20 Apr 2024, 05:34:24 के समाचार About us Android App Advertisement Contact us app facebook twitter android

-अश्विनी कुमार
पंजाब केसरी दिल्ली के संपादक


सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस लोढा कमेटी की अधिकतर सिफारिशों पर अपनी मुहर लगाकर दुनिया के सबसे धनी भारतीय क्रिकेट नियंत्रण बोर्ड को करारा झटका दिया है। अदालत ने खेल की राजनीति करने वालों को बाहर का रास्ता दिखाने में देर नहीं की। लोढा समिति की सिफारिशों के अनुसार अब मंत्री और नौकरशाह बीसीसीआई का हिस्सा नहीं होंगे, बोर्ड में कैग का प्रतिनिधि भी होगा, एक राज्य एक वोट का नियम लागू होगा, खिलाड़ियोंं का संघ बनेगा, जिसे बोर्ड फंड देगा और 70 वर्ष से ज्यादा उम्र का कोई बोर्ड का अधिकारी नहीं होगा। कोर्ट द्वारा इन सिफारिशों को लागू करने के आदेश के बाद क्रिकेट की राजनीति के शीर्ष पर बैठे कई नेताओं को खेल और राजनीति में से एक को चुनना होगा।
अगर स्वतंत्र भारत का इतिहास देखें तो केंद्रीय और राज्य स्तरीय खेल संघों पर राजनेताओं और उद्योगपतियों की जमात कई सालों से कब्जा जमाए बैठी रही। इन्हीं खेल संघों में पूर्व खिलाड़ियोंं की मौजूदगी अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। खेलों में भ्रष्टाचार पनपने की यही एक बड़ी वजह रही। खेलों पर राजनीतिक जमावड़े के कारण अजय माकन वर्ष 2011 में, जब वह युवा एवं खेल मंत्रालय संभाल रहे थे, खेल विधेयक लेकर आए थे। अजय माकन ने ईमानदार कोशिश की थी कि खेल संघों को सूचना के अधिकार कानून के तहत लाया जाए, जिससे इनमें पारदर्शिता लाई जाए।

साथ ही कार्यकारिणी में 25 प्रतिशत से ज्यादा वे लोग हों जो कभी खेल से खिलाड़ी के तौर पर जुड़े रहे थे परंतु ऐसे कदम से उन राजनीतिज्ञों की रोजी-रोटी बंद हो जाती जो खेल संघों के पदों पर रहते हुए मोटी कमाई करते रहे हैं। अपनी प्रोफाइल को समाज में कैश कराते रहे हैं। अजय माकन ने खेलों के वायुमंडल में फैले प्रदूषण को हटाने की कई बार कोशिश की थी परंतु दूसरे पहलू में बैठे धुरंधर लोग थे, जो खेल संघों की कार्यकारिणी में बैठे थे। ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने कभी किसी राज्य या राष्ट्रीय स्तर का कोई भी खेल नहीं खेला सिवाय खेल संघों में बैठ कर खिलाड़ियों के भविष्य के साथ खेलने के। अजय माकन को बीसीसीआई से भी मुंह की खानी पड़ी थी, क्योंकि बीसीसीआई में राजनीतिज्ञों और उद्योगपतियों की भरमार होने के बावजूद यह ऐसी संस्था रही जिसने भारतीय क्रिकेट को नया आयाम दिया लेकिन यह भी सच है कि भारतीय क्रिकेट भ्रष्टाचार का गढ़ बनता गया।

मैच फिक्सिंग, स्पाट फिक्सिंग के शर्मनाक स्कैंडल सामने आते रहे। एक के बाद एक खुलासों के बाद खेल दागदार नजर आने लगा। आईपीएल में हुए खुलासों से तो तूफान खड़ा हो गया था। क्रिकेट बोर्ड में सुधार के लिए जस्टिस आर.एम. लोढा समिति ने सुधारों के विभिन्न पहलुओं पर रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को इसी वर्ष 4 जनवरी को सौंपी थी। फिर सुनवाई के दौरान न्यायालय ने लोढा समिति की सिफारिशें लागू करने को लेकर उदासीन रवैये पर बीसीसीआई की खिंचाई की थी। उसने राज्यों को कोष देने में पारदर्शिता के अभाव पर बीसीसीआई पर सवाल उठाया था।

क्रिकेट बोर्ड शुरुआती दौर में जस्टिस लोढा समिति की सिफारिशों का विरोध करता रहा और यह कहता रहा कि समिति की सिफारिशें व्यावहारिक नहीं, जो सिफारिशें अच्छी हैं उन्हें लागू किया जाएगा। अंतत: सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया। हालांकि इसे आरटीआई के अधीन लाने और क्रिकेट में सट्टेबाजी को वैध बनाने का फैसला संसद पर छोड़ दिया गया है। यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने लोढा समिति की लगभग सभी सिफारिशें स्वीकार कर भारतीय क्रिकेट में मूलभूत सुधार और भ्रष्टाचार निवारण का रास्ता खोल दिया है। हालांकि बीसीसीआई के रवैये को देखते हुए ये सिफारिशें लागू करना आसान नहीं लगता। हो सकता है कोई दांव-पेच खेले जाएं। बोर्ड पदाधिकारियों की आयु सीमा 70 वर्ष तक सीमित करने की सिफारिश के चलते बोर्ड में शरद पवार, एन. श्रीनिवासन और निरंजन शाह जैसे लोगों के रास्ते बंद हो गए।

बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर, सचिव अजय शिर्के, कोषाध्यक्ष अनिरुद्ध चौधरी और संंयुक्त सचिव अमिताभ चौधरी को हितों के टकराव से बचने के लिए अपने संबंधित राज्य संघों में अपना पद छोड़ना होगा। बेहतर होगा कि क्रिकेट बोर्ड इस फैसले को विनम्रता से स्वीकार कर इसे लागू करे। अगर क्रिकेट को क्रिकेटर ही चलाएं तो इससे क्रिकेट का गौरव ही बढ़ेगा। खेलों को राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों की चंगुल से बचाना बहुत जरूरी है। पूर्व खिलाड़ी ही खेल को ज्यादा समय दे सकते हैं। इतिहास के पन्नों को पलटिए और जानिए कि कौन-कौन राजनीतिज्ञ और उद्योगपति कितने-कितने वर्ष पदों पर बैठे रहे। क्रिकेट और हाकी के साथ अन्य खेलों में हमने क्या किया?

  • facebook
  • twitter
  • googleplus
  • linkedin

More News »