25 Apr 2024, 09:32:46 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

बहुत पहले एक इंग्लिश फिल्म देखी थी- ‘टु वीमन’! उसमें उस समय की प्रसिद्ध व अप्रतिम सुंदर तथा सशक्त अभिनय करने वाली अभिनेत्री  ‘सोफिया लॉरेन’ ने अभिनय किया था। सोफिया उस समय फिल्म प्रेमियों के हदय पर राज करती थीं- बिल्कुल उसी तरह जैसे माधुरी दीक्षित ने सिनेप्रेमियों की धड़कनों पर धक-धक कर राज किया। यहां इन सशक्त अभिनेत्रियों के अभिनय और सुंदरता की बात नहीं की जा रही बल्कि उन दो औरतों की बात पर चर्चा होगी जिसमें से एक औरत सोफिया लॉरेन थीं और दूसरी उनकी बेटी के औरत बनने का फिल्म में बहुत दर्दनाक चित्रण था।

हॉलीवुड में द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका पर कई फिल्में बनी हैं उसी युद्ध को लेकर ‘टु वीमन’ फिल्म भी है। फ्रांस में एक परिवार रहता है, मां और उनकी किशोरी बेटी! किशोरावस्था की मासूम व भोली और अल्हड़ अवस्था की पुत्री मां और पिता के स्नेह का केंद्र है। दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो चुका है और जर्मनी के नाजियों की क्रूरता के किस्से सुनाई पड़ रहे हैं। लोग दहश्त में जी रहे हैं। नाजी सेना के बूटों की खड़खड़ाहट फ्रांस में भी सुनाई देने लगी है। नाजी सेना ने फ्रांस में घुसकर बहुत तबाही मचाई है। उसी सेना की एक टुकड़ी फ्रांस के एक गांव में दाखिल हो गई है और वहां लोगों को मार-कूटकर उनसे अपने खाने और रहने की व्यवस्था करते हैं। इस परिवार पर भी दबाव है। मां अब स्वयं और बेटी को बचाने के लिए यहां-वहां छिपती फिरती है। वह उसे अपनी बांहों के घेरे में हर समय दबाकर रखती है , क्योंकि वह जानती है कि नाजी सैनिकों ने उस गांव की औरतों पर कैसे जुल्म ढाए हैं। वह बेटी को लेकर गांव के चर्च में छिप जाती है, पर दो-चार दिन में ही नाजी सैनिक वहां आ धमकते हैं। वह उस खूबसूरत चर्च में बहुत तोड़-फोड़ करते हैं। तब उनकी नजर मां-बेटी पर पड़ती है। वह उन्हें खींचकर, घसीटते हुए बाहर निकालते हैं। मां-बेटी को बचाने की कोशिश करती है पर, ऐसा हो पाना संभव नहीं था। नाजी उन दोनों के साथ वह करते हैं जिसे मानवता के नाम पर एक कलंकनीय कृत्य कहा जाना चाहिए। नाजी सैनिक अपना जुल्म ढहाकर चले जाते हैं। मां अपनी बेटी का हाल देखकर बेहाल है। मां-बेटी को सहारा देकर उठाती है। वह दोनों पानी के एक छोटे से बहते नाले को पार करती हैं। चुल्लू में पानी भर-भर कर मां अपनी बेटी को पिलाती है और फिर उसके शरीर पर पानी के छींटे मारती है जैसे की उसकी सारी पीड़ा-दर्द व कष्ट की जलन को शांत करने का प्रयास कर रही हो व उसे सांत्वना दे रही हो। वह यह संकेत भी है कि उसकी किशोरी बेटी इस जुल्म को सहने के बाद वह भोली-भाली मासूम शरारतें करने वाली बेटी नहीं रही, बल्कि कुछ पलों की हैवानियत के बाद एक औरत बन गई है। अब वह दोनों मां-बेटी नहीं रहीं, बल्कि एक-दूसरे की पीड़ा को साझा करती हुई ‘टु वीमन’ (दो औरतें) बन गई हैं।

इस फिल्म की याद यूं आई कि बुलंद शहर से जाते समय हाई-वे पर एक परिवार के साथ ऐसी ही दर्दनाक दुर्घटना घटी। मां और उसकी तेरह वर्षीय बेटी के साथ मां के सामने यह जघन्य कृत्य किया गया। बिल्कुल उन नाजी सैनिकों की तरह। इस कृत्य की कोई माफी नहीं होना चाहिए। इस पर न्यायालय में साक्ष्य और गवाहों की कोई बहस नहीं होना चाहिए। इतनी क्रूर मानसिकता व निकृष्टता वाली सोच के कठघरे में खड़ा करके पूछा जाना चाहिए कि इन कैसे सपूतों को जन्म दिया? कैसे उन्हें संस्कार दिए? जब वह गर्भ में ही थे तब कैसी सोच करती रही? पुत्र जन्म की तीव्र इच्छा रखने वाली यह मांएं आज शार्मिंदा हैं कि नहीं? यह औरतें उन दो औरतों टु वीमन से माफी मांगें।

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