25 Apr 2024, 20:24:49 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-राजीव रंजन तिवारी
विश्लेषक


आमतौर पर देश के लोगों की नजरें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तूफानी विदेश यात्राओं पर टिकी रहती है। फलस्वरूप लोगों को यह उम्मीद रहती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो भारत को नुकसान नहीं ही होगा, क्योंकि पीएम मोदी विदेश यात्राएं कर लगातार यह कहते हुए रिकार्ड बना रहे हैं कि दुनिया में भारत की छवि पहले से अच्छी हुई है और विदेश नीति में काफी सुधार हुआ है। अफसोस कि अभी कुछ दिन पहले ही एनएसजी के मुद्दे पर भारत को करारा झटका लगा था। अभी उस झटके को लोग भूल भी नहीं पाए थे कि 26 जुलाई को एक और मामले में भारत की करारी हार हो गई। चूंकि यह मामला पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसका सारा दोष मौजूदा पीएम मोदी के सिर नहीं मढ़ा जा सकता। हां, इतना तो कहा ही जा सकता है कि भारत सरकार ने समय रहते यदि ठीक इस मसले की पैरवी की होती तो शायद जोर  का झटका धीरे से नहीं लगता। दरअसल, हम चर्चा कर रहे हैं हेग (नीदरलैंड्स) स्थित इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल द्वारा देवास-एंट्रीक्स केस में भारत के खिलाफ फैसला सुनाने के मसले का।

भारत के खिलाफ फैसला आने के बाद देश को करीब एक बिलियन डॉलर यानी करीब 67 अरब रुपए का नुकसान हो सकता है। इससे भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तरर पर होने वाले कारोबार के मसले पर भी भारत की छवि बिगड़ सकती है।

गौरतलब है कि भारत दो सेटेलाइट्स और स्पेक्ट्रम वाली डील कैंसल करने से जुड़ा बहुत बड़ा केस अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में हार गया है। यह हार भारत के लिए महंगी पड़ने वाली है। साथ ही इंडियन स्पेस ऐंड रिसर्च आॅर्गनाइजेशन (इसरो) की अंतरराष्ट्रीय साख भी प्रभावित हो सकती है। केस हारने से देश को करीब 67 अरब रुपए नुकसान हो सकता है। इतना ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय निवेशकों की नजर में भी देश की छवि खराब हो सकती है। देवास मल्टीमीडिया द्वारा दायर मामले में हेग के इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ने भारत के खिलाफ फैसला दिया है। जानकारी के अनुसार, एंट्रिक्स ने देवास मल्टीमीडिया के साथ जनवरी 2005 में डील की थी। इस डील के तहत दो सेटेलाइट बनाने, लांच करने और आॅपरेट करने थे। इन सेटेलाइट्स पर स्पेक्ट्रम कैपेसिटी को लीज पर देना था। फरवरी 2011 में एंट्रिक्स ने फैसला किया कि वह डील खत्म कर देगा। ऐसा इसलिए क्योंकि उसे सेटेलाइट लॉन्च और आॅपरेट करने के लिए आॅर्बिट में स्लॉट और फ्रिक्वेंसी नहीं मिल पा रही थी। कैबिनेट की कमेटी ने इसरो की यूनिट एंट्रिक्स के इस फैसले को मंजूरी दे दी। देवास ने एंट्रिक्स पर आरोप लगाया कि उसने सेटेलाइट और स्पेक्ट्रम को अलॉट करने से पहले बोली नहीं लगाई थी।

आखिरकार एंट्रिक्स ने वर्ष 2005 में यह कॉन्ट्रैक्ट कैंसल कर दिया। फलत: देवास ने 2015 में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय में भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ट्रिब्यूनल ने कहा कि डील कैंसल कर सरकार ने उचित नहीं किया, जिससे देवास के निवेशकों को नुकसान हुआ। जून 2011 में देवास ने हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट में केस फाइल कर मुआवजे की मांग की। देवास-एंट्रिक्स अनुबंध के रद्दीकरण मामले में यह दूसरा फैसला है। 

