19 Apr 2024, 15:07:27 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-सुशील कुमार सिंह
निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन
आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन

ब्रिक्स देशों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद को लेकर जो कहा वह सौ टका सही है। उन्होंने कहा कि आतंक पर सख्ती से रोक लगाने की आवश्यकता है। जाहिर है कि ब्रिक्स नेताओं के साथ आतंकवाद पर पाकिस्तान को बेनकाब करने का जिम्मा मोदी का ही था जिसे बाखूबी निभाया भी। उनका कहना है कि ब्रिक्स देश आतंकवाद के समर्थक और उसे पालने-पोसने वाले देशों को अलग-थलग करने के लिए एकजुट होकर कार्रवाई करें। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रकार के वक्तव्य पहले भी कई बार देखे गए हैं परंतु विश्व समुदाय आतंक पर रोक लगाने के मामले में न तो उतना प्रतिबद्ध दिखाई दिया और न ही इस मामले में लिया गया संकल्प मजबूत दिखाई देता है।

दक्षिण एशिया या किसी अन्य क्षेत्र में आतंकियों के पास न तो बैंक हैं और न ही हथियारों का कारखाना। इससे साफ है कि कोई न कोई उन्हें पैसा और हथियार दे रहा है। मोदी के इस प्रकार के वक्तव्य से संकेत पाक जैसे देशों की ओर ही जाता है। ब्रिक्स की अवधारणा को एक समुच्च रूप देने में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका को देखा जा सकता है। भारत इस संगठन का अध्यक्ष होने के चलते आगामी 15-16 अक्टूबर को होने वाले 8वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा। वैसे मोदी ने बिना नाम लिए आतंक को लेकर कार्रवाई करने की जो बात कही है उससे भी यह स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक मंच पर भारत बिना आतंकवाद की चर्चा किए चैन से तो नहीं बैठने वाला साथ ही पाकिस्तान जैसे देश जब तक आतंक की पाठशालाओं पर लगाम नहीं लगाएंगे, तब तक वे आड़े हाथ लिए जाते रहेंगे। जाहिर है कि वर्तमान में आतंकवाद वैश्विक फलक पर हिंसा, उत्पात तथा अस्थिरता का मुख्य कारण बना हुआ है साथ ही किसी भी देश और समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा भी। ऐसे में यह चिंता अकेले भारत की ही नहीं हो सकती।

