-आरके सिन्हा
लेखक राज्यसभा सांसद हैं।
दूध के नाम पर जिस जहर को देश की अधिकांश जनता पीने को अभिशप्त है, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट का नोटिस लेना और गंभीर चिंता जताना सच में एक महत्वपूर्ण निर्णय है जिसके दूरगामी और देशव्यापी परिणाम होंगे। मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, न्यायमूर्ति आर भानुमति और यूयू ललित की पीठ ने शुक्रवार को दूध में मिलावट का मुद्दा उठाने वाली जनहित याचिका का निपटारा करते हुए दिशा-निर्देश जारी किए। स्वामी अच्युतानंद तीरथ ने इस याचिका में उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में दूध की मिलावट व सिंथेटिक दूध की बिक्री का मुद्दा उठाया था।
बेशक, ये राष्ट्र शर्म का विषय है कि आपके हमारे बच्चे रोज सुबह दूध के नाम पर जहर पी रहे हैं। सरकार की तरफ से विगत 16 मार्च को लोकसभा में माना गया था कि देश में बेचा जाने वाला 68 प्रतिशत दूध भारत के खाद्य नियामक द्वारा निर्धारित शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता। चंद सिक्कों की खातिर अमृत को मिलावटखोर विष बना रहे हैं। दूध में पानी की मिलावट सबसे ज्यादा होती है, जिससे इसकी पौष्टिकता कम हो जाती है। अगर पानी में कीटनाशक और भारी धातुएं मौजूद हों तो ये सेहत के लिए अलग ढंग के खतरे उत्पन्न करती हैं। सामान्यत: मिलाया जाने वाला पानी शुद्ध न होने से पेट संबंधी रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अफसोस कि मिलावट करने वालों में लिफाफाबंद दूध बेचने वाली मशहूर कंपनियां भी शामिल हैं। इसमें सफेदी व दूध जैसा प्राकृतिक रंग व झाग का प्रभाव देने के लिए डिटर्जेंट पावडर, कास्टिक सोडा व यूरिया तक मिलाए जाते हैं। कई जगह तो 100 प्रतिशत नकली दूध बनाने के मामले भी सामने आए हैं। जाहिर है, इस तरह का नकली दूध पीने वालों से आप सहानुभूति ही तो रख सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के बाद हालात सुधरने चाहिए। सरकार को सख्त कदम उठाने होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने साफतौर पर कहा है कि राज्य सरकारें डेयरी चलाने वालों और फुटकर विक्रेताओं को सूचित करें कि अगर दूध में केमिकल, पेस्टीसाइड, कास्टिक सोडा या कोई अन्य केमिकल पाया गया तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। इसके अतिरिक्त राज्य खाद्य सुरक्षा प्राधिकरण दूध में मिलावट के ज्यादा खतरनाक क्षेत्रों को चिह्नित करें और वहां से जांच के ज्यादा नमूने लिए जाएं। यही नहीं, राज्य प्राधिकरण सुनिश्चित करें कि मिलावट की जांच के लिए उपकरणों से लैस प्रयोगशालाएं और जांच तंत्र हो। सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कहा कि सरकार को दूध में मिलावट करने वालों को आजीवन कारावास के दंड का प्रावधान करना चाहिए।
मैं देश भर में घूमता हूं अपने राजनीतिक और दूसरे सामाजिक कार्यों के सिलसिले में। मुझे कभी कहीं कोई इस तरह का सरकारी महकमा या अफसर नहीं मिला जो मिलावटी दूध के खिलाफ अभियान चला रहा हो या इस मामले को गंभीरतापूर्वक संज्ञान में भी ले रहा हो। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि इस लिहाज से सब कुछ कागजों पर ही हो रहा है। दूध में मिलावट रोकने के लिए व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने और दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। अब चेतावनी देना से बात नहीं बनेगी। अब तो कठोरतम कदम उठाने ही होंगे, ताकि दूध के नाम पर जहर बेचने वाले संभल जाएं। दरअसल दूध में होने वाली मिलावट को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले भी अपनी चिंता जता चुका है। तब इसने मिलावटी दूध तैयार करने और इसकी बिक्री करने वालों को उम्र कैद की सजा देने की हिमायत की थी। उसने छह दिसंबर, 2013 को दिए अपने एक फैसले में इस संबंध में कानून में उचित संशोधन करने की सिफारिश की थी। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि इस अपराध के लिए खाद्य सुरक्षा कानून में प्रदत्त छह महीने की सजा सर्वथा अपर्याप्त है।
