24 Apr 2024, 11:26:10 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-रमेश ठाकुर
लेखक समसामयिक विषयों पर लिखते हैं।


गरीबी, भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अंधविश्वास की गुलामी में देश इस समय बुरी तरह से जकड़ा हुआ है। हम सिर्फ अंग्रेजों के कुसंस्कारों, कुकर्मों, प्रताड़ना व बेड़ियों से आजाद हुए हैं। 70 साल पहले जब देश गुलाम था तब भी दलितों व अछूतों को प्रताड़ित किया जाता था। वही सिलसिला आज भी बना हुआ है। देश के कई हिस्सों में आज भी इन्हें मंदिरों आदि स्वच्छ स्थानों पर नहीं जाने दिया जाता। हमें उस दिन की आजादी का इंतजार है जब हम इंसानी बंधनों की आजाद के वजय मन के कुसंस्कारों के बन्धन से आजाद होंगे। तभी हमें पूर्ण रूप से आजादी मिलेगी।

इस बात में कोई शक नहीं है कि 15 अगस्त 1947, भारतीय इतिहास का सर्वाधिक भाग्यशाली और महत्वपर्ू्णं दिन है। इस दिन की सुबह को देखने के लिए हमारे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर हम सबके लिए आजादी हासिल की। भारत की आजादी के साथ ही भारतीयों ने अपने पहले प्रधानमंत्री का चुनाव पंडित जवाहरलाल नेहरू के रूप में किया जिन्होंने राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के लाल किले पर तिरंगे झंडे को पहली बार फहराया। आज हर भारतीय इस खास दिन को एक उत्सव की तरह मनाता है। दरअसल भारतीयों के लिए असल गुलामी पंद्रह अगस्त के बाद ही शुरू हुई थी। आजाद सिर्फ धनाढ्य लोगों को मिली थी। मजहब-समुदाय के नाम पर पूरा देश बंट गया। बड़े और छोटे का दायरा तय हो गया।

अपने खून की आहूति देकर जिन्होंने देश को आजाद किया, उन्हें कुछ भी नहीं हासिल हुआ। उनके परिजन आज किस हाल में यह बताने की जरूरत नहीं है। सबको पता कि आजादी का फायदा कुछ ही लोगों ने उठाया। इसलिए अब आजादी की तारीखें आर्धशताब्दी पूरी कर आगे बढ़ चुकी हैं, आजादी के दीवानों की कहानियां कितनों की जबानी और कितनों की जिंदगानी बन चुकी हैं। आजादी के इन वीर योद्धाओं में  दीवानों की तरह मंजिल पा लेने का हौसला तो था, लेकिन बर्बादियों का खौफ न था। रोटियां भी मयस्सर न हों लेकिन परवाह न था, दीवानों की तरह ये आजादी के दीवाने भी, मंजिलों की तरफ बढ़ते चले गए, बड़े से बड़े जुल्मों सितम भी उनके कदमों को न रोक सके, कोई ऐसी बाधा न हुई, जिसने उनके सामने घुटने न टेक दिए।

हम आजाद हुए, कितना कुछ बदल गया, खुली हवा में सांस तो ले सकते हैं, दो वक्त की रोटियां तो मिल जाती हैं, बेगार के एवज में किसी के लात-घूंसे तो नहीं खाने पड़ते हैं, बहुत कुछ बदल गया। कम से कम अपने मौलिक अधिकारों के अधिकारी तो हैं, मुंह से एक शब्द लिकालना गुनाह तो नहीं है। अच्छा है हम आजाद हैं, और भी अच्छा होगा यदि हम आजाद रहें, उससे भी अच्छा होगा यदि हम दूसरों को आजाद कर सकें, गरीबी, भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अंधविश्वास की गुलामी से। इंसानों के बंधनों से आजाद हो गए, मन के कुसंस्कारों के बंधन से आजाद हों तो पूरा आजादी मिलेगी। दूसरों से लड़कर उनके बंधन से तो आजाद हो गए, स्वयं के अंदर व्याप्त कुसंस्कारों से लड़कर कितने लोग आजाद हो पाते हैं यह तो वक्त ही जानता है।

आजादी एक दिन में नहीं मिली, शताब्दियां लग गईं, इन बातों को भी समझने में वक्त लगेगा। एक विद्यार्थी को किसी संस्था के माध्यम से स्नातक होने में कम से कम पंद्रह वर्ष तो लग ही जाते हैं, तो एक स्वनुभव से ज्ञान प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी कम से कम पंद्रह वर्ष लग ही जाएंगे, कुछ ज्यादा भी लग जाए तो भी हैरानी की बात नहीं और उम्र भी बीत जाए फिर भी ज्ञान प्राप्त न हो तो भी कोई आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि ज्यादातर यही होता है। अपवाद स्वरूप में पंद्रह वर्ष से पूर्व ही ज्ञान प्राप्त हो जाए तो भी कोई आश्चर्य नहीं। जब भी हो जैसे भी हो जब तक प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित नहीं हो जाता किसी समग्र बदलाव की उम्मीद व्यर्थ है।

वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है, लेकिन फिर भी हमें देशधर्म यही कहता है कि स्वतंत्रता का महत्व कभी भी कम नहीं होना चाहिए। दुख इस बात का होता है कि कुछ सालों से स्वतंत्रता के मायने धीर-धीरे कम होते जा रहे हैं। हमें याद है स्वतंत्रता दिवस का इंतजार दीवाली या होली की तरह करते थे।

साफ-सुथरी स्कूल यूनिफोर्म में सुबह सुबह स्कूल जाना, स्कूल में तिरंगा फहराते हुए देखना, प्रभातफेरी निकलना ,देशभक्ति के गीत गाना, जोर-जोर से चिल्लाकर देश प्रेम के नारे लगाना और फिर स्कूल से मिले मोतीचूर के लड्डू खाना। बस इतना ही नहीं इसके बाद शिक्षकों के साथ पुलिस परेड ग्राउंड जाना। वहां पुलिस की परेड देखना, मतलब मन पूरा दिन देश प्रेम में रंगा रहता था। हमें ऐसा लगता था कि हम देश के वीर सेनिक है और किसी बड़े अभियान पर निकलने की तैयारी कर रहे हैं।

मगर आज के परिवेश में 15 अगस्त का मतलब छुट्टी का दिन। सुबह देर से सोकर उठना, मॉल या मूवी जाना, शॉपिंग करना और छुट्टी का दिन खुशी-खुशी मनाना।  जिनकी बदौलत ये स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी और खुशी मिली है, उन्हें कभी भी याद न करना उनकी शहादत को कम करना होगा।

ऐसे वातावरण में बच्चों और युवाओं को देश के त्याग और बलिदान का पता कैसे चलेगा? कैसे मालूम होगा 15 अगस्त का वास्तविक अर्थ? हम सभी भारतवासियों का यह कर्तव्य है कि हम अपने बच्चो और युवाओं में देश-प्रेम, त्याग, बलिदान की भावनाओं को जगाए और उन्हें 15 अगस्त का वास्तविक अर्थ बताएं, क्योंकि आगे चलकर हमारे देश की जिम्मेदारी उन्ही के कंधों पर  होगी। वक्त का तकाजा है कि सरकार को अब गरीबी, भ्रष्टाचार, अज्ञानता और अंधविश्वास से मुक्ति दिलाएं और सभी देशवासी एक जैसी आजादी की खुशबू संूघ सकें।

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