बीते रविवार को चीन के होंगझोऊ में जी-20 का 11वां शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। इस शिखर सम्मेलन में कई नई समावेशी और वैचारिक प्रभावशीलता का परिदृश्य भी उभरता दिखाई देता है। नवंबर, 2008 से वाशिंगटन डीसी से प्रारम्भ इस मंच की यात्रा में कई समसामायिक आयाम भी जुडेÞ हैं। असल में जी-20 शिखर सम्मेलन वैसे तो वैश्विक-आर्थिक समस्याओं पर विमर्र्श करने का एक साझा मंच है परंतु वर्तमान में अब यह देशों के बीच समरसता और आर्थिक उदारता का भाव भी समेटे हुए है। प्रधानमंत्री मोदी ने जी-20 सम्मेलन में आर्थिक नरमी से निपटने के लिए 10 खास बातें बताते हुए कहा कि गूढ़ बातचीत करना ही काफी नहीं है, बल्कि जी-20 के सदस्य देशों की ओर से सम्मिलित, समन्वित और लक्षित कार्रवाई करने की भी जरूरत है। मोदी जताना चाहते हैं कि जी-20 दुनिया में जिस दृष्टि से देखा जाता है उस कसौटी पर उसे शब्दश: खरा उतरना चाहिए।  चर्चा-परिचर्चा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य चाहे जैसा हो पर नतीजे तो जी-20 के भी बेहतर नहीं रहे हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री मोदी ने नतीजे वाले एजेंडे की जरूरत बताई। मोदी का यह कहना कि हम ऐसे समय में मिल रहे हैं, जब दुनिया जटिल राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही है। इससे भी साफ है कि वे हालिया वैश्विक विकास की अवधारणा और तत्काल में मचे उथल-पुथल से संतुष्ट नहीं है, तभी तो उन्होंने वित्तीय प्रणाली में भी सुधार की जरूरत बताई। इतना ही नहीं घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन, बुनियादी ढांचे के विकास के लिए निवेश बढ़ाने से लेकर मानव पूंजी का सृजन करने जैसों पर मोदी का जोर था। मानचित्र पर दो सौ से अधिक देशों की जमावट देखी जा सकती है, जिसमें सभी एक जैसे सम्पन्न नहीं हैं। आज भी एशिया, मध्य अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका के कई देश बुनियादी विकास के लिए तरस रहे हैं और शेष दुनिया मालामाल तो है परंतु आतंक के अंतरराष्ट्रीय स्वरूप और जलवायु परिवर्तन की चिंताओं से वे भी मुक्त नहीं हैं। भारत, अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड तथा आॅस्ट्रेलिया समेत कई देश आतंक की जद में फंसे हैं, साथ ही जलवायु परिवर्तन की चिंता में पूरा विश्व घुला जा रहा है। भले ही आर्थिक उच्चस्थता कोई कितनी ही कायम कर ले और जीवन में तमाम सहूलियतों को स्थान दे दे पर बिना इन समस्याओं से निपटे सजग विश्व का निर्माण संभव नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी का यह तीसरा जी-20 सम्मेलन है। जब उन्होंने पहली बार नौवें शिखर सम्मेलन में आॅस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में शामिल हुए थे तब उन्होंने काले धन और आतंकवाद को लेकर अतिरिक्त संवेदनशीलता दिखाई थी, जिसमें सफल भी रहे। जी-20 का शिखर सम्मेलन नवंबर, 2015 में तुर्की में हुआ तब भी मोदी ने आतंकवाद से मुकाबला जी-20 की बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए कहा था। उन्होंने यह भी कहा था कि हमारी बैठक आतंकवाद के खौफनाक साए में हो रही है। इसके अलावा उन्होंने जलवायु परिवर्तन से मुकाबले के लिए सात सूत्रीय एजेंडे का प्रस्ताव किया पर आतंकी गतिविधियां बेलगाम जारी हैं बल्कि कहा जाए तो तुलनात्मक बढ़ी भी हैं, जबकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कार्बन क्रेडिट से ग्रीन क्रेडिट की ओर जाने की जरूरत से लेकर ईंधन की खपत घटाने तक का विचार अभी भी खटाई में है। मुश्किल यह भी है कि जो परिवर्तन कर सकते हैं उनमें भी एकाकीपन की कमी है। शायद यही कारण है कि बड़े मंच और बड़े सम्मेलन की थ्योरी आती-जाती रहती है पर समस्याएं ठहरी रहती हैं। यदि इसकी भी पड़ताल की जाए कि इस मामले में सर्वाधिक चिंतिंत कौन है तो बेशक भारत ही आगे दिखाई देगा।
पड़ताल भी यह बताती है कि दुनिया की 43 फीसदी आबादी ब्रिक्स के पांच देशों में रहती है जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं हैं। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इनका 37 फीसदी हिस्सा है जबकि वैश्विक कारोबार में हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है। इस आंकड़े से बाहर निकलकर देखा जाए तो जी-20 के शामिल सदस्यों का वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद 85 फीसदी मिलता है। साफ है कि जी-20 और ब्रिक्स जैसे देशों की वैश्विक फलक पर बड़ी अहमियत है और यहां से निकले नतीजे प्रभावशाली भी होते हैं पर धरातल पर कितने साबित होंगे अभी कहना कठिन है। जी-20 के इसी सम्मेलन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मोदी की मुलाकात हुई। बताते चलें कि यहां पहुंचने से पहले मोदी वियतनाम गए थे, जहां दोनों देशों के बीच 12 अहम समझौते भी हुए हैं। 15 वर्ष बाद किसी प्रधानमंत्री का वियतनाम के करीब होना चीन पर कूटनीतिक दबाव के काम भी आ रहा है।

गौरतलब है कि दक्षिण चीन सागर के विवादित क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि हाल ही में भारत, अमेरिका और जापान मिलकर यहां पर सैन्य अभ्यास के जरिए उसे घेरने की कोशिश कर चुके हैं। यह बात दुरुस्त है कि मोदी वैश्विक मंचों पर जो मशविरा देते हैं उसे बाकी देशों को स्वीकार करने में शायद ही कोई आपत्ति हुई हो। सम्मेलन में शिरकत कर रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक बार फिर कर सुधारों को लेकर मोदी की सराहना की है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शरीफ की रणनीति का जवाब और पाक को छोड़कर पड़ोसी देशों को ब्रिक्स सम्मेलन में न्यौता देकर मोदी ने आतंक फैलाने वाले देश को अलग-थलग करने का इरादा जता दिया है। अब इस पर चलने की बारी शेष विश्व की है।

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