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सोलह साल की दृढ़ निश्चयी इरोम शर्मिला

By Dabangdunia News Service | Publish Date: Aug 11 2016 10:40AM | Updated Date: Aug 11 2016 10:40AM
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-वीना नागपाल

सोलह साल तक भोजन ग्रहण नहीं करना और पानी का एक घूंट भी गले के नीचे नहीं उतारना इरोम शर्मिला का दृढ़ निश्चय और इस माध्यम से सशक्त विरोध दृढ़ निश्चय का ही तो प्रतीक था। इरोम शर्मिला का यह शांतिपूर्वक किया गया अनशन विश्वभर में चर्चित है। भारत की एक सबल दृढ़ निश्चयी महिला (जब अनशन प्रारंभ किया तब युवती ही थी।) ही ऐसा कर सकती है।

इरोम शर्मिला कौन है? शर्मिला मणिपुर से है। हमारा सुदूर पूर्वी भारत बहुत हलचल का प्रदेश रहा है। शेष भारत से दूर होने के कारण वहां उथल-पुथल होती रहती थी। एक ओर बांग्लादेश तो साथ ही में म्यांमार (बर्मा) और चीन की ओर से घुसपैठ कम नहीं हो रही। इन्हीं के कारण स्थानीय निवासी भी विरोध में शामिल हो जाते थे। ऐसे हालात में केंद्रीय शासन को वहां ऐसी व्यवस्था करना पड़ी, जिसमें सेना व पुलिस के अधिकार बहुत बढ़ गए। यह कानून अफस्पा है। इरोम चानू शर्मिला ने सुरक्षा बलों के हाथों 10 नागरिकों के मारे जाने पर यह अनशन प्रारंभ किया था। हम सैन्य व पुलिस बल की शक्ति व उनकी देशभक्ति और देशसेवा की बहुत प्रशंसा करते हैं, पर कभी-कभी उनसे भी अधिकारों के प्रयोग के दौरान कई चूक हो जाती हैं। इरोम शर्मिला का कहना था कि मणीपुरवासी अपनी सीमा जानते और पहचानते हैं और वह भी शांति के समर्थक हैं, इसलिए उन पर इस कानून का प्रयोग न किया जाए।

शर्मिला ने अपना 16 वर्ष का यह अनशन दो दिन हुए तो समाप्त कर दिया है। उनके जीवन की सुरक्षा की चिंता शासन को बहुत थी, इसलिए डॉक्टरों द्वारा उन्हें नली द्वारा आवश्यक भोजन द्रव्य के रूप में पहुंचाया जाता था। उनकी नाक में एक स्थाई नलिका लगाई गई थी और उन्हें अस्पताल में ही आवश्यक सुरक्षा के अधीन रखा गया था। इरोम शर्मिला से विश्वभर से लोग और सामाजिक चिंतक आते और उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान करते। यहां शर्मिला के एक महिला होने के नाते दिखाई गई उस दृढ़ इच्छाशक्ति के बारे में बात की जा रही है जो उन्होंने 16 वर्ष तक दिखाई। प्राय: महिलाओं को नाजुक, कोमल समझने की भूल की जाती है। उन्हें लेकर यह भ्रांति फैलाई जाती रही है कि प्रकृति ने उन्हें इतना कोमल बनाया है कि वह साधारण विपत्ति अथवा किसी अप्रिय स्थिति में सामना नहीं कर पातीं। वह टूटकर बिखर जाती हैं, इसलिए उन्हें किसी न किसी का सहारा अवश्य लेना पड़ता है। दूसरी ओर पुरुष तो बहुत जांबाज होता है और वह प्रत्येक स्थिति का सामना पूरी शक्ति व उत्साह से करता है।

यह एक भ्रम व मिथ है। इरोम शर्मिला का अपने दृढ़ निश्चय पर टिके रहना और 16 वर्ष तक अनशन करना क्या महिलाओं की शक्ति व साहस का प्रतीक नहीं है? वह महिला और उसमें से भी वह भारतीय महिला है जो समय आने पर अपनी इच्छाशक्ति का ऐसा प्रदर्शन करती हैं कि वह एक चर्चा का विषय हो जाता है। यदि वह किसी अन्याय का विरोध करने का दृढ़निश्चय कर लें तो चाहे कैसी भी परिस्थितियां क्यों न आ जाएं उनके इरादे को कोई डिगा नहीं सकता। हमारी गुजारिश है कि इरोम शर्मिला से प्रेरणा लेकर और उन्हें अपना आदर्श मानकर महिलाएं व युवतियां इसी दृढ़निश्चय का प्रतीक बनें।

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