-वीना नागपाल
डायना अथिल एक प्रसिद्ध लेखिका हैं। उनकी पुस्तकें हाथोहाथ पढ़ी जाती हैं। वह हालांकि अंग्रेजी भाषा की लेखिका हैं, परंतु एक खास वर्ग जो इन पुस्तकों को पढ़ता है वह उनका प्रशंसक है। भारतीय कुल के अंग्रेजी भाषा के ही एक बहुत चर्चित लेखक वीएस नायपॉल से उनकी घनिष्ठ मित्रता रही जो बहुत आत्मीयता व निकटता से भरी थी पर, कुछ समय बाद यह मित्रता टूटने से कोई फर्क नहीं पड़ा।
डायना अथिल के साक्षात्कार समय-समय पर समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं। अभी-अभी उनका एक ताजा साक्षात्कार पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने उस भयानक सच का जिक्र किया जिसे हम कई बार सोचते तो हैं, पर उसे प्रकट करने का साहस नहीं जुटा पाते। उन्होंने कहा-हम मनुष्य बहुत निर्ममता से व्यवहार करते हैं-अपने साथी मनुष्यों के प्रति और पर्यावरण के प्रति भी। हम अपने इस खूबसूरत ग्रह को तबाह कर रहे हैं। मुझे लगता है कि जैसे एक समय आने पर डायनासोर लुप्त हो गए इसी तरह हम मनुष्य भी इस ग्रह से गायब हो जाएंगे, हमारी गलतियों के कारण ही ऐसा होगा। मुझे खुशी है कि मैं ऐसा देखने के लिए नहीं रहूंगी।
डायना ने कितनी निराशा और गहरी संवेदना के कारण ऐसा कहा होगा? क्या इस कठोर सत्य को बताने की जरूरत है कि जिस तरह हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं तथा पर्यावरण की अनदेखी कर रहे हैं उससे क्या ऐसी आशंका नहीं होतीं कि इस बेहद खूबसूरत ग्रह और उस पर बसने वालों को नष्ट होना ही पड़ेगा। इतने सुंदर हरे-भरे वृक्ष काट दिए। पहाड़ों पर जहां लंबे-लंबे चीढ़ और देवदार के वृक्ष अपनी ठंडी बयार बहाते थे अब उन पहाड़ों को देखें तो ऐसा लगता है जैसे इन वृक्षों के बगैर वह वस्त्र हीन (नंगे) हो गए हों। अब वह वृक्ष दिखते ही नहीं हैं। सूखी पथरीली चट्टानों और पत्थरों के यह पहाड़ दहशत से भर देते हैं। कई कल-कल करती नदियां सूख गई हैं और कई सूखने की कगार पर हैं। कई पक्षी अपनी चहचहाट को लेकर कहीं गायब हो गए हैं। पता नहीं कितने रंग-बिरंगे पक्षी कहां चले गए हैं। क्या वह समय किसी को याद होगा जब इन पक्षियों के सुंदर पंख कहीं मिल जाते थे और हम बड़े जतन से उन्हें अपनी किताबों के पन्नों के बीच रख लेते थे। पंखों का मिलना बहुत शुभ माना जाता था। पक्षियों की बात क्या करें कई पशुओं की प्रजातियां भी नष्ट हो चुकी हैं। सीमेंट का कठोर जंगल खड़ा करते-करते मानव यह भुला बैठा है कि इन पक्षियों और पशुओं की जातियां यदि लुप्त हो गई हैं, यदि जंगल नहीं बचे हैं और नदियों का पानी सूख गया है तो वह मनुष्य कैसे बचेगा? यह ग्रह इसलिए ही बेहद खूबसूरत और निवास के काबिल था, क्योंकि यहां हरियाली थी, पशु-पक्षी थे और सबसे महत्वपूर्ण नदियों में जल था। स्टीफन हाकिंग ने कहा है-मनुष्य का लालच और उसकी-बेवकूफी खुद मानव जाति की सबसे बड़ी दुश्मन है।
डायना कहती हैं कि अच्छा है कि यह विध्वंस देखने के लिए मैं नहीं रहूंगी। पर हमारा मानना है कि हम आने वाली परिवेश दर पीढ़ी के लिए ऐसा कुछ करे कि उन्हें हरा-भरा व लहलहाता परिवेश व माहौल मिले व उन्हें पक्षियों का कलरव सुनाई देता रहे और इतना भरपूर पानी हो कि वह कभी अपनी प्यास के लिए तरसें नहीं। यदि पहले तो नहीं चेते पर अब सचेत हो जाएं कि मानव अपना अस्तित्व बनाए रखे। कई प्रयास हो रहे हैं पर, उससे दोगुने हिसाब से सीमेंट व सरिए का भार जमीन ढो रही है। इसके लिए कुछ विशेष स्थानों को और वह भी एक लंबे, विस्तृत क्षेत्र में हरियाली, भरे जंगल बने रहने दें। वहां पशु विचरें और पक्षी चहकें। देशभक्ति तभी सफल होगी जब भूमि की आराधना व भक्ति भी होगी।
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