-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक
तेजी से बदलते समय के साथ-साथ भारत का बैंकिंग सेक्टर काफी बदल चुका है। ब्रांच बैंकिंग से इंटरनेट बैंकिंग, टेली बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग सब कुछ स्मार्ट हो गया है। नई प्रौद्योगिकी की बुनियाद पर लगातार सेवाओं का विस्तार हो रहा है। इन सेवाओं से बैंकों में जाकर लंबी कतारों में खड़े होने या बिजली-पानी बिल अदा करने के लिए भीड़ का सामना करने से बच सकते हैं। अब यह सारा काम स्मार्ट बैंकिंग के जरिए हो जाता है। लोग अब इन सेवाओं का जमकर इस्तेमाल करने लगे हैं। युवाओं में प्लास्टिक मनी यानी डेबिट-क्रेडिट का क्रेज बढ़ा है।
सर्वे बताते हैं कि सिर्फ दो या तीन वर्षों में क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करने वालों की औसत उम्र 45 से घटकर 25 वर्ष रह गई है। प्लास्टिक के कार्ड्स ने नकदी ले जाने के झंझट से छुटकारा तो दिला ही दिया है, अब हजारों की शापिंग आप इन कार्ड्स के जरिए कर सकते हैं। इसमें कोई नुक्सान भी नहीं है। विशाल नेटवर्क से एटीएम की पहुंच शहरों से गांवों तक हो गई है। अब आप कहीं भी जाएं, जब जरूरत हो डेबिट कार्ड से रुपए निकाल लें भले ही बैंक में छुट्टी हो या न हो। इससे जीवन आसान तो हुआ ही और सेफ्टी भी है। हालांकि हर तरह की सेवा के लिए बैंक आपसे फीस वसूलता है।
दूसरे बैंक के एटीएम से पैसे निकालने पर भी फीस लगती है। बहुत-सी सेवाएं चार्जेबल हैं और बहुत-सी फ्री भी हैं। बैंक ट्रांजेक्शन शुल्क भी वसूलता है। कई बैंकों ने न्यूनतम बैलेंस तय कर रखा है, उससे कम पैसे खाते में हुए तो बैंक चार्ज लगा देते हैं। अक्सर उपभोक्ता शिकायत करते हैं कि फलां बैंक ने उसके खाते से पैसे काट लिए हैं, कुछ लोग बहुराष्ट्रीय बैंकों पर कई तरह के हिडन चार्जेस लगाने की शिकायत करते हैं लेकिन आज के आधुनिक समय में सुविधाओं के लिए शुल्क वसूला जाना अनुचित नहीं लेकिन हर शुल्क उतना ही होना चाहिए जितना उपभोक्ता सहन कर सके।
मोदी सरकार लगातार देश में कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है। डेबिट या क्रेडिट कार्ड से सरकार को किए जाने वाले भुगतान पर लेन-देन की लागत यानी मर्चेंट डिस्काउंट रेट का भार ग्राहक उठाते हैं, लेकिन अब सरकार ने सार्वजनिक सेवाओं के लिए डेबिट या क्रेडिट कार्ड तथा नेट बैंकिंग के जरिए किए जाने वाले सभी भुगतान के लिए सौदा लागत खुद वहन करने का फैसला किया है। वित्त मंत्रालय ने इस संबंध में आधिकारिक परिपत्र जारी कर दिया है, जिसमें कहा गया है कि डेबिट, क्रेडिट कार्डों या डिजिटल तरीके से इस तरह के भुगतान पर लेन-देन के लिए किए जाने वाले भुगतान का तौर-तरीका तय किया जा रहा है। सरकारी भुगतान व संग्रहण में क्रेडिट, डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के कदमों के तहत वित्त मंत्रालय ने यह पहल की है जो कि सराहनीय है।
रिजर्व बैंक ने 2012 में डेबिट कार्ड पर 2000 तक की ट्रांजेक्शन वैल्यू पर एमडीआर की सीमा 0.75 फीसदी और 2000 से ज्यादा की ट्रांजेक्शन वैल्यू पर एक फीसदी की सीमा तय की। हालांकि आरबीआई ने क्रेडिट कार्ड भुगतान पर एमडीआर की कोई सीमा तय नहीं की है। देश में इस समय 61.5 करोड़ डेबिट कार्ड धारक और 2.3 करोड़ क्रेडिट कार्ड धारक हैं। उपभोक्ताओं के लिए एक राहत भरी खबर यह भी है कि रिजर्व बैंक ने आॅनलाइन बैंकिंग फ्राड से ग्राहकों को बचाने की दिशा में पहल करते हुए एक शून्य जवाबदेही की नीति तय की है। ग्राहक अगर तीन दिनों के भीतर बैंक को धोखाधड़ी की सूचना दे देता है तो उसको कोई नुकसान नहीं होगा।
देश में लगातार बढ़ते साइबर अपराधों को ध्यान में रखते हुए इसे ग्राहकों के हित में एक ठोस पहल माना जा रहा है। अगर कोई ग्राहक ऐसे मामलों की जानकारी तीन दिनों के भीतर दे देता है तो उसको कोई आर्थिक नुक्सान नहीं होगा। अगर वह सात दिनों के भीतर बैंक को जानकारी देता है तो भी उसे महज पांच हजार रुपए का नुक्सान होगा। यानी अब ऐसी धोखाधड़ी के जरिए होने वाले नुक्सान का खामियाजा बैंकों को भरना होगा। इतना ही नहीं धोखाधड़ी में बैंक का कोई कर्मचारी शामिल है तो ग्राहकों को हर हाल में पैसा वापस मिल जाएगा। नए नियम हर तरह के इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन पर लागू होंगे चाहे वह नेट बैंकिंग के जरिए हुआ हो या फिर किसी दुकान पर डेबिट या क्रेडिट कार्ड के जरिए।
सैकड़ों लोग साइबर अपराधों का शिकार होकर अपनी जमा पूंजी गंवा चुके हैं और बैंक उनको राशि लौटाने से इंकार कर देते हैंं, अगर बैंक राशि लौटाते भी हैं तो बहुत ज्यादा समय लगाते हैं। हालांकि बैंक समय-समय पर ग्राहकों को गोपनीयता बरतने और सतर्क रहने का परामर्श देते हैंं, लेकिन साइबर अपराधी बहुत तेज और तकनीकी ज्ञान से काफी समृद्ध होते हैं। बैंकिंग प्रणाली का मौजूदा विवाद निपटान तंत्र अभी भी पूरी तरह मजबूत नहीं है। रिजर्व बैंक ने ग्राहकों की सुरक्षा के लिए एटीएम कार्ड को चिप आधारित बनाने जैसे कई कदम उठाए हैं, क्योंकि प्रचलित कार्ड को क्लोन करना बेहद आसान है। 31 दिसंबर, 2018 तक मैग्नेटिक आधारित तमाम कार्डों का प्रचलन बंद हो जाएगा।
वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक की नई नीतियों से ग्राहक चैन की सांस ले सकते हैं। स्वीडन जल्द ही दुनिया का पहला कैशलैस देश बनने वाला है। भारत में ऐसा होना अभी दूर की बात है लेकिन एक न एक दिन ऐसा हो जाएगा, क्योंकि सरकार द्वारा उठाए गए हर कदम लक्ष्य की तरफ ही बढ़ रहे हैं।