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Gagar Men Sagar

प्रसन्नता व आनंद से भरी लड़कियां

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 31 2016 2:57PM | Updated Date: Aug 31 2016 2:57PM
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-वीना नागपाल

वह दोनों लड़कियां परिवार सहित एक अंग्रेजी टीवी सीरियल देख रही थीं। वह सीरियल हास्य की स्थितियों से भरा हुआ था। शायद आपके यहां भी किशोरवय लड़के- लड़कियों तथा युवक-युवतियों ने उस अंग्रेजी सीरियल को देखा हो। उस सीरियल का नाम है -‘‘फ्रेंड्स!’’ उसकी पृष्ठभूमि बताने की आवश्यकता नहीं है , पर उसमें हास्य की सिच्युएशंस बहुत हैं। जब वह दोनों लड़कियां सीरियल देख रही थीं तो उनमें से एक लड़की जो उस परिवार में अतिथि थी एक हास्य से भरी स्थिति पर खिलखिला कर इतने जोर से हंसी कि पास बैठी बुजुर्ग महिला एकाएक चौंक गई और उसकी निगाह बोसाख्ता उस लड़की पड़ कर टिक गर्इं। लड़की ने तुरंत कहा - सॉरी आंटी।

पर इसमें सॉरी की क्या बात थी? क्या लड़कियों को खुलकर हंसना या ठहाके लगाना मना है? क्या यह उनके लिए अनुचित व असामान्य व्यवहार है। क्या उनसे यही अपेक्षा की जाती है कि वह केवल दबी-घुटी हंसी की ही क्रिया करें पर, वह प्रसन्नता व आनंद से भरकर ऐसे न हंसें कि उनकी चीख ही निकल जाए। यदि इस पर कोई पाबंदी लगाई जाती है तो यह बहुत गलत बात है। इस बुजुर्ग महिला को अपना समय याद आया कि उन्हें किस प्रकार अनुशासित रखा जाता है और उनकी किसी सहेली या सहेलियों के आने पर किसी भी प्रसन्नता व आनंद के विषय को लेकर वह सब कभी खुलकर  हंसी ही नहीं। आज उन लड़कियों की उन्मुक्त हंसी सुनकर क्या उन्हें अच्छा नहीं लग रहा? इसी प्रश्न  का उत्तर देते हुए वह अपने स्थान से उठीं और उस लड़की की पीठ थपथपाते हुए बोलीं - बेटा तुम इसी तरह हंसो। हमेशा खिलखिला कर और मुक्त आवाज में...।

पिछले दिनों ब्राजील के रियो में आयोजित ओलिंपिक गेम्स के अंतर्गत हम सबने टीवी पर भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पीवी सिंधु का बैडमिंटन का मैच देखा। उनके अपोजिट स्पेन की कैरोलिना थीं दोनों युवतियां पूरे जोश व अपनी खेल की स्किल का प्रदर्शन कर रही थीं। कैरोलिना जब अच्छा शॉट खेलतीं तब भी जोर से खुशी व आनंद से भरकर चिल्लाती थीं और जब उनसे कोई गलती हो जाती तब भी उनकी चीख निकल जाती थी। उनके देश व समाज में लड़कियों के खुलकर हंसने व अपना आनंद प्रकट करने पर चीख निकाले जाने पर कोई टोका-टोकी नहीं होती। खेल का मैदान हो या आनंद व प्रसन्नता का कोई भी क्षण लड़कियां खुलकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करती हैं। दरअसल आनंद का कोई भी पल यदि आता है तब मन में उसे प्रकट करने का तीव्र आवेग उठता ही है। इसमें यदि बिना किसी झिझक या हिचकिचाहट के अपनी प्रसन्नता हंसकर तथा ठहाके लगा कर प्रकट की जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है? अब भी महिला-पुरुष की समानता की बात करते हुए भी कुछ व्यवहार केवल पुरुषों के लिए उचित और वही व्यवहार महिलाओं के लिए अनुचित माने-जाने को सीमाबद्ध करने के नियम व कायदों का पालन किया जाता है। घर-परिवारों में अभी भी लड़कियों की उन्मुक्त हंसी की आवाजें सुनाई नहीं देती हैं, जबकि पुरुष व घर के बेटे अपने मित्रों के साथ हंसी के फव्वारे छोड़ते हुए प्राय: सुनाई पड़ते हैं। घर की बुजुर्ग महिला भी अभी तक लड़कियों की हंसी की आवाज सुनकर चौंक जाती हैं। उनके कान इसके अभ्यस्त नहीं हैं। यदि समानता की बात करना है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि आनन्द व प्रसन्नता की अनुभूति को प्रकट करने का जितना अधिकार पुरुषों को है उतना महिलाओं को भी है- फिर चाहे व खेल का मैदान हो या किसी सीरियल के दृश्य से उत्पन्न कोई स्थिति! उस खिलखिलाती हंसी की मधुर ध्वनि यदि लड़कियों की हो तो कानों को बहुत प्रिय लगना चाहिए, क्योंकि इसमें ही समानता है।

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