-सुशील कुमार सिंह
निदेशक, रिसर्च फाउंडेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
अपनी चौथी भारत यात्रा पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी का मानना है कि भारत बदल गया है। यह सुनने में निहायत सुखद है, पर पड़ताल का विषय है कि यहां कहां और कितना बदलाव हुआ है। पहली बार 1990 में भारत यात्रा पर आए केरी ने तब से अब में पाया है कि भारत पहले की तुलना में बिलकुल बदल गया है। भारत के दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री ने सुषमा स्वराज की भी जमकर तारीफ की। कहा कि इन्हें भारत और यहां के लोगों की पैरोकारी करने में महारत हासिल है। इसके अलावा उनका यह भी मानना है कि भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती पर भारतीय विदेश मंत्री हमेशा अपने विश्वास पर कायम रही हैं। ये तमाम बातें उस समय उभरी जब जॉन केरी और सुषमा स्वराज संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर रहे थे। इस दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री की फर्स्ट नेम थ्योरी भी दिखाई दी। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस के समय कई बार भारतीय विदेश मंत्री को सुषमा कहकर पुकारा जो इस वाकये की ओर ध्यान खींचता है, जब 2015 के गणतंत्र दिवस पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत यात्रा पर थे, तब ऐसे ही एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को बराक कहकर संबोधित किया था।
देखा जाए तो मोदी शासनकाल को लगभग ढाई वर्ष हो गया है। 26 मई 2014 से प्रधानमंत्री की यात्रा शुरू करने वाले मोदी सितंबर 2014 में सप्ताहभर की यात्रा पर नवरात्र के उपवास के दिनों में पहली बार अमेरिका के दौरे पर थे, तब इस बात का अंदाजा नहीं था कि अमेरिका भी इतना बदल गया है कि भारत से संबंध को लेकर बेहतरीन नतीजे के इंतजार में है। इसे मोदी कूटनीति और उनकी रणनीति को वजह मानी जाती है। इसमें भी कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने वैदेशिक नीति को लेकर जो मैराथन दौड़ लगाई, वह शायद पहले कभी हुआ हो पर एक सच्चाई यह भी है कि दूसरी पारी खेल रहे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा भी वैदेशिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए काफी उदार और भारत सान्निध्य की ओर झुके थे। जाहिर है ऐसे में द्विपक्षीय संबंध का परवान चढ़ना स्वाभाविक था।
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने भारत से अपनी रवानगी को दो दिन के लिए टाल दी। ऐसा करने के पीछे इसी सप्ताह के अंत में चीन में होने वाली जी-20 की बैठक है। असल में इस बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को शामिल होना है और जॉन केरी को भी। ऐसे में उनके कार्यक्रम में यह बदलाव संभव हुआ है। ऐसा देखा गया है कि जब भी देश में अमेरिका का कोई भी राष्ट्राध्यक्ष या मंत्री होता है तो आतंकवाद पर जिक्र जरूर करता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि पड़ोसी पाकिस्तान को भारत की जमीन से कही गई बात शायद अधिक असरदार लगती है। जॉन केरी ने भारत और अफगानिस्तान में अशांति के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान में जमे आतंकी गुट को बताया। अमेरिका के इस रुख से आतंकी गुटों में बौखलाहट तो है ही साथ ही पाकिस्तान की भी परेशानी थोड़ी बढ़ती हुई दिखाई देती है। कश्मीर के नाम पर आतंक का खेल नहीं चलेगा, जैसे संदर्भों की पड़ताल की जाए तो साफ है कि पाकिस्तान की पूरी ताकत घाटी को उलझाने में लगी रहती है, जबकि सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुद्दे की आड़ में अपनी धरती पर पल रहे आतंक से ध्यान हटाने की उसकी कोशिश सफल नहीं होगी। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर हर तरह के हथकंडे अपनाए हैं और उसकी यह इच्छा रही है कि सीमा के भीतर सक्रिय आतंकवादी गुटों को कश्मीर में आंदोलन के नाम पर जायज ठहराए परंतु ऐन मौके पर अमेरिका ने भारत के इस तर्क को महत्व दे दिया है कि आतंक का समर्थन किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता। कहा तो यह भी जा रहा है कि अमेरिका ने पठानकोट हमले से जुड़े मामले को स्वयं खंगाला है और उसे पता है कि हमले में पाकिस्तान ही है। बावजूद इसके कथन से बात आगे क्यों नहीं बढ़ती यह बात समझ से परे है।
