-मिथिलेश कुमार सिंह
वरिष्ठ पत्रकार
बचपन से ही हम सब सुनते आ रहे हैं कि ‘जाको प्रभु दारुण दु:ख दीन्हा, ताको मति पहले हर लीन्हां’ यानि, जब ईश्वर आपको 'बुरे दिन' दिखलाना चाहते हैं तो आपकी 'मति' पहले ही हर लेते हैं और भारतीय जनता पार्टी के साथ पिछले कुछ महीनों से यह बात बखूबी साबित हो रही है। किसी अनुभवी व्यक्ति ने 2014 के आम चुनावों से पहले मुझे कहा था कि 'भाजपाइयों-संघियों' को शासन करने का ढंग न आया है, न आएगा!
अपने इस तर्क के बदले उसने मुझे जनसंघ के जमाने से, जनता पार्टी और फिर वाजपेयीजी का कार्यकाल गिना दिया और कहा कि जनता उस पर भरोसा तो करती है, लेकिन वह भरोसा जल्द ही टूट जाता है। हालांकि, नरेंद्र मोदी के उभार के समय जिस तरह पार्टी समेत कार्यकर्त्ता-नेता एकजुट दिख रहे थे, तब तो ऐसा ही लग रहा था कि अब केंद्र में यह पार्टी स्थायित्व से आगे बढ़ेगी। भाजपा के दो साल भी नहीं गुजरे कि 'मोदी-लहर' की हवा निकलती दिख रही है। एक-एक करके कई जगहों से पार्टी घिरने और कमजोर होती दिखने लगी है। इसके पीछे के कारणों की पड़ताल हम आगे करेंगे, पहले कुछ बड़े विवादों की ओर नजर डालते हैं, जिसका सीधा असर तमाम राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ 2019 में संसदीय चुनावों के समय भी पड़ सकता है।
आने वाले दिनों में 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा-चुनाव को भाजपा अपने लिए बेहद महत्वपूर्ण मान कर चल रही है, किंतु हिंदू-मुस्लिम का उसका 'पुरातन' दांव छोड़ दिया जाए तो एक भी स्थिति उसके पक्ष में नजर नहीं आ रही है। वह इस कंडीशन में भी नहीं है कि किसी नेता को मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित कर सके। केशव प्रसाद मौर्या को प्रदेश भाजपा की कमान देकर, वह दलित-पिछड़ों को लुभाने की राह पर जरूर थी, किंतु उसी के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह ने इस दांव की ऐसी हवा निकाली, जिसकी चोट न केवल अमित शाह को लगी होगी, बल्कि नरेंद्र मोदी भी छटपटा गए होंगे।
‘यत्र नार्यस्तुपूज्यंते रमंते तत्र देवता’ का जाप करने वाले भाजपाई छुपने का स्थान ढूंढ रहे होंगे। गौरतलब है कि मऊ जिले में एक सभा को संबोधित करते हुए बलिया के भाजपा नेता दयाशंकर सिंह मायावती पर टिकट बेचने का आरोप लगा रहे थे और इसी उन्माद में उन्होंने कहा कि मायावती ऐसा काम कर रही हैं जैसा एक (महिलाओं के निहायत अपमानजनक शब्द का इस्तेमाल) भी नहीं करती। यह बेहद घृणित बयान है और सामाजिक स्तर पर इसकी जितनी निंदा की जाए, कम ही होगा, किंतु नेता और राजनीतिक पार्टियां तो इसे 'वोट' के लिहाज से काउंट कर रही होंगी।
भाजपा ने इस छुटभैये नेता को प्रदेश उपाध्यक्ष से तुरंत हटाया और 24 घंटे के भीतर पार्टी से भी निलंबित कर दिया। किसी ने फेसबुक पर लिखा कि 'बिहार में मोहन भागवत का आरक्षण पर दिया बयान और यूपी में दयाशंकर के बयान की टाइमिंग एक ही है, तो क्या परिणाम भी एक ही आएगा' हालांकि, महिलाओं पर अभद्र और अश्लील टिप्पणी पहली बार नहीं हुई है। अभद्रबाजों की लिस्ट में जदयू नेता और राज्यसभा सांसद अनवर अली भी शामिल हैं, जिन्होंने हाल ही में स्मृति ईरानी को लेकर बयान दिया था कि उन्हें तन ढंकने वाला (कपड़ा) मंत्रालय दिया गया है।
इन्हीं बदजुबानों की लिस्ट में जदयू नेता शरद यादव भी हैं, जिन्होंने दक्षिण भारतीय महिलाओं के शरीर पर अभद्र टिप्पणी की थी, तो सपा मुखिया धरती-पुत्र मुलायम सिंंह यादव भी पीछे नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि बलात्कार के लिए फांसी की सजा अनुचित है, लड़के हैं गलती हो जाती है। और भी कई माननीय हैं, जिन्होंने मर्यादा की सीमा का उल्लंघन किया है, किंतु जो नुकसान इस बयान से भाजपा को हो सकता है, उसकी कल्पना मुश्किल है। यह भी गौर करने वाली बात है कि यह शर्मनाक बयान पूर्वांचल में दिया गया है, जहां जातीय-सूचक शब्दों के लिए दलित किसी को जेल भिजवाने में देरी नहीं करते हैं।