29 Mar 2024, 18:26:31 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


एक पाकिस्तानी पत्रकार द्वारा भारत में गोमांस को लेकर हो रही हिंसक झड़पों के बारे में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता से किए गए सवाल का जो जवाब वाशिंगटन ने दिया है, उससे यही मंतव्य निकाला जा सकता है कि अमेरिका हमारे अंदरुनी घरेलू मामलों में स्व-नियुक्त दरोगा बनने की कोशिश कर रहा है। जिस अमेरिका में इतनी लियाकत नहीं है कि वह पाकिस्तान जैसे आतंक फैलाने वाले मुल्क से यह पूछ सके कि उसकी भौगोलिक सीमाओं के भीतर रहने वाली गैर-मुस्लिम आबादी के साथ अभी तक कैसा सलूक होता रहा है और खुद इस्लामी मुल्क होने के बावजूद इसी धर्म के मानने वाले अन्य तबकों के लोगों पर किस तरह के जुल्म किए जाते रहे हैं। उसे भारत के कुछ भटके हुए लोगों की गतिविधियों पर कसीदे कसने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

सबसे पहले उसे यह देखना होगा कि खुद उसके भीतर अश्वेत लोगों के साथ आज भी किस प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है। हम लोकतांत्रिक देश में हैं मगर इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि कोई दूसरा मुल्क हमारे अंदरुनी मामलों में दखल दे सकता है।

हम मानवता के पुजारी हैं और इसकी सबसे बड़ी मिसाल यह है कि मजहब के आधार पर ही भारत के मुसलमानों को अलग राष्ट्रीयता से बांधने के बावजूद हमने धर्मनिरपेक्ष देश रहना कबूल किया। अपनी जान पर खेलकर भारत में रहने वाले मुसलमानों की सुरक्षा की और उन्हें वे सब अधिकार दिए जो किसी भी मुल्क में मिल सकते हैं। हमने उन पर कोई उपकार नहीं किया क्योंकि वे भी इसी भारत की संतान हैं और भारत को अपना मादरेवतन मानते हैं। इसकी मिट्टी में ही खेले और पढ़कर बड़े हुए हैं और इस मुल्क की इबादत करना वे अपना फर्ज मानते हैं।
अगर मुसलमानों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में मिलने से किसी ने रोका है तो वह तुच्छ राजनीति ने रोका है और वोटों की सियासत ने रोका है। मुस्लिमों को वोट बैंक बनाने की खातिर सत्ताधारी पार्टियां लगातार उन्हें समय से पिछड़ा बनाए रखने में मशगूल रही हैं और हर मुद्दे पर मजहब को आगे लाने वाले इस समुदाय के कट्टरपंथियों के आगे सिर नवाती रही हैं। भारत के मुसलमान अच्छी तरह जानते हैं कि आम भारतीय विशेषकर हिंदू के लिए गाय एक पूज्य पशु है और उसकी रक्षा के लिए इस समुदाय के न जाने कितने सूरमाओं ने अपनी कुर्बानियां तक दी हैं।

क्या भारत के इतिहास को कोई भी बदल सकता है जिसमें साफ लिखा हुआ है कि भारत पर आक्रमण करने वाले मुस्लिम सुल्तान जब राजपूती फौजों से मुकाबला करने में खुद को असहाय पाते थे तो गायों के झुंड को अपनी फौजों के आगे रखकर चल पड़ते थे क्योंकि वे जानते थे कि हिंदू गायों पर हथियार नहीं चलाते हैं।

गुजरात के सोमनाथ मंदिर पर 16 बार आक्रमण करने वाले महमूद गजनबी ने यही तकनीक अपनाई थी, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि 21वीं सदी के भारत में कुछ सिरफिरे लोग किसी को भी गोहत्या के शक में निशाने पर ले लें। इसके लिए बाकायदा भारत का कानून है। मैंने कल ही लिखा था कि ऐसे मामलों में भारत के कानून का पालन होना चाहिए मगर कोई पाकिस्तानी पत्रकार अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के सामने जब यह रोना रोता है तो ऐसे लोगों की बुजदिली पर शर्म आती है, क्योंकि इन्हीं लोगों ने पाकिस्तान में रहने वाले बचे-खुचे हिंदुओं पर जो जुल्म ढहाए हैं वे आठवीं सदी के उन मुस्लिम आक्रमणकारियों के जुल्मों को भी मात देते हैं, जिनका इरादा सिर्फ भारत को लूटना था, जो पाकिस्तान न तो शइया, अहमदी अथवा वोरा मुसलमानों को मुसलमान की श्रेणी में रखता है और इन तबके के लोगों को जानवरों की तरह हलाल करता है, उसके आंसू बहाने पर तो खुदा भी हैरत में पड़ सकता है।

सन् 1947 से लेकर आज तक जिस कश्मीर के कब्जाए हुए हिस्से को पाकिस्तानियों ने पूरी तरह गुलामों की जमीन में तब्दील करके वहां से कश्मीरियत का नामोनिशान मिटा दिया हो और पूरे बाल्टिस्तान से लेकर नार्दन एरिया में कट्टरपंथी सलाफी और वहाबी मुस्लिम धारा को बहा दिया हो, वहां का पत्रकार अगर हमारे राज्य कश्मीर के संबंध में मानवीय अधिकारों की बात करता है तो यह ठीक वैसा ही है जैसे कोई शैतान इंसानियत की बात करता हो और अमेरिका का उस पर गौर करने का मतलब सीधा यही है कि वह खुद ही दरोगा बनने की कोशिश कर रहा है। जिस अमेरिका में भारी संघर्ष और जनांदोलन के बाद 1964 में ही अश्वेत लोगों को मताधिकार मिला हो वह हमें किस मुंह से मानवीयता या मानवाधिकारों की बात बता सकता है, क्योंकि हमने तो स्वतंत्र भारत की नींव ही वयस्क मताधिकार पर खड़ी की थी। जिस पाकिस्तान ने 1971 से पहले अपने ही तीन लाख बंगाली नागरिकों का कत्ल किया हो उसका एक पत्रकार आज तड़प रहा है कि कुछ लोगों को गोमांस के नाम पर तंग किया जा रहा है।

अमेरिकियों को क्या मालूम कि भारत की संस्कृति में गोवंश की क्या महत्ता है। बेशक पाकिस्तानियों को मालूम है क्योंकि 1947 तक वे सभी भारतीय थे। अत: अमेरिका को भी थोथी दलाली से बाज आना चाहिए और बेगैरत पाकिस्तान के नापाक इरादों को समझना चाहिए मगर वे लोग क्या समझेंगे जिन्होंने पाकिस्तान का वजूद अपने फौजी साजो-सामान से बचाए रखने में अहम भूमिका निभाई है। अत: जरूरी है कि हम अपने घर के मसलों को खुद ही मुश्तैदी से निपटाएं।

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