कारण भारत के सेवा निर्यात की सुस्ती और ढलान है। यह एक ऐसी केंद्रीय समस्या है जो भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरे संकट में डाल सकती है।  

हर साल 2.5 करोड़ नौकरी देने का मोदी  सरकार का एक प्रमुख वादा है।  इस सरकार के आने के बाद से इसके नीति निर्धारकों द्वारा लगातार यह चिंता जताई जा रही है कि घटते निर्यात से बेरोजगारी बढ़ सकती है और अब ठीक यही हो रही है। इस देश के लोगों विशेषकर युवाओं को मौजूदा सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। इसलिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को चाहिए कि वह समस्याओं का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ने के बजाय उनका गंभीरता से हल निकाले, घटते हुए निर्यात पर लगाम कसे और रोजगार बढ़ाने का अपना वादा पूरा करे।

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