25 Apr 2024, 10:20:21 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

ऐसा कई बार लगता है कि शायद आजकल गुरु के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव शेष ही नहीं रहा। व्यवसाय के रूप में जब शिक्षा स्थापित हो रही है, तब यह असंभव सोच है कि शिक्षा देने वाले गुरुओं के प्रति आदर की भावनाएं उत्पन्न हों। जब फीस की बहुत बड़ी राशि देकर शिक्षा प्राप्त की जाए, तब शिक्षक के प्रति भी यही विचार उठता है कि वह तो एक कर्मी है जो वेतन लेकर अपना कार्य पूरा करता है और यहीं उसके कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है, तब यह कैसे संभव है कि उसके प्रति सम्मान की भावनाएं जागे?

इन प्रश्नों को करने से पहले यह विचार मन में अवश्य ले आना चाहिए कि आजकल शिक्षक व अध्यापक बनना उस कार्य में शामिल नहीं रह गया है कि कोई अन्य व्यवसाय न मिला तो शिक्षक बन गए। आजकल बकायदा शिक्षक बनने का प्रशिक्षण लेना होता है। यहां तक कि छोटे-नन्हें बच्चों को पढ़ाने की भी मॉन्टिसेरी ट्रेनिंग होती है और ऊंची व स्थापित कक्षाओं में तो पढ़ाने के लिए बीएड और एमएड तक की डिग्री लेना आवश्यक हो गया है। जो व्यक्ति इन डिग्रियों को लेकर अध्यापन के क्षेत्र में उतरेगा या उसे अपनाएगा उसे इतनी तो प्रशिक्षण मिल ही चुका होगा कि उसे विद्यार्थियों से किस प्रकार व्यवहार करना है तथा उन्हें किस प्रकार से शिक्षा देना है। इन डिग्रियों को प्राप्त करने वाले इतना तो सुनिश्चित कर चुके होते हैं कि उन्हें केवल अध्यापन का कार्य करना है और भविष्य में शिक्षक ही बनना है। जब शिक्षा एक व्यवसाय बन चुका है तो इस व्यवसाय में केवल वहीं टिके रह सकते हैं, जो पूरी कुशलता व प्रवीणता के साथ इस कार्य को संपन्न करें, नहीं तो अन्य व्यवसायों की भांति वे भी इस व्यवसाय से बाहर कर दिए जाएंगे। शिक्षा के निजी क्षेत्र में जाने से अब शिक्षकों को अपना बेहतर से बेहतर करके दिखना होता है। यह शिक्षक गुरु ही नहीं बल्कि महागुरु हो गए हैं। अपने विषय की पूर्ण पारंगत होने के साथ वह वैश्विक स्तर पर होने वाले क्रियाकलापों की जानकारी भी रखते हैं और उसे अपने ही तरीके से छात्रों के साथ शेयर भी करते हैं। आज मिडिल स्कूल के किसी छात्र या छात्रा से बात करें तो लगता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले किसी डिग्रीधारी से बात कर रहे हैं। उनके अपने विषयों के साथ-साथ अन्य विषयों की इतनी जानकारी होती है कि आश्चर्य चकित होना पड़ता है। इसका कारण केवल छात्र स्वयं ही नहीं हैं, बल्कि उनके वे टीचर भी हैं, जो उन्हें नई-नई जानकारियों का पता बताते रहते हैं और उनसे उनका भरपूर परिचय करवाते हैं। आज का शिक्षक पूरी तैयारी से अपनी क्लास में जाता है और कोशिश करता है कि वह अपने विद्यार्थियों से पूरा सम्मान व आदर पा सकें, इसलिए ही आज विद्यार्थियों की बहुत बड़ी संख्या अपनी शिक्षा पूरी होने पर जब बाहर आती है और किसी क्षेत्र में प्रवेश करती है तो अपने साथ अपने पढ़ने वाले सर व मैडम की छाप निकाल कर सामने आती है, बल्कि इस छाप को अपने साथ कैरी करती है। इनको भुला देने या इन्हें कम आंक कर इनसे दूर होने की बात अब छात्र सोचते भी नहीं है। उच्च शिक्षा जैसे आईआईटी और आईआईएम में पढ़ने वाले छात्र अपने गुरुओं की विद्वता और उनके ज्ञान से प्रभावित रहते हैं। यहां तक भी होता है कि स्कूली जीवन और उच्च शिक्षा प्राप्त करने के दौरान अध्यापन करवाने वाले सर और मैडम से निरंतर संपर्क में रहते हैं। उनके मन में उनकी वंदना के भाव सदा के लिए भरे हुए हैं। क्या यह गुरु वंदना का युग नहीं है।

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