19 Apr 2024, 10:22:40 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

यह कैसी बात है कि युद्ध मानसिक भी होता है। इसमें शरीर मौजूद नहीं होता पर, मन युद्ध करते-करते स्वयं को थका हुआ और क्लांत महसूस करता है। परिणाम स्वरूप शरीर पर धीरे-धीरे प्रभाव पड़ता है और जब शरीर व मन दोनों ही थककर चूर हो जाते हैं और सामने मंजिल नहीं दिखती तो आत्महत्या करने का दृढ़ निश्चय बनाकर आत्महत्या कर ली जाती है।

इस सारे दर्शन के केंद्र में वह युवा है जो अपना भविष्य बनाने के लिए अपने घर-परिवार से दूर कोचिंग संस्थानों में आकर बहुत श्रम से तैयारी करते हैं। इस तैयारी में अच्छे-भले मेहनती छात्र भी परेशान हो उठते हैं और घोर निराशा के किसी तीव्र क्षण में आत्महत्या कर लेते हैं। अभी पिछले दिनों फिर खबर जानने को मिली की एक विशेष नगर के एक कोचिंग स्थान में अध्यनरत एक युवा छात्र ने आत्महत्या कर ली। वह केवल उस तैयारी से थका हुआ नहीं होगा बल्कि उसकी अन्य आवश्यकताएं भी होंगी जो पूरी नहीं हो रही होंगी और उसने आत्महत्या कर ली होगी। पहली और मुख्य बात यही है कि एक किशोर और युवा वय: सांधि के समय से गुजरने वाला कितने ही झंझावतों से गुजर रहा होता है। उसके मन में कई भय और संवेगों से उत्पन्न असुरक्षा की भावना जोर मार रही होती है, परंतु उनके पास अपने प्रियजन मौजूद नहीं होते। न मम्मी और न ही पापा, यहां तक कि भाई-बहन भी नहीं होते कि वह अपने तनाव और दबाव को उनके साथ बांट सकें। क्या परिवारों का वह माहौल आपको याद है जब अपनी किसी मांग या मानसिक बोझ को बहन व भाई के साथ बांटकर उन्हें मम्मी-पापा तक पहुंचाने के लिए दूत बनाना पड़ता था। यह दूत इतने सशक्त तरीके से बात की प्रस्तुति करते रहे हंै कि उनके सामने किसी देश के राजदूत और राजनयिक भी शर्मा जाएं। पर एक अपरिचित शहर में अजनबियों के बीच इस मानसिक बोझ को कैसे शेयर करें? क्या वह टूट नहीं जाएंगे। जरा स्वयं को इस माहौल में ढालकर देखें, बात समझ में आ जाएगी।

दूसरी सबसे बड़ी समस्या इन छात्रों के आहार को लेकर होती है। कहां तो वह घर में अपनी पसंद व स्वाद का खाना खाते हैं तो कहां उन्हें बाहर का खाना मजबूर होकर खाना पड़ता है। हम सब जानते हैं कि बाहर का बना हुआ खाना खाते हुए पेट भले ही भर जाता है, परंतु तृप्ति नहीं होती। यही तृप्ति शारीरिक रूप से ऊर्जा बनकर कुछ करने का उत्साह बना देती है। इससे शरीर पुष्ट होकर कार्य करने के लिए शक्ति प्राप्त कर लेता। यह कोचिंग संस्थान के छात्र दिन-रात अध्ययन में तो डूबे रहते हैं पर वहां उनके साथ मां मौजूद नहीं होती जो उन्हें समय पर दूध गरम करके मनुहार से पिलाए या रातभर उनके जागने पर उन्हें चाय व काफी बनाकर पिला दे।

प्राय: यह अध्ययन रत छात्र इस प्रकार शारीरिक रूप से अक्षम होने लगते हैं और थकान से भरकर मानसिक रूप से भी स्वयं को बहुत मानसिक दबाव में आ जाते हैं और तब उन्हें जीवन का अंत करने के विचार आने लगते हैं। जब कोचिंग संस्थान की महानगरी में मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने मिलकर छात्रों से बात कर जांच पड़ताल की तो पता चला कि इनमें से अधिकांश घर से दूर रहकर और बाहर का खाना खाकर अतिसार तथा पेट के रोगों के शिकार हो जाते हैं। कभी इन्हें बुखार जकड़ लेता है तो कभी खासी बीमारी की अवस्था में जब यह अपना कोर्स पूरा नहीं कर पाते तो और तनाव में आ जाते हैं। इसका समाधान यही है कि माता-पिता इन्हें अपने ही पास रखकर तथा उस शहर में जैसी भी कोचिंग मिल रही है- करवाएं यदि उनका चमकता भविष्य बनना होगा तो यहां पढ़कर भी बन जाएगा। कम से कम उनका जीवन तो बचा रहेगा।

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