सितंबर 2015 में इंटरनेशनल चैंबर आॅफ कामर्स की मध्यस्थता निकाय कोर्ट आॅफ आर्बिटेशन ने एंट्रिक्स से कहा था कि वह देवास को लगभग 4432 करोड़ रुपए का भुगतान नुकसान के मुआवजे के रूप में करे। बहरहाल, एंट्रिक्स-देवास मामले में भारत पंच निर्णय के एक अंतरराष्ट्रीय मंच में मुकदमा हार गया है और इस मामले में देश को मुआवजे के रूप में करोड़ों डॉलर देने पड़ सकते हैं। यह मामला एंट्रिक्स कोर्प द्वारा निजी मल्टीमीडिया कंपनी देवास के साथ अपने अनुबंध को रद्द करने से जुड़ा है। इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया में भारत सरकार ने कहा है कि उसने मंत्रिमंडलीय समिति (सुरक्षा) के फैसले के जरिए अपने सुरक्षा हितों के लिए उचित व तर्कसंगत उपाय किए। सरकार का कहना है कि मुआवजे की सीमित देनदारी निवेश मूल्य के 40 प्रतिशत तक सीमित होनी चाहिए और सटीक मात्रा अभी तय नहीं की गई।

अंतरिक्ष विभाग का कहना है कि न्यायाधिकरण की व्यवस्था की समीक्षा के बाद उचित कानूनी कदम उठाए जाएंगे। मालूम हो कि 28 जनवरी 2005 को एंट्रिक्स और देवास के बीच करार हुआ था। इस करार से देश के राजस्व को भारी नुकसान पहुंचा। करार की आलोचना को देखते हुए इसे निरस्त किया गया है। इस करार से सरकार और इसरो दोनों को अरबों रुपए का घाटा हुआ है, हालांकि इसरो ने इससे इंकार किया था। जिस समय देवास और एंट्रिक्स के बीच ये समझौता हुआ था, तब जी. माधवन नायर इसरो के अध्यक्ष थे। चांद पर भारत के पहला मानवरहित अभियान, चंद्रयान-1 की सफलता के पीछे माधवन नायर का योगदान काफी चर्चा में रहा था।

इसरो ने एंट्रिक्स और देवास के बीच साल 2005 में हुए करार से संबंधित जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक की। रिपोर्ट के मुताबिक इस करार के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में कई खामियां मिलीं। तब कहा गया कि एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए करार में पारदर्शिता नहीं रखी गई। इसलिए इसरो के पूर्व प्रमुख माधवन नायर सहित तीन अन्य वैज्ञानिकों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। एंट्रिक्स इसरो की व्यावसायिक इकाई है और देवास एक निजी कंपनी। 31 मई 2011 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पूर्व केंद्रीय सतर्कता कमिश्नर प्रत्युष सिन्हा की अगुवाई में एक पांच-सदस्सीय टीम बनाई, जिसने एंट्रिक्स और देवास के बीच हुए समझौते की बारीकी से पड़ताल की। इस करार से जुड़े विवाद में कड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने पूर्व इसरो अध्यक्ष माधवन और तीन अन्य वैज्ञानिकों पर भविष्य में किसी भी प्रकार का सरकारी पद संभालने पर रोक लगा दी। नायर पर आरोप था कि उन्होंने देवास नाम की एक निजी कंपनी को बिना प्रक्रिया पूरा किए ठेका दे दिया।

रिपोर्ट में नामजद सभी वैज्ञानिक सेवानिवृत्त हैं। इसरो की ओर से इस रिपोर्ट के कुछ अंश जारी किए गए जिनके मुताबिक करार में न सिर्फ प्रशासनिक खामियां थीं, बल्कि इससे जुड़े कुछ लोगों ने गलत कार्रवाई भी की। यह करार कई मायनों में संगठन के हितों के विपरीत था फिर भी इसे स्वीकृति दी गई। वर्ष 2011 में इसरो ने देवास मल्टीमीडिया के साथ हुए विवादित स्पेक्ट्रम समझौते को खत्म करने की घोषणा की। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में हुई मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति की बैठक में एंट्रिक्स-देवास समझौते को खत्म करने का फैसला हुआ।

बहरहाल, तमाम तकनीकी पचड़ों में पड़ने के बजाय देश के लोग सिर्फ यही जानना चाहते हैं कि भारतीय पीएम सर्वाधिक विदेश का दौरा करते हैं, फिर भी अमूमन हर मोर्चे पर देश की हार क्यों हो रही है। देखना यह है कि सरकार और उससे जुड़े लोग इन असाधारण सवालों का किस अंदाज में जवाब देते हैं।

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