इन दिनों देश के कई राज्य जलमग्न और बाढ़ की चपेट में भी है। मानसूनी बारिश से दिल्ली भी बेअसर नहीं है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के बीच हुई बैठक के दौरान यह चर्चा का विषय बन गई। गौरतलब है कि भारी बारिश के चलते जॉन केरी का काफिला दो घंटे तक बारिश में फंसा रहा। जाहिर है इस बदलाव को भी केरी ने महसूस किया होगा। इसी दिन उन्हें आईआईटी दिल्ली के छात्रों को संबोधित करना था। हल्के-फुल्के अंदाज में केरी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आप सभी लोग आज यहां पहुंचने के लिए अवॉर्ड के हकदार हैं। मैं नहीं जानता कि आप यहां नाव से आए हैं या पानी पर चलने वाले किसी वाहन से। केरी ने भारत के कम्प्यूटर साइंस के छात्रों को जिस तर्ज पर मेधावी बताया है और जिस प्रकार यहां के कॉलेजों द्वारा नहीं लिए जाने के बाद उन्हें एमआईटी सहर्ष स्वीकार करता है का वक्तव्य दिया, उससे भी साफ है कि भारत के बदलाव को लेकर उनकी सोच गंभीर है। देखा जाए तो भारतीय छात्र आज भी अध्ययन और रोजगार दोनों में अमेरिका को प्राथमिकता देते हैं। पहले भी अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा यह कहा जा चुका है कि भारतीयों की गणित पर पकड़ अमेरिकियों की तुलना में बेहतर होती है। फिलहाल दशकों से अमेरिका के साथ भारत का शैक्षणिक रिश्ता भी बहुत मजबूत रहा है। पिछले कुछ सालों से दोनों देशों के बीच व्यापार भी दोगुना हुआ है। इतना ही नहीं भारत से सबसे ज्यादा निर्यात अमेरिका में ही होता है। ये तमाम संदर्भ दोनों देशों के बीच दूरियां घटाने के तौर पर भी जाने-समझे जा सकते हैं। केरी का यह कहना कि हम दोनों ने नेपाल में भूकंप पीड़ितों की मदद की, यमन में हिंसा में फंसे लोगों को निकाला और अफ्रीका में शांति मिशन में लगे लोगों को ट्रेनिंग दी। इससे भी द्विपक्षीय संबंधों को नई आंच मिलती है। इतना ही नहीं अभी हाल ही में दक्षिण चीन सागर में अमेरिका, भारत और जापान मिलकर जो समुद्री अभ्यास किया वह भी संबंधों के लिहाज से भारत का बदलता परिप्रेक्ष्य भी है और चीन को संतुलित करने का परिमाप भी।
फिलहाल भारत के प्रति बदलाव वाले दृष्टिकोण पर कायम रहते हुए केरी ने पड़ोसी पाकिस्तान और चीन को कुछ हद तक संतुलित करने का भी काम किया है। अफगानिस्तान पर अपना प्रभाव जमा रहे पाकिस्तान को केरी ने यह कहकर एक और झटका दिया कि सितंबर में संयुक्त राष्ट्र की बैठक के बाद भारत और अफगानिस्तान के साथ अमेरिका त्रिपक्षीय वार्ता करेगा जबकि आक्रामक चीन को उन्होंने संदेश दिया कि दक्षिण चीन सागर विवाद का सैन्य संघर्ष से हल नहीं निकल सकता। केरी ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका विवाद को और भड़काना नहीं चाहता बल्कि उसका कूटनीतिक हल निकालने का पक्षधर है। ऐसा देखा गया है कि वैश्विक फलक पर जब भी कूटनीति का प्रवाह होता है और उसमें अमेरिका गति देने की कोशिश करता है तो कहीं उथल-पुथल तो कहीं संतुलन का विकास हो जाता है। अमेरिका द्वारा भारत के साथ अपनाई जा रही नीति इसलिए भी अधिक प्रभावशाली कही जाएगी, क्योंकि व्यापार, विज्ञान, विचार के अलावा एमटीसीआर की सदस्यता से लेकर एनएसजी तक की कोशिश में वह साथ है। संभावना है कि बदल रहे भारत के साथ अमेरिका ऐसे ही रुख पर आगे भी कायम रहेगा।