25 Apr 2024, 09:10:55 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

बच्चों की एक पूरी पीढ़ी तैयार हो रही है, जो झुके कंधों की शारीरिक कुरूपता से ग्रस्त होगी। उन्हें हम इस विकृति के साथ कैसे देखेंगे और सहन करेंगे यह अपने आपमें बहुत विचारणीय विषय है। इस विकृति को आने से हम रोक नहीं पा रहे हैं।

सुबह-सुबह उठकर देखिए या फिर दोपहर और शाम को यह दृश्य देखिए। स्कूल बस रुकती है और उसमें से बच्चे नीचे उतरते हैं। कंधों पर एक स्कूल बैग का बड़ा सा बोझ लादे उनके कंधे और पीठ दोनों झुके होते हैं। वह हताश और थके हुए इस बोझ को लादे-लादे घर पहुंचकर उसे पटकते हैं और अगली सुबह उसे फिर लादकर स्कूल पहुंचते हैं। उनकी पीठ दर्द और पीड़ा को रोज इसी तरह सहन करती है। उनके कंधे उसी तरह भार व दर्द से झुके होते हैं जैसे किसी अंधे अथवा वृद्ध के होते हैं। क्या इस तुलना से हमारी चिंता और गहन नहीं हो जाती और हमें उसकी गंभीरता समझ में नहीं आती? बच्चों को इतना भारी बैग ठीक पॉजिशन में उठाने की टेक्निक तो पता नहीं होती इसलिए वह उसे कंधों और पीठ पर टेढ़ा-मेढ़ा लटकाकर उठाते हैं। इस तरीके से उठाने के कारण उनकी स्पाइन पर जोर पड़ता है और वह टेढ़ी भी होना शुरू हो जाती है। यह उनकी युवावस्था तक आते-आते बहुत परेशानी का कारण हो सकता है।

हमें अपने स्कूली जीवन को याद करना चाहिए। अधिकांशत: कपड़े या उस समय नई-नई चली रेग्जीन के होते थे। उसमें टाइम टेबल देखकर उस दिन के विषयों की चार किताबें और कॉपियां (अब जिन्हें नोट बुक्स कहा जाता है होती थीं) होमवर्क के लिए पुस्तकों में ही निशान लगवा दिए जाते थे या मुंह जुबानी कह दिया जाता था कि फलां कविता याद करना या फलां अध्याय की रीडिंग करके आना। सर और मेडम को यह याद रहता था कि कौन सी क्लास को क्या होमवर्क दिया गया है। उसे बराबर अगले दिन पूछा जाता था और नहीं पूरा करने पर सजा (दंड) देने की बात तय होती थी। उसमें कोई माफी नहीं मिलती थी और न ही दंडित होने पर अगले दिन माता-पिता टीचर से पूछने जाते थे कि बच्चे दंडित होने पर अगले दिन माता-पिता टीचर से पूछने जाते थे कि बच्चे को सजा क्यों मिली। आज जरा बुक्स और नोट बुक्स के बंडलों की भरमार है। एक-एक विषय की तीन-तीन बुक्स हैं। बुक्स, वर्क बुक्स, हेल्पिंग बुक, क्लास वर्क नोट, बुक, होमवर्क, नोट बुक, टेस्ट नोट बुक (प्रत्येक विषय की) और होमवर्क डायरी आदि। हो सकता है कि और भी नोट बुक्स और बुक्स शामिल हों जिनकी हमें जानकारी नहीं है। अब जरा संख्या गिन लीजिए कि जब एक विषय की इतनी बुक्स हैं तब उस दिन पढ़ाए जाने वाले विषयों की बुक्स को मिलाकर कितनी संख्या हो जाती है। इससे बैग का बोझ तो बढ़ेगा। इनके साथ-साथ बच्चों को इसमें अपना टिफिन बॉक्स भी ठूंसना होता है और कंधे पर पानी की बोतल भी लटकानी होती है।

हैदराबाद के एक स्कूल में पैरेंट्स को बुलाया गया और उनसे पूछा गया कि इन भारी बैग्स को लेकर आपके पास कोई समाधान है क्या? एक-दो पैरेंट्स ने कहा कि इनके स्थान पर टेबलेट्स (कम्प्यूटर का बहुत छोटा रूप) दे सकते हैं तब अन्य कुछ पैरेंट्स ने इसे नकारते हुए कहा कि बच्चे इसका मिस यूज (दुरुपयोग) भी कर सकते हैं। बात किसी हद तक जायज है। कई निजी स्कूल अपने यहां पढ़ाई की उच्च स्तरीय गुणवत्ता दिखाने के लिए बहुत अधिक बुक्स की लिस्ट पैरेंट्स को थमा देते हैं जिसे वह एक विशेष दुकानदार से लेने के लिए कहते हैं और जिसमें उनका कमीशन तय होता है। यदि हम बच्चों को टेढ़ी और दोहरी कमर व झुकी पीठ की विकृति से बचाना चाहते हैं तो शासन व समाज दोनों को मिलकर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर लगाम लगाना होगी।

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