-वीना नागपाल
पता नहीं इस शीर्षक से यह अंदाजा लगा होगा कि नहीं कि मानव तस्करी के अंतर्गत माता-पिता से उनके बच्चे गुपचुप तरीके से छीन लिए जाते हैं। हो सकता है कि इस बात का प्रत्यक्ष संबंध हमसे न हो और हमारे परिवारों में लाड़-प्यार व दुलार के साथ-साथ बच्चे इतने सुरक्षित ढंग से पाले जाते हों कि किसी मानव तस्कर की बुरी नजर उन पर कभी पड़ ही न सकती हो पर, कल्पना कीजिए उन परिवारों की जिनमें अपनी अति कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे पाते या वह किसी मानव तस्कर दलाल की मीठी-मीठी बातों में आकर अपने जिगर के टुकड़े को इस आशा में सौंप देते हैं कि इससे उसका जीवन तो सुधर ही जाएगा, वह अभाव में नहीं रहेगा और यहां तक कि उनकी गरीबी और विपन्नता भी सुधार देगा। पर, ऐसा होता नहीं है और माता-पिता तब जीवन भर अपने बच्चे व बच्ची का चेहरा देख नहीं पाते हैं।
यह तो हुई मानव तस्करी की एक वह सामान्य बात जो विश्व के कई देशों में मौजूद है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी इसके लिए बहुत चिंतित है कि माता-पिता की गोद से छीने गए मासूम बच्चों की तस्करी न हो और वह इसकी अमानवीय यातना से छुटकारा पा सकें। आजकल विश्व में एक और प्रकार की मानव तस्करी हो रही है। हम सब यह जानते हैं आईएस के खतरनाक मंसूबों को पूरा करने के लिए आज बच्चों तक को इसमें झोंका जा रहा है। इसका बहुत बड़ा जाल फैला हुआ है और दलाल आईएस के लिए मानव तस्करी बडे पैमाने पर कर रहे हैं और माता-पिता की स्नेह भरी बांहों के घेरे से बच्चों को छीन कर इस आग में झोंक रहे हैं। एक और तरह भी मानव तस्करी हो रही है। कुछ देशों में गृह युद्ध चल रहे हैं उनमें बच्चों की छीना-झपटी अधिक चल रही है। ऐसे ही एक गृह युद्ध में इराक में यजदी समुदाय अपना संघर्ष कर रहा है। इराक के इस यजदी समुदाय की एक युवती नादिया मुराद बस्सी ताहा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव तस्करी के विरुद्ध चलाए गए अभियान में अपना ब्रांड एंबेसेडर नियुक्त किया है। नादिया भी बचपन में आईएस की भर्ती के लिए मानव तस्करी का शिकार हुई थी। उसे कई जुल्मों और यातनाओं से गुजरना पड़ा, परंतु वह इससे बच निकली और आज उसे इतना बड़ा मुकाम हासिल हुआ है। वह मानव तस्करी के विरुद्ध और अपने यजदी लोगों को बचाने के अभियान में जुटी हुई है। उसका कहना है कि लोग यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि मानव तस्करी के शिकार इन बच्चों को कितनी तकलीफें और मुसीबतें सहना पड़ती हैं। यह उनकी उम्र के हिसाब से बहुत ज्यादा होती हैं और उनकी डिग्री भी भयानक होती है फिर भी उन बच्चों को इनसे गुजरना पड़ता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार किसी ऐसे व्यक्ति को इसके लिए नियुक्त किया गया है जो कि स्वयं इस कष्ट से गुजरा हो। नाडिया इस अभियान में बहुत समर्पित भाव से काम कर रही है और बहुत विस्तार से इस मानव तस्करी के अमानवीय पहलू का शिद्दत से जिक्र करती है। उसके इस समर्पण से जुटे होने के कारण विश्व के 100 प्रभावी व्यक्तियों में उसका नाम भी शामिल है। जिन बच्चों से किसी भी अमानवीय उद्देश्य के कारण माता-पिता की गोद छीनी गई है हमारी प्रार्थना है कि वह इस गोद को दोबारा पा लें। नाडिया का अभियान इतना सशक्त हो कि विश्वभर में उसका प्रभावी परिणाम निकले।