-वीना नागपाल
उस परिवार की बातें सुनकर ऐसा लगा कि डोरे किसी एक धर्म या परंपराओं और रीति-रिवाजों से जोड़कर न देखे जाएं बल्कि उसे तो एक मजबूत संबंधों की स्नेही डोरों के बंधन की भांंति महसूस किया जाए।
उस परिवार के पड़ोस में एक ईसाई (मसीही कहना ज्यादा उपयुक्त होगा) परिवार रहता था। यह बरसों पहले की बात है! उस हिंदू परिवार की और उस मसीही परिवार की लड़कियों आपस में बहुत घनिष्ठ थी। मसीही परिवार की लड़की को हिंदू परिवार की लड़की ‘सिस्टर’ बुलाती थी। उसकी देखा-देखी उस हिंदू परिवार की लड़की के छोटे भाई भी उन्हें सिस्टर बुलाने लगे। पता नहीं ‘सिस्टर’ इससे पहले राखी के त्योहार पर उस हिंदू लड़की के घर कभी गई थी या नहीं, पर उस दिन राखी थी। घर में बहुत अच्छा भोजन बना था जो ‘सिस्टर’ को बहुत ही पसंद था। यह अलग बात है कि वह हिंदू परिवार की लड़की सिस्टर के घर का अंडा, मांस का निरामिष भोजन नहीं करती थी, पर उनके यहां का चॉकलेट केक और कुकीज उसे और उसके दोनों भाइयों को बहुत प्रिय थे और तब वह उनमें अंडा है, कि नहीं इस बात को भुला देते। बात राखी के दिन की थी। सिस्टर ने देखा कि बहन ने भाइयों का तिलक किया। उनके माथे पर रोली-चंदन लगाया। उनकी आरती उतारी और सुंदर राखी (जिसका पता सिस्टर को देखने के बाद चला) बांधी। बहन ने भाइयों को मिठाई खिलाई। सिस्टर यह सारा दृश्य देखकर अभिभूत हो गई और उन्होंने तुरंत कहा कि वह भी इन भाइयों को राखी बांधेगी। उन्हें बताया गया कि एक बार यह बंधन स्थापित हो जाए तो इसे उम्रभर निभाना पड़ता है। सिस्टर ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा हां, निभाऊंगी।‘‘
सच में सिस्टर ने उम्रभर इस बंधन को निभाया। कुछ समय बाद उनका परिवार लखनऊ चला गया। पर, लखनऊ से हर वर्ष एक अंग्रेजी में सुुंदर अक्षरों में लिखे पत्र के साथ राखी और उसके साथ रोली, चावल और मिश्री की छोटी-छोटी पुड़ियां अवश्य आती थी। सिस्टर ने उम्रभर यह रिश्ता निभाया। उनकी शादी के बाद उनके पति ने भी इस रिश्ते का सम्मान किया। वह जब तक जीवित रही भाइयों को पत्र के साथ राखी भेजती रही। दोनों भाई भी सिस्टर को धन्यवाद का पत्र अवश्य लिखते तथा अपनी इस बहन को नेग भेजते। यह ‘सिस्टर’ मेरी मां की सखी थीं जिन्हें वह हमेशा सिस्टर संबोधित कर पत्र लिखती रही।
जब ऐसे संबंधों का जिक्र आता है तब ऐसा लगता है कि इस स्नेह की डोर के बंधन जब धर्म व रक्त संबंधों से परे होते हैं, तब एक मां के जाए तथा एक ही परिवार के ताऊजी तथा काकाजी के बच्चों के बीच यह कैसी दीवारें खड़ी हो जाती हैं कि भाई-बहन इतनी दूर हो जाते हैं और इतने पराए हो जाते हैं। भाई-बहन के बीच कभी किसी घटना को लेकर या संपत्ति को लेकर इतना अबोला हो जाता है कि राखी का त्योहार आया भी है कि नहीं, पता नहीं चलता। यह स्नेह की डोर इतनी निकटता व आत्मीयता से भरी होती है कि इसके आगे सारे रिश्ते बौने हो जाते हैं। यदि किसी भाई-बहन में कोई दूरी या अलगाव मौजूद है तो वह ‘सिस्टर’ की बात याद कर ले, जिन्होंने भाई-बहन के स्नेह की एक मिसाल रखी।
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