-वीना नागपाल
आज पुन: बच्चों से संबंधित बात हो रही है। सोशल मीडिया पर, फेसबुक पर एक मां द्वारा डाली गई पोस्ट बहुत चर्चित हो रही है। पुणे की एक कामकाजी महिला स्वाति चितलाकर ने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली जिसमें एक चित्र (फोटो) भी था। फोटो में एक नन्हा बच्चा फर्श पर लेटा हुआ है और उसकी मां स्वाति सामने बैठी कम्प्यूटर पर नजरें गड़ाए आॅफिस का काम निपटा रही है। स्वाति ने इस चित्र के साथ लिखा-‘‘फर्श पर कोई बच्चा नहीं मेरा दिल लेटा है।’’ सोशल मीडिया पर यह पोस्ट छा गई।
दरअसल स्वाति का बच्चा बीमार था। उसे तेज बुखार था। वह उसे घर पर छोड़कर नहीं आ सकती थी। दूसरी ओर आॅफिस में काम का इतना दबाव था कि वह छुट्टी नहीं ले सकती थी और शायद उसे छुट्टी मिल भी नहीं सकती थी। इसलिए उसे अपने ‘दिल’ (बच्चे) को साथ लेकर आना पड़ा। उसने दोनों कर्तव्य निभाए। इस पोस्ट को देखकर सोशल मीडिया पर बहुत चर्चा हुई। कुछ ने कहा - स्वाति का रवैया एक कर्मठ कामकाजी महिला का है, उसकी प्रशंसा की जाना चाहिए। कुछ लोगों ने वर्किंग मदर्स की चुनौतियों पर चर्चा की। स्वाति ने एक दूसरे पोस्ट में उसका साथ देने वालों का शुक्रिया अदा किया।
इस विषय को लेकर गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। हालांकि पिछले दिनों नवजात शिशुओं की देखभाल व उनके पालन-पोषण की बात को लेकर केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने मांओं को एक लंबा अवकाश देने की व्यवस्था की है और सभी राज्यों से कहा कि वह इसे त्वरित अपने यहां लागू करें। राज्य की छवि एक लोक कल्याणकारी राज्य की होना चाहिए, जिसके अंतर्गत यह व्यवस्था प्राथमिक स्तर पर होती है कि मां व बच्चे के स्वास्थ्य की पूरी-पूरी देखभाल हो। परंतु प्रारंभ के कुछ महीनों के साथ-साथ बच्चों के आने वाले एक-दो वर्ष भी कोमल आयु की अवस्था के होते हैं। उसमें भी कभी-कभी बच्चे अस्वस्थ हो सकते हैं और मां के लिए अपने बाहरी कामकाज के उत्तरदायित्व निभाने के साथ यह समस्या आ सकती है कि वह बीमार बच्चे को किसके पास छोड़े?
यहां स्वाति चितलाकर का संदर्भ लेकर एक या दो प्रश्न उठ सकते हैं जिनका उत्तर मिलना भी बहुत आवश्यक है। पहला और मुख्य प्रश्न तो यही है कि स्वाति के पति और बच्चे के पिता बीमार बच्चे के लिए छुट्टी लेकर क्या उसकी देखभाल घर पर नहीं कर सकते थे? इस बारे में स्वाति ने कुछ नहीं बताया है। यदि बच्चे के पिता साथ में हैं तो यह उनका भी दायित्व बनता है कि यदि उनकी पत्नी को कामकाज के सिलसिले में छुट्टी लेना असंभव है तो बच्चे की देखभाल के लिए पिता (पापा) छुट्टी ले लें। यह सबसे सुविधाजनक व्यवस्था है और आज के समय की मांग भी है। ऐसे में स्वाति को अपना ‘दिल’ आॅफिस में लाकर फर्श पर लिटाना नहीं पड़ता। हमें यह जानकारी नहीं है कि स्वाति के पास यह सुविधा थी की नहीं?
दूसरी आवश्यक बात यह है कि अब यह मांग निरंतर उठ रही है कि आॅफिस में ही कामकाजी महिलाओं के छोटे बच्चों के लिए क्रेश (पालना घर) की व्यवस्था करना अनिवार्य हो। इससे महिलाएं अपना कार्य करते हुए बीच-बीच में समय निकालकर अपने बच्चों को दुलार सकेंगीं जो कि एक मासूम की परवरिश में बहुत सहायक होगा। मां के स्पर्श की तुलना किसी और स्पर्श से नहीं की जा सकती। कई प्रतिष्ठित संस्थानों से यह समाचार आने लगे हैं कि उनके यहां इस तरह पालना घर की सुविधा प्रारंभ कर दी गई है, बेंगलुरु इसमें अग्रणी है। यही सबसे उत्तम व्यवस्था होगी जब शासकीय व निजी संस्थानों में इस प्रकार के पालना घरों की व्यवस्था की जाएगी। स्वाति चितलाकर जैसी कई महिलाएं तब अपने ‘धड़कते दिलों’ को अपने साथ लाकर और फर्श पर उसे लिटाकर अपना कामकाज निपटाते हुए चित्र फेसबुक पर पोस्ट नहीं करेंगीं। संयुक्त परिवार से तो इस तरह की समस्या नहीं उठती है पर, एकल परिवारों में बच्चे का पालन-पोषण और वह भी उस स्थिति में जब माता-पिता दोनों कामकाजी हों एक समस्या तो उठा ही सकता है। कार्यालयों में यदि पालना घर बना दिए जाएं तो मां और बच्चों दोनों के दिलों की धड़कन स्वस्थ रहेगी।
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