ये किसी नहीं पता कि उत्तर भारत के कई राज्यों में दूध में सिंथेटिक पदार्थ मिलाए जा रहे हैं, जिनसे लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है। आप भी मानेंगे कि मिलावट हमारे देश के राष्ट्रीय चरित्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है। इसलिए दूध को अपवाद नहीं माना जा चाहिए। दवाइयों, मसालों, खाद्यानों, तेलों, दूध वगैरह के मामले में ग्राहकों की आंखों में धूल झोंकी जा रही है। दुर्भाग्यवश, मिलावटखोरों को समाज के शक्तिशाली लोगों का संरक्षण हासिल है। अगर ये बात न होती तो हमारे देश में इतने बड़े पैमाने पर मिलावट का धंधा चल ही नहीं रहा होता।
चीन में कुछ साल पहले ही दूध में मिलावट करने वालों को मौत की सजा देने की व्यवस्था कर दी गई है। कुछ दोषियों को फांसी पर लटकाया भी गया है। उसके बाद सबके सब मिलावटकर्ता लाइन पर आ गए। क्या हम भारतवर्ष में भी कभी इस तरह का कानून बना सकेंगे? बेशक देश को जहर खिलाने-पिलाने वालों के खिलाफ कड़े से कड़े कानून बनने ही चाहिए। इन्हें मौत की सजा भी दी जाए तो कम ही होगी।
ॉसवाल यह है कि यदि भारत दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश है, तब आखिर मिलावट हो क्यों रही हैं? साफ है, भारत में दूध की जितनी खपत है, उससे उत्पादन काफी कम है। अत: मिलावटखोरों को सख्त से सख्त सजा देना एक अहम सवाल है, लेकिन साथ ही महत्वपूर्ण यह भी है कि देश में दूध उत्पादन को मांग से अधिक पूरा कैसे किया जाए। क्या सरकार को गोपालकों को अच्छी नस्ल की गायों को देकर प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए? देश के हजारों शहरों के लाखों निवाशी अपने बच्चों तथा परिवार को शुद्ध दूध देने की प्रबल इच्छा रखते हैं। उनके पास जगह भी है, साधन भी। अपनी आवश्यकता के अतिरिक्त दूध आए-पड़ोस के घरों में बेचकर कुछ अतिरिक्त आय भी अर्जित करना चाहते हैं। इसमें सरकार को क्या आपत्ति होनी चाहिए?
सवाल यह है कि यदि भारत दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश है तब आखिर मिलावट हो क्यों रही हैं? साफ है, भारत में दूध की जितनी खपत है, उससे उत्पादन काफी कम है। अत: मिलावटखोरों को सख्त से सख्त सजा देना एक अहम सवाल है, लेकिन, साथ ही महत्वपूर्ण यह है कि देश में दूध उत्पादन को मांग से अधिक कैसे किया जाए। कुछ समय पहले मुझे केंद्रीय कृषि मंत्रालय के एक आला अफसर दूध उत्पादन में भारत की लंबी छलांग के संबंध में आंकड़े दे रहे थे। भारत का दूध उत्पादन 2014-15 में बढ़कर 146.31 करोड़ टन पहुंच गया है, जबकि दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी बढ़कर 302 ग्राम हो गई है जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा सुझाई गई न्यूनतम मात्रा से अधिक है।
पहले और अब भी घरों में गृहणियां अपने बच्चों के रोज दूध-दही के सेवन पर जोर देती थी क्योंकि, यह बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए विशेष लाभदायक है। पर क्या अब गृहणियां जहरीला दूध पीने के लिए बच्चों से मनुहार कर सकती हैं? अब मिलावटखोरों के खिलाफ मोर्चेबंदी करने में देर नहीं होनी चाहिए।