19 Apr 2024, 19:43:54 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-वीना नागपाल

सभी महाविद्यालयों में नए छात्र-छात्राओं की भीड़ इठलाती, मुस्कराती और आंखों में सपनों का संसार लिए आती दिखती है। एक नई स्वतंत्रता व एक नया खुला आसमान सामने दिखता है, शायद यह अनुभव वैसा ही होता है जैसे कि पक्षियों के बच्चे अचानक पंख फैलाकर पहली उड़ान भरते हैं। उस समय उन्हें जो स्पंदन होता है और नवजीवन के प्रति जो उत्साह होता है वह अकल्पनीय है।

कहां स्कूल का वह अनुशासित माहौल और कहां यह स्वतंत्रता का असीमित समय! यूनिफॉर्म में कसा चुस्त-दुरस्त परिधान पहनकर सुबह समय पर स्कूल पहुंचना और उसके पश्चात समय पर ही स्कूल की छुट्टी होना अर्थात सब कुछ नियम कायदे से होता रहा और उसी से ही स्कूल जाने और घर लौटने का समय सुनिश्चित होता था। परंतु महाविद्यालय में ऐसी नियमित पाबंदी नहीं है। कभी पीरियड्स लगते हैं तो कभी नहीं, पर महाविद्यालय के इस खुले माहौल में एक अनाम सा भय भी महसूस होता है। कहते हैं कॉलेज की दुनिया में पहला कदम रखने वाले फ्रेशर्स कहलाते हैं और सीनियर्स उन्हें परेशान भी करते हंै। इस परेशानी का भय मन को आतंकित करता है और इसी को रैगिंग भी कहते हंै। आजकल रैगिंग सच में बहुत भयभीत करने वाली टर्म हो गई है। सीनियर्स ने इसे अपने आतंक का और अपनी हिंसा भरी मनोवृत्ति और मानसिकता का हथियार बना लिया है। इसमें क्रूरता शामिल हो गई है और फ्रेशर्स इससे आतंकित रहते हैं। हालांकि रैगिंग को लेकर समाज व प्रशासन बहुत चिंतित है और इसके लिए सख्त कानून भी बने हैं, पर इनके बावजूद भी रैगिंग की दिल दहलाने वाली घटनाओं के समाचार प्राय: मिलते हैं। कई बार तो रैगिंग में इतनी भयानकता शामिल हो जाती है कि किसी फे्रशर की मृत्यृ तक हुई है। इन्हीं दुर्घटनाओं के कारण दिल्ली पुलिस ने चिंता के कारण एक कदम उठाया है। दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अपने साथियों सहित वहां के विभिन्न कॉलेज में जा रहे हैं और विद्यार्थियों से सीधी बात कर रहे हैं। इस बातचीत में वह नए छात्रों को विश्वास दिला रहे हैं कि यदि उन्हें किसी अप्रिय अथवा आपात स्थिति का सामना करना पड़ जाए तब वह पुलिस को एक विशेष हेल्प लाइन द्वारा सूचित कर सकते हैं। पुलिस उनकी अवश्य सहायता करेगी। दूसरा, वह सीनियर्स के साथ भी बातचीत कर उन्हें समझाइश दे रहे हैं कि यदि उन्होंने कोई गलत कदम उठाया तथा अपने जूनियर्स को शारीरिक रूप से कोई भी हानि पहुंई या त्रस्त किया तो कानूनी रूप से यह अपराध होगा और इसका दंड भुगतना पड़ सकता है। हिंसात्मक रैगिंग करना एक बहुत ही अपराधिक मनोवृत्ति का लक्षण है। इस तरह के व्यवहार का सीधा-सीधा अर्थ यह है कि यह एक ऐसी अचेतन मानसिकता है जिसमें किसी अन्य को त्रस्त व पस्त करने की प्रवृत्ति अपने बचपन अथवा पारिवारिक माहौल से बनती और मिलती है। यदि परिवार में सुख व आनंद का वातावरण है और परिवार के सदस्य एक-दूसरे के साथ स्नेह व सहयोग से रहते हैं तो कोई कारण नहीं है ऐसे परिवारों के सदस्य बाहर दूसरों को आहत करने और दु:ख पहुंचाने की बात करें। दूसरी बात यह है पुलिस आजकल जिस तरह सामाजिक कार्यों और गतिविधियों में रुचि ले रही है उससे बहुत बदलाव आएगा। रैगिंग को लेकर दिल्ली पुलिस का कदम प्रशंसनीय है। इससे कॉलेज में रखा पहला कदम आनंद से भरा होगा।
 

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