24 Apr 2024, 13:24:42 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-सतीश सिंह
लेखक आर्थिक विषयों के जानकार हैं।


भारतीय स्टेट बैंक के पांच सहयोगी बैंकों और देश की एकमात्र महिला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक के साथ विलय की मंजूरी 18 अगस्त को भारतीय स्टेट बैंक के प्रबंधन ने दे दी। इन छह बैंकों के विलय के बाद भारतीय स्टेट बैंक की परिसंपत्ति 22 लाख करोड़ से बढ़कर  30 लाख करोड़ हो जाएगी। इसके शाखाओं एवं एटीएम की संख्या भी बढ़कर क्रमश: 24000 एवं 58000 से अधिक हो जाएगी।

सरकार का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए देश में बड़े एवं विश्वस्तरीय बैंकों की जरूरत है। आरएस गुजराल की अध्यक्षता में बनी समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मिलाकर सात बड़े बैंक बनाने का सुझाव दिया था, जिसका रोडमैप बैंक बोर्ड ब्यूरो तैयार कर रहा है। विलय के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को छह समूहों में बांटा गया है। बैंकों के समूहों का निर्णय मानव संसाधन, ई-गवर्नेंस, आंतरिक लेखा-परीक्षा, धोखाधड़ी, सीबीएस (कोर बैंकिंग साल्यूशन) एवं वसूली को आधार बनाकर लिया गया है।

नए जोखिम मानकों के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 10 साल में सात लाख करोड़ रुपए से अधिक राशि जुटानी होगी। सरकारी बैंकों को बासेल तृतीय के मानकों को भी पूरा करने के लिए लगभग 2.4 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। जाहिर है, इतनी बड़ी रकम का इंतजाम करना बैकों एवं सरकार दोनों के लिए आसान नहीं होगा। 

स्टेट बैंक आॅफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक आॅफ इंदौर का विलय क्रमश: 2008 एवं 2010 में भारतीय स्टेट बैंक के साथ किया जा चुका है। सरकार 19 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) का विलय भी बीते सालों कर चुकी है। पूर्व में हैदराबाद स्थित निजी क्षेत्र के ग्लोबल ट्रस्ट बैंक (जीटीबी) और यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक (यूडब्लूबी) का भी क्रमश: ओरियंटल बैंक आॅफ कामर्स एवं आईडीबीआई बैंक में विलय किया गया था। विलय के समर्थन में कहा गया था कि शाखाओं की संख्या कम होने के कारण छोटे बैंकों की परिचालन लागत अधिक है और वितीय संसाधनों की कमी की वजह से ऐसे बैंक, बड़े बैंकों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर पा रहे थे।

विलय के बाद मानव संसाधन स्तर पर भारी असंतोष पनपने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। स्टेट बैंक आॅफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक आॅफ इंदौर छोटे स्तर के बैंक थे। मानव संसाधन के योग्य और कुशल होने के बावजूद भी इन दोनों बैंकों के अधिकारियों के पदानुसार उनकी वरीयता में एक साल से तीन साल तक की कमी की गई। रोजगार के संकट के दौर में इस तरह की विसंगति मायने नहीं रखती है, परंतु जो अधिकारी कॅरियर में आसमान को छूना चाहते हैं, उनके सपनों का क्या होगा?

भारत जैसे बड़े एवं विविधितापूर्ण देश में बैंकिंग की सुविधा गली-मोहल्लों तक पहुंचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्र से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के लिए आज भी किसी चुनौती से कम नहीं है। हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का ग्रामीण क्षेत्र में उपस्थिति बढ़ रही है, लेकिन विलय के बाद बड़े बैंक मामले में मनमानी कर सकते हैं।  मानव संसाधन, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, वेतन व भत्ते, प्रणाली आदि का एकीकरण भी आसान नहीं है। इसके अलावा यूनियन को विलय के लिए राजी करना, मानव संसाधन का फिटमेंट, विसंगति की स्थिति में क्षतिपूर्ति की व्यवस्था आदि ऐसे मुद्दे हैं, जिनका समाधान ढूंढना सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। पूर्व में दो सरकारी उपक्रमों एअर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के विलय में सबसे बड़ा रोड़ा मानव संसाधन का एकीकरण ही रहा था। वर्तमान एयर इंडिया की बदहाली का कारण एकीकरण को ही बताया जा रहा है।

वर्तमान में सरकारी बैंक पूंजी की कमी और एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं, जिसका विकल्प सरकारी बैंकों का एकीकरण कुछ हद तक हो सकता है, लेकिन इसे यूटोपिया कदापि नहीं माना जा सकता है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी की ज्यादा जरूरत है, जिसे उपलब्ध कराना एकीकरण के बाद भी संभव नहीं है। इधर, एकीकरण के बाद भी भारतीय बैंकों का फलक विदेशी बैंकों से बहुत कम होगा। मसलन, अमेरिका के आठ बैंकों की समग्र पूंजी वहां के जीडीपी का 60 प्रतिशत है। वहीं, इंग्लैंड और फ्रांस के चार बैंकों की समग्र पूंजी उनके देशों के जीडीपी का 300 प्रतिशत है, जबकि भारत में प्रस्तावित छह बैंकों की समग्र पूंजी देश के जीडीपी की महज एक तिहाई होगी। अमेरिका के सबसे बड़े बैंक जेपी मार्गन की पूंजी 2415 बिलियन यूएस डॉलर है, जो भारत के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक से आठ गुना ज्यादा है। साफ है, एकीकरण के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े बैंक नहीं बन पाएंगे।

कहा जा सकता है कि एकीकरण के बाद भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी की कमी का सामना करना पड़ेगा। परिचालन एवं दूसरे खर्चों में कटौती को सुनिश्चित करना भी आसान नहीं होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था को बैंकों के एकीकरण से तभी फायदा हो सकता है जब बैंक कर्ज दर सस्ती हो और लोन देने की गति में तेजी आए। पूंजी की किल्लत बने रहने से एकीकरण के बाद भी इस दिशा में सुस्ती रहने की आशंका है। ऐसे में बैंकों के एकीकरण से अर्थव्यवस्था में गुलाबीपन आने की संभावना न्यून है